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हरियाणा बना दलित उत्पीड़न की प्रयोगशाला

आर्य समाज आंदोलन के थोड़े-बहुत प्रभाव को छोड़कर यहां सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आजतक कोई भी प्रगतिशील जनवादी आंदोलन अपना पैर नहीं जमा पाया

दलितों पर अत्याचार की घटनाएं तो पूरे देश में हो रही हैं लेकिन हरियाणा पिछले कुछ समय से दलित महिलाओं से बलात्कार व दलितों पर अत्याचार की प्रयोगशाला बन गया है। यहां का दलित समुदाय साधनहीन है। छोटी-मोटी नौकरी करके या भू-स्वामियों के खेतों में मजदूरी कर अपना गुजारा करता है।

हरियाणा को जाट भूमि कहा जाता है, क्योंकि जब वर्ष 1961 में हरियाणा बना था तभी से वहां एक विशेष दबंग जाति की ही सरकारें बनती आ रही हैं। हरियाणा की कृषि भूमि व उद्योगों पर ज्यादातर इन्हीं दबंगों का कब्जा है। जाटों की खाप पंचायतों की समानांतर सत्ता भी यहां चलती है। पुलिस, प्रशासन व नौकरशाही में भी इन्हीं का दबदबा है। हरियाणा की एक खास विशेषता यह भी है कि आर्य समाज आंदोलन के थोड़े-बहुत प्रभाव को छोड़कर यहां सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आजतक कोई भी प्रगतिशील जनवादी आंदोलन अपना पैर नहीं जमा पाया। इसलिए आज भी वहां ऊपरी आर्थिक विकास के बावजूद मध्ययुगीन अमानवीय रूढि़वादी व प्रतिक्रियावादी मूल्य, मान्यताएं अपनी
जड़ें जमाए हुए हैं।

ऐसा भी नहीं है कि ये दबंग जाति हरियाणा में जनसंख्या में ज्यादा है। इसके बावजूद सभी संसाधनों पर इसने कब्जा कर लिया है, जो भी व्यक्ति हरियाणा की मिटटी में पैदा हुआ है, वह महसूस कर सकता है कि इस विशेष जाति की वहां कितनी दबंगई और गुंडागर्दी चलती है और हर स्तर पर दलित समुदाय को कैसे अपमानित और प्रताडि़त किया जाता है। ग्रामीण इलाकों में यह जाति सबसे पहले आती है।

दलितों के लिए भारतीय संविधान में दर्ज जनवादी अधिकारों का यहां कोई मायने नहीं है। अकेले इस साल, जनवरी से नवंबर 2012 में ही हरियाणा राज्य में 100 से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं, जिनमें से लगभग सभी दलित महिलाएं थीं। मार्च 2005 में जब से भूपेंद्र सिंह हुडडा की कांग्रेस सरकार हरियाणा में सत्तानसीन हुई है, बलात्कार और दलित उत्पीडऩ की घटनाएं आम बात हो गई हैं। वर्ष 2007 में गोहाना कांड में दबंगों द्वारा दलितों के घरों में आग लगाई गई। बाद में लारा नाम के दलित युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

वर्ष 2007 में ही नारनौल गांव में दबंगों द्वारा दलित परिवार के पांच लोगों को नंगा कर गांव में घुमाया गया और घर-गांव से बेदखल कर दिया गया। 21 अप्रैल 2010 को मिर्चपुर में दलितों के घरों में आग लगा दी गई, जिसमें एक स्कूली छात्रा और उसके पिता मकान के भीतर जलकर मर गए। मिर्चपुर गांव के समस्त दलित इस घटना में अपने घर-गांव से बेदखल हुए और आजतक वापस गांव में बस नहीं पाए हैं। वर्ष 2011 में भगाना की घटना में दबंगों द्वारा दलित परिवारों को गांव से बहिष्कृत किया गया। उनको आजतक न्याय नहीं मिल पाया है। आज भी भगाना के परिवार हिसार में जिलाधीश कार्यालय के सामने डेरा डाले हुए हैं। 15 फरवरी, 2012 को उकलाना के दौलतपुर गांव में दलित जाति
के राजेश का हाथ इसलिए काट दिया गया, क्योंकि उसने दंबगों के मटके से पानी पी लिया था। 31 अगस्त 2012 को एक पुजारी ने दो दलितों को पूजा करने से रोक दिया। यह घटना चौटाला गांव की है।

2012 में पटटी गांव के एक युवक ने प्रेम विवाह किया तो दबंगों की पंचायत ने उसका मुंह काला कर पूरे गांव में घुमाया और उसके पिता पर जुर्माना लगाया। 9 सितंबर 2012 को नाबालिग दलित लड़की से दबंगों द्वारा सामूहिक बलात्कार के बाद लड़की के पिता ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली।

हरियाणा में दलित उत्पीडऩ तो सदियों से जारी है लेकिन आज के दौर में आर्थिक विकास व दलित आंदोलन ने दलितों को भी शिक्षित बनने के लिए प्रेरित किया है और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया है। अब वह सिर उठाकर जीना चाहता है। यह दबंग जातियों को स्वीकार्य नहीं है। उनको लगता है कि ये जातियां हमारी गुलामी करती थीं और आज इनका जीवन क्यों बदल रहा है। यही कुढऩ इनको दलितों पर अत्याचार करने के लिए प्रोत्साहित करती है। वे इस तथ्य का पूरा लाभ उठाते हैं कि दलित संसाधनों के मालिकाना से वंचित हैं और भूमिहीन हैं जबकि जाट ज्यादातर जमीनों के मालिक हैं। दलितों पर अत्याचार तो हुडडा सरकार के पहले चौटाला के राज में भी हुए लेकिन हुडडा सरकार में अत्याचार की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है।

जनवरी से अक्टूबर 2012 तक हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में बलात्कार के दर्ज मामले इस प्रकार हैं-

हिसार 94, करनाल 92, रेवाड़ी 89, रोहतक 87, गुडगांव 34, अम्बाला 31 व फरीदाबाद 28।

हरियाणा में जिन दबंगों द्वारा दलितों के घर जलाए जाते रहे हैं और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किए जाते रहे हैं, उसी दबंग जाति की खाप पंचायत है। खाप मध्ययुगीन सामंती बर्बरता की प्रतीक है। पिछले दिनों खाप पंचायत ने फैसला दिया था कि लड़कियों को मोबाइल नहीं रखना चाहिए। इससे लड़कियां खराब होती हैं। एक दूसरे फैसले में अंतरजातीय विवाह कर लेने पर विवाहित जोड़े को भाई-बहन बनाकर राखी बंधवाई गई थी। ये पंचायतें वैचारिक स्तर पर अंतरजातीय विवाह विरोधीै, दलित विरोधी और महिला विरोधी भूमिका अदा करती रही हैं। खाप पंचायतों की इन्हीं मूल्य-मान्यताओं ने हरियाणा में व्यापक पैमाने पर कन्या भू्रण हत्या करवाई, जिसके कारण वहां युवकों के मुकाबले युवतियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। खाप ने पिछले दिनों एक फैसला सुनाया था कि भ्रूण हत्या पर रोक लगाई जाए। मीडिया ने भी इस बात को प्रगतिशील विचार के रूप में प्रचारित किया। लेकिन इसके पीछे लड़कों की शादी न हो पाने की समस्या प्रमुख कारण थी। अब यही खाप पंचायतें लड़कियों की शादी की उम्र कम करके 15 साल करने की बात कर रही हैं। यह प्रदेश में लगातार बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं से ध्यान हटाने का प्रयास भी है, क्योंकि शादी की उम्र से बलात्कार की घटनाओं का कोई लेना-देना नहीं है।

सम्पूर्ण भारतीय समाज आज भी जाति प्रथा की चपेट में है। हरियाणा पुलिस प्रशासन भी जातीय पक्षधरता करता है। यहां के पुलिस प्रशासन में बहुसंख्या में जाट हैं, जिसके कारण दलितों को न्याय नहीं मिल पाता है। उनकी एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुडडा की कांग्रेस सरकार पिछले दस वर्षों से सत्ता में है। यह सर्वमान्य है कि यह सरकार दबंग जाति के समर्थन से ही बनी है। इसलिए भूपेंद्र सिंह हुडडा इन दबंगों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करते हैं। हरियाणा सरकार का चरित्र जातिवादी है। तमाम दलित पार्टियों एवं उनके नेता दलितों का प्रतिनिधि होने का दम भरते हैं मगर सच तो यह है कि वे दलितों के प्रतिनिधि नहीं हैं बल्कि वर्तमान शोषणकारी दलित विरोधी व्यवस्था ने उनको अपने भीतर समाहित कर लिया है। ये दल और उनके नेता दलित उत्पीडऩ की घटनाओं के विरोध में आंदोलन की बात तो छोडि़ए कोई बयान तक जारी नहीं करते।

(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

जेपी नरेला

सामाजिक कार्यकर्ता जेपी नरेला जाति उन्मूलन आंदोलन के संयोजक हैं

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