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उदात्तीकरण

उदात्तीकरण में हम किसी नकारात्मक या अस्वीकार्य भाव या प्रवृत्ति को रूपांतरित कर उसे नुकसानरहित या सामाजिक रूप से स्वीकार्य व्यवहार बना देते हैं।

फ्रायड की थ्योरी मन को तीन भागों में बाँट कर देखती है। प्रत्येक जीव के अस्तित्व के आदिम इड भाग में बुनियादी प्रवृत्तियाँ निवास करती हैं — जीवित रहने की प्रवृत्ति, जीविका कमाने, भोजन, सुरक्षा, समाज में रुतबा पाने, उचित जीवनसाथी पाने की प्रवृत्ति। सूपरईगो माता-पिता या समाज की वह आवाज होती है जिसे हम अपने आप में समाहित कर लेते हैं — जो हमारे आचरण के लिए कायदे और सीमाएँ तय करती है। ईगो कोशिश करती है कि इड की माँगों को ऐसे संतुलित किया जाए कि वह सूपरईगो के लिए संतोषप्रद हों। मन में चलने वाला इन अलग-अलग कारकों का आपसी खेल अकसर बेचैनी पैदा करता है। बेचैनी और तनाव अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्ट्रेस हॉरमोनों के द्वारा शरीर पर असर डालते हैं।

बेचैनी से निपटने के लिए ईगो कई तरह के व्यवहार और सोच-विचार पैदा करती है जिन्हें फ्रॉयड सुरक्षा तंत्र या डिफेंस मकैनिज्म कहते थे। जब ये सुरक्षा तंत्र दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा असर डालते हैं तो हम इन्हें स्वस्थ सुरक्षा तंत्र कहते हैं। पिछले महीने हमने देखा था कि किस तरह हँसी-मजाक असहनीय तनाव से निपटने का स्वस्थ तरीका होता है। एक अन्य तरीका है उदात्तीकरण (सब्लीमेशन)।

उदात्तीकरण में हम किसी नकारात्मक या अस्वीकार्य भाव या प्रवृत्ति को रूपांतरित कर उसे नुकसानरहित या सामाजिक रूप से स्वीकार्य व्यवहार बना देते हैं। इस तरह के भाव या प्रवृत्ति के प्रति व्यक्ति जितना अधिक जागरूक होगा, वह उसे उतनी ही अच्छी तरह से स्वीकार्य रूपों में उसका उदात्तीकरण कर सकता है। कुछ उदाहरण, उदात्तीकरण को स्पष्ट करेंगे।

एक महिला में चीजों को नियंत्रण में रखने या व्यवस्थित रखने का जुनून है। वह चाहती है कि हर काम किसी खास तरीके से किया जाए और चीजें हमेशा अपनी जगह पर रखी जाएँ। इस बात को लेकर घर पर हमेशा तनाव रहता है क्योंकि उसके छोटे भाई-बहन उसकी पद्धति का अनुसरण नहीं करते और बार-बार साफ-सफाई और नुक्ताचीनी करने की उसकी आदत से बहुत ही खीजते और खुद को मुश्किल में पाते हैं। उस महिला को एक बहुत बड़े होटल के हाउसकीपिंग विभाग में नौकरी मिल जाती है। यहाँ वह प्रवीणता और नियंत्रण की अपनी कामना को जी भर कर पूरा कर सकती है और वहाँ कोई इस काम में उसकी आलोचना भी नहीं कर सकता था। उसे अपनी नौकरी से प्यार है, वह अपने अधीन क्षेत्रों को एकदम बेदाग और व्यवस्थित रखती है। अब वह घर पर भी हर चीज को अपने नियंत्रण में रखने की इच्छा से उबर रही है, जिससे परिवार वालों ने भी राहत की साँस ली।

जब किसी व्यक्ति को प्रेम में निराशा हाथ लगती है तो हो सकता है वह कई दिनों तक अवसाद में डूबा रहे, खाना न खाए, जरूरत से अधिक शराब पीने लगे, छोटी-छोटी बातों पर दोस्तों से झगड़ पड़े, शायद लड़की को फोन और एसएमएस करता रहे। यह सब अस्वस्थ सुरक्षा तंत्र हैं — जो धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर, दिलो-दिमाग और संबंधों पर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। मान लो कि इन सबकी बजाय वह व्यक्ति इस समय संगीत की ओर मुड़ जाए। वह प्रेम और कामना के बारे गीत लिखे, जिनमें वह अपनी भावनाएँ व्यक्त करे। अपने आपको अभिव्यक्त करने के द्वारा न केवल वह अच्छा महसूस करेगा, बल्कि एक खूबसूरत गीत की रचना भी कर पाएगा, जो शायद कई लोगों के दिलों को छुएगा, खासतौर पर उनके जो प्रेम में असफल रहे हैं। इस व्यक्ति ने प्रेम की निराश भावनाओं का सफलतापूर्वक उदात्तीकरण कर लिया है — अब वह भावनाएँ सकारात्मक और स्वीकार्य रूप में अभिव्यक्त हो रही हैं — सृजनात्मकता और संगीत के रूप में।

फ्रॉयड खुद यह मानते थे कि रुमानी आवेगों का कला और संगीत या किसी अन्य ऐसे उद्देश्य में उदात्तीकरण करना जो उच्चतर या सामाजिक रूप से उपयोगी है, उदात्तीकरण का सबसे विशिष्ट उदाहरण है।

उदात्तीकरण के द्वारा हम कई अस्वीकार्य आवेगों को संभालने का यत्न करते हैं। उदाहरण के तौर पर, जब किसी व्यक्ति को किसी बात पर गुस्सा आता है तो उसका मन करता है कि वह किसी को पीटे, चिल्लाए, चीखे, तोड़-फोड़ करे। लेकिन वयस्कों में इस प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया स्वीकार्य नहीं होती। इसलिए वह व्यक्ति जिसे आदतन गुस्सा आता है उसे अपनी हिंसक प्रवृत्तियों से निपटने के लिए सुरक्षित और नियंत्रित तरीका खोजना होगा। मुक्केबाजी, वॉलीबॉल या टेनिस जैसा खेल एक रास्ता हो सकता है — इन खेलों में गेंद को जोर से मारने या पंचिंग बैग पर घूंसे बरसाने की अनुमति होती है। जितनी जोर से मारेंगे टीम के लिए अंक जीतने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है! इस तरह से कई प्रतिस्पर्धात्मक खेलों का इस्तेमाल करके हिंसक या प्रतिस्पर्धात्मक आग्रहों का उदात्तीकरण किया जा सकता है। बल्कि बिसात पर खेले जाने खेलों का भी ऐसा ही इस्तेमाल किया जा सकता है — जंग पर जाने की बजाय कुछ लोग शतरंज की बाजी में ही जंग लड़ लेते हैं।

कुछ लोग जब परेशान होते हैं तो बागवानी करते हैं, कुछ अपनी अलमारियाँ सहेजते हैं या गुसलखाने या रसोई के फर्श साफ करते हैं। आप फर्श को खूब रगड़ कर साफ करने या फिर गलीचे को जोर से झाडऩे के द्वारा अपनी सारी नकारात्मक भावनाओं को निकाल सकते हैं — सामाजिक रूप से उपयोगी और स्वीकार्य रूप में। कई बार अभिव्यक्ति के साथ हमारी असली भावना में भी बदलाव आ सकता है। हैरी पॉटर के उपन्यास आजकल बहुत लोकप्रिय हैं। एक उपन्यास में अपने मित्र डॉबी की हत्या पर हैरी बहुत ही क्रोधित और उदास है। उस कहानी में वह बहुत आसानी से जादू के द्वारा कब्र खोद सकता था, बस उसे अपनी जादू की छड़ी घुमानी थी। लेकिन वह शारीरिक तौर पर कब्र खोदता है। और जैसे-जैसे वह गड्ढा खोदने में जोर लगाता है, उसके हिंसक आवेग कम होते जाते हैं और वह ठंडे दिमाग से अपने अगले कदम के बारे में सोचने के काबिल हो पाता है।

एक महिला का विवाह एक बहुत ही अशांत और निकम्मे आदमी से हुआ और उसका वैवाहिक जीवन मारपीट और अन्य बहुत ही कठिनाइयों से भरपूर रहा। अंत में उसने अपने पति को तलाक दे दिया, लेकिन उसे अपनी हालत पर बहुत गुस्सा आता था और वह सालों तक डिप्रेशन में रही — आखिरकार लोगों ने उसे “बुरी औरत” जो कहना शुरू कर दिया था, हालाँकि इसमें उसका कोई दोष नहीं था। अंत में, उसने कानून की पढ़ाई की और ऐसी औरतों के लिए एक गैर-सरकारी संगठन बनाया जो उसी की तरह अत्याचारपूर्ण विवाह संबंध में जकड़ी हुई थीं — और इस प्रकार उसने अन्याय के प्रति अपने गुस्से का उदात्तीकरण किया।

उदात्तीकरण का एक दूसरा क्लासिक उदाहरण है अपनी ऊर्जाओं का दूसरों की सेवा में रूपांतरण कर देना जैसा कि अलग-अलग धर्मों में अविवाहित भिक्षुओं और भिक्षुणियों में देखा जाता है। यहाँ पर स्वभाविक रुमानी और यौन-संबंधी आवेगों को उत्तेजित न करने के द्वारा दूसरी ऊर्जाओं में रूपांतरित कर दिया जाता है — अध्यापन, सेवा, नर्सिंग, प्रचारकार्य, गरीबों या बीमारों की सेवा, इत्यादि।

यह जानकारी कैसे उपयोगी हो सकती है?

हम सभी कभी न कभी अस्वीकार्य आवेगों से जूझते हैं — गुस्सा, हिंसा, अधिकार जताना, जिम्मेवारी त्यागना, या ऐसी वस्तु की इच्छा करना जो सामाजिक रीति से उचित नहीं है, मसलन वैवाहिक व्यक्ति को चाहना, इत्यादि। अच्छी खबर यह है कि हमें अपने आवेगों के आगे हथियार डालने की जरूरत नहीं। जब तक ऐसे आवेग खुद-ब-खुद कम नहीं हो जाते, इन्हें संभालने का एक तरीका है कि इन्हें नुकसानरहित या लाभकारी क्षेत्रों में मोड़ दिया जाए। इनमें से क्लासिकल सृजनात्मक तरीके हैं अपने आवेग को कला, संगीत, कविता में बदल देना जिससे व्यापक समाज को फायदा हो। इसी तरह, हिंसक आवेगों को सक्रिय खेलों की ओर मोड़ा जा सकता है, जहाँ बल का नियंत्रित इस्तेमाल व्यक्ति के साथ-साथ उसकी टीम के लिए भी उत्पादनशील और प्रतिफल देने वाला हो, या फिर किसी तरह का शारीरिक श्रम किया जा सकता है।

(फारवर्ड प्रेस के जनवरी 2012 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

डॉ जमीला कोशी

डॉ जमीला कोशी मनोचिकित्सक हैं। वे दिल्ली में रहती हैं।

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