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क्राउड फंडिंग : फिल्म निर्माण का लोकतांत्रिकरण

फिल्म निर्माण की यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया दर्शकों की उम्मीदों को बढाती है और उस पर खरा उतरने के लिए फिल्म निर्माता की प्रतिबद्धता को बढाती है

एक नए फिल्मकार के अनुभव

ऐसे में जब बालीवुड तेजी से भारतीय फिल्म उद्योग पर हावी हो रहा है, सार्थक सिनेमा की जरूरत बढ़ी है। स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को भी वित्त की समस्या शुरू से अंत तक परेशानी में डाले रहती है, तो क्या भारतीय स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए कोई वैकल्पिक राह उपलब्ध है। प्रस्तुत है मेरी अभी तक की अधूरी यात्रा से कुछ अनुभव।

मेरी पहली स्वतंत्र फिल्म का शीर्षक है-नया पता। जैसा कि शीर्षक से प्रतीत होता है यह लोगों के जीवन में एक नए पते पर स्थानांतरित करने के बाद पहचान के लिए खोज पर आधारित है। इस कहानी में प्रवास से एक नई जगह पर स्थानांतरित हो चुके एक शख्स की पीड़ा को कहा गया है। आज की कड़ी प्रतिस्पर्धा वाली जिंदगी में हमारे कई देशवासियों ने प्रवास के कारण अपनी पहचान खो दी है। नया पता की कहानी के जरिए मैंने स्थानांतरण को एक नए नजरिए से पेश करने की कोशिश की है, जिसमें मासूमियत और अपनेपन को खो देने का एहसास और शांति और खुशियों से वंचित एक शख्स की कहानी है, लेकिन यह पहचान फिर से स्थापित करने के लिए संघर्ष की दास्तान भी है और नए पते पर अपनेपन की खोज की भी।

जब मैंने अपने फिल्म निर्माण क्षेत्र में कार्यरत दोस्तों से इस फिल्म को बनाने की बात की तो उन्होंने मेरे विचार का स्वागत किया और मुझे प्रोत्साहित किया। जल्द ही मेरे पास एक अनुभवी और कुशल फिल्म निर्माणदल तैयार हो गया। हर कदम पर कई बाधाएं थीं। लेकिन सौभाग्य से मेरे जुनून और मेरी टीम के साथियों के समर्थन के कारण मैं सभी बाधाओं को पार कर गया।

मैं अपनी टीम की कार्यक्षमता से बहुत प्रभावित था, क्योंकि उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन के साथ काम किया और वो भी बिना कोई भारी-भरकम राशि की मांग किए बिना। शूटिंग के दौरान कलाकारों और निर्माणदल के सदस्यों में से कोई भी लग्जरी के बारे में चिंतित नहीं था। वे चाहते थे गुणवत्ता पर कोई समझौता किए बिना फिल्म को पूरा करना। वास्तव में एक दृश्य के लिए शूटिंग 14 दिनों तक जारी रही और किसी ने भी शिकायत नहीं की।

स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए वरदान

हालांकि कोई कितना भी कंजूसी करे और पैसे बचाने की कोशिश करे, फिल्म निर्माण सस्ता नहीं है। यह एक पेशेवर निर्माणदल, कैमरों, लेंस, रोशनी, शूटिंग स्थान और संबद्ध लागत के किराये की मांग तो करता ही है। ऐसे में पैसों का इंतजाम करना वाकई मुश्किल है जब तक आप लोगों के लिए अनजान हैं और व्यावसायिक फार्मूला फिल्म उद्योग के अनुरूप काम नहीं करना चाहते हैं। आम लोगों से पैसे इकटठा करना चलन में आया एक नया तरीका है, जिसके माध्यम से लोगों की एक बड़ी संख्या छोटी मात्रा में पैसे दान करती है जोकि एक फिल्म बनाने हेतु पर्याप्त होती है। आम लोगों से धन एकत्र कर फिल्म बनाना कोई आसान काम नहीं है। सबसे पहले हमें लोगों के एक अच्छे नेटवर्क की जरूरत होती है, जिनके माध्यम से हम अधिकतम लोगों तक पहुंच सके और हमारा साथ देने के लिए उन्हें प्रेरित कर सके। हमने आदर्श वाक्य, श्लोगों के साथ लोगों के लिए और लोगों द्वारा का इस्तेमाल किया है ताकि हम इस फिल्म के लिए ज्यादा से ज्यादा धन एकत्रित कर सके। इस फिल्म के बारे में प्रचार-प्रसार करने के लिए मैंने सोशल नेटवर्किंग मीडिया साइटों का इस्तेमाल भी किया है। फेसबुक और जीमेल संपर्कों के माध्यम से हमने लोगों की एक मजबूत श्रृंखला बनाई है, जिन्होंने फिल्म के बजट के लिए अहम योगदान दिया है।

हालांकि इस फिल्म के लिए धन इकटठा करने में मैंने लोगों की एक बड़ी संख्या की उदारता का अनुभव किया। मेरी मुलाकात कुछ ऐसे छात्रों से भी हुई जो अपने जेब खर्च के पैसे को बचाकर फिल्म निधि में मदद करते थे। हमारी फिल्म में न्यूनतम योगदान 3,500 रुपये का था। फिनलैंड, आस्ट्रेलिया और कनाडा से भी लोगों ने मेरी फिल्म के लिए योगदान दिया है। अधिकतम योगदान राशि मैंने 3,500 रुपये प्राप्त की।
कुल 135 लोगों के समर्थन से मैंने ये फिल्म पूरी की है, जिनमें से 90 प्रतिशत लोग मेरे लिए अजनबी थे।

इस तरह मुझे पता चला कि हमारे दर्शकों को एक अच्छी कहानी और एक परिपक्व फिल्म की कितनी चाहत है। यह बात मुझे भविष्य में कठिन परिश्रम व और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करती रहेगी। मैं पहले से ही प्रचारित करता आ रहा हूं कि नया पता एक ऐसी फिल्म है जो आम लोगों द्वारा उनके मनोरंजन के लिए और उन्हीं की वित्तीय सहायता के साथ बनाई जा रही है।

फिल्म बनाने के लिए सहकारी दृष्टिकोण

क्राउड फंडिंग एक समावेशी और सहकारी दृष्टिकोण है। फिल्म बनाने का, जिसमें आम आदमी शामिल हो जाता है और जनता और फिल्म निर्माताओं के बीच एक कड़ी की तरह काम करता है। हमें यह भी जानने का मौका मिलता है कि हमारे दर्शकों की हमसे क्या उम्मीदें हैं और दर्शक वर्ग भी शुरू से निर्माण कार्य का एक हिस्सा बनकर गर्व महसूस करता है। फिल्म निर्माण की यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया दर्शकों की उम्मीदों को बढाती है और उस पर खरा उतरने के लिए फिल्म निर्माता की प्रतिबद्धता को भी।

यदि आपकी कहानी उनकी भावनाओं के साथ जुडऩे की शक्ति रखती है तो आप सफल होंगे। हालांकि क्राउड फंडिंग एक कठिन अवधारणा को लागू करने जैसी बात लगती है, लेकिन अभी तक कई फिल्म निर्माताओं ने इस अवधारणा का उपयोग उनकी फिल्मों को पूरा करने के लिए किया है और वे अपने काम के लिए मान्यता प्राप्त कर रहे हैं। कुछ नए निर्देशक जो क्राउड फंडिंग क्लब में शामिल हो गए हैं उनके नाम हैं-रॉय अनमित्र, स्पर्णा डे और सुर्यश्कर दास।

आखिरी परिदृश्य

एक धीमी और कठिन यात्रा के बाद अब यह मेरे लिए आसान बन गया है, जैसे-जैसे मैं अपनी फिल्म के पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा हूं और अब जबकि मैं शूटिंग खत्म कर चुका हंंू और अपनी फिल्म के अंतिम पोस्ट प्रोडक्शन कार्य की दिशा में कदम आगे बढ़ा रहा हूं, नया पता के चित्र और रशेस दिखा कर लोगों को अपने साथ जोडऩा बेहद आसान हो गया है। इसके परिणामस्वरूप कई निर्माता हमें पोस्ट प्रोडक्शन कार्य के बजट के लिए योगदान करने को तैयार हैं। जाहिर है कि जैसे-जैसे आप अपने लक्ष्य के करीब जाएंगे आपको लोगों से अधिक समर्थन प्राप्त होगा।

भविष्य में मैं स्वतंत्र फिल्मों को बनाने के एक साधन के रूप में क्राउड फंडिंग को इष्टतम उपाय के रूप में देखता हूं। ऐसे आजकल मुंबई में वश्बेरीष के नाम से एक एजेंसी भी चल रही है जो निर्देशकों की मदद के लिए स्वतंत्र फिल्म निर्माण के कारोबार में क्राउड फंडिंग का उपयोग करके वित्तीय सहायता प्राप्त करवाती है। यह फिल्म निर्माण की लोकतांत्रिक प्रक्रिया
के लिए है।

(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

पवन के श्रीवास्तव

छपरा, बिहार के 29 वर्षीय पवन के श्रीवास्तव को दिल्ली में एक नया पता मिल गया है। नया पता उनकी पहली फीचर फिल्म है। इससे पहले वे दो डाक्यूमेंटरी बना चुके हैं और टीवी पर प्रसारित कई लघु फिल्मों का निर्देशन भी कर चुके हैं। उन्होंने बिहार में दो सौ से ज्यादा नाटकों का लेखन व निर्देशन किया है

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