h n

दलित-बहुजन पेज – 3, फरवरी 2013

-

 

भोपाल, 15 दिसंबर 2012 : सावित्रीबाई फुले सर्वशिक्षा दिवस पर महात्मा जोतिबा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान के सम्मेलन अतिथि जीसी विठठले, डा. पीएन आम्बेडकर, शंकर राव लिंगे राष्ट्रीय अध्य़क्ष , महासचिव, रामनारायण चौहान, हेमंत सोनोभो (उज्जैन) धन्नालाल नागरिकर तथा उपस्थित जिला के सरपंच, पंच एवं समाज के पदाधिकारिगण

 

औसानपुर, उत्तर प्रदेश, 3 जनवरी 2013 : सावित्री बाई फुले जन्मदिन (सर्वशिक्षा दिवस) पर औसानपुर, हरहुआ, रामेश्वर मार्ग (वरूणा नदी, वाराणसी) में अशोक मिशन सोसायटी द्वारा आयोजित समारोह में बच्चों के साथ भाग लेतीं शिक्षिका।

 

जंतर-मंतर, नई दिल्ली, 3 जनवरी 2013 : सावित्री बाई फुले जन्मदिन (सर्वशिक्षा दिवस) के अवसर पर जंतर- मंतर पर आयोजित समारोह में धरना-प्रदर्शन में शिरकत करते विनय कुमार (जेएनयू अध्यक्ष, एआईबीएसएफ) एवं विभिन्न क्षेत्र से आए लोग।

 

(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

क्या है ओबीसी साहित्य?
राजेंद्र प्रसाद सिंह बता रहे हैं कि हिंदी के अधिकांश रचनाकारों ने किसान-जीवन का वर्णन खानापूर्ति के रूप में किया है। हिंदी साहित्य में...
बहुजनों के लिए अवसर और वंचना के स्तर
संचार का सामाजिक ढांचा एक बड़े सांस्कृतिक प्रश्न से जुड़ा हुआ है। यह केवल बड़बोलेपन से विकसित नहीं हो सकता है। यह बेहद सूक्ष्मता...
पिछड़ा वर्ग आंदोलन और आरएल चंदापुरी
बिहार में पिछड़ों के आरक्षण के लिए वे 1952 से ही प्रयत्नशील थे। 1977 में उनके उग्र आंदोलन के कारण ही बिहार के तत्कालीन...
कुलीन धर्मनिरपेक्षता से सावधान
ज्ञानसत्ता हासिल किए बिना यदि राजसत्ता आती है तो उसके खतरनाक नतीजे आते हैं। एक दूसरा स्वांग धर्मनिरपेक्षता का है, जिससे दलित-पिछड़ों को सुरक्षित...
दलित और बहुजन साहित्य की मुक्ति चेतना
आधुनिक काल की मुक्ति चेतना नवजागरण से शुरू होती है। इनमें राजाराम मोहन राय, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, पेरियार, आम्बेडकर आदि नाम गिनाए जा सकते...