h n

जेएनयू : एक दलित कामरेड अध्यक्ष की व्यथा

जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कामरेड बत्तीलाल बैरवा द्वारा वार्षिक लाइफ बियांड जेएनयू कार्यक्रम में गत 6 जनवरी, 2013 को सुनाए गए इस प्रसंग ने सबको सन्न कर दिया। यह सभा जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्षों की थी और इन विशिष्टजनों में बत्तीलाल एकमात्र दलित थे

जब मैं 1996 में जेएनयूएसयू का अध्यक्ष बना तो एक सवर्ण लड़की ने मेरे आगे सिर्फ इसलिए थूक दिया, क्योंकि उसकी नजर में मैं जेएनयू जैसी संस्था के छात्रसंघ का अध्यक्ष होने लायक नहीं था। जब मैंने कैंपस में काम कर रहे मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के लिए आंदोलन किया, तो मुझ पर फिरौती वसूलने का आरोप लगाया गया। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कामरेड बत्तीलाल बैरवा द्वारा वार्षिक लाइफ बियांड जेएनयू कार्यक्रम में गत 6 जनवरी, 2013 को सुनाए गए इस प्रसंग ने सबको सन्न कर दिया। यह सभा जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्षों की थी और इन विशिष्टजनों में बत्तीलाल एकमात्र दलित थे।

गत 6 जनवरी, 2013 को जेएनयू, नई दिल्ली में आयोजित ‘लाइफ बियोंड जेएनयू’ कार्यक्रम में बोलते हुए एनसीपी राज्यसभा सांसद डीपी त्रिपाठी

बहरहाल, उपरोक्त आयोजन और कामरेड बत्तीलाल के अनुभवों के आलोक में यह सवाल अनुत्तरित नहीं रह जाता कि दलितों-मजदूरों की लड़ाई लडने वाला मार्क्सवादी कैंपस अपने 40 वर्षों के इतिहास में दूसरा दलित अध्यक्ष क्यों नहीं बना पाया? यहीं हमें बत्तीलाल के साथ छात्र आंदोलन के लिए किंवदंती बन चुके कामरेड चंद्रशेखर की भी याद आती है। इन्हीं कम्युनिस्टों ने पिछड़े समाज (कुशवाहा) में पैदा हुए चंद्रशेखर की पहचान को लम्बे समय तक छुपाये रखा। क्या यह कामरेड चंद्रशेखर, जिन्हें हम प्यार से चंदू के रूप में याद करते रहे हैं, के लोगों के साथ छलावा नहीं है? चंदू अपनी जाति-आधारित अस्मिता के प्रति भी सचेत थे। यह तथ्य बहुजन तबके से आने वाले लोक नाटककार भिखारी ठाकुर पर लिखे उनके लघु शोध प्रबंध में देखा जा सकता है। मंडल आंदोलन के समय सवर्ण छात्रों का मुकाबला करने के लिए उनके द्वारा बनाई गई रणनीतियों से भी आज हम परिचित हैं। उन्होंने इस लड़ाई में बहुजन तबके के छात्रों को अपने साथ गोलबंद किया था।

सीेपीएम महासचिव प्रकाश करात व अन्य श्रोता

इसी प्रसंग में जनता दल (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव की भी याद आती है। मंडल आंदोलन के नायक शरद यादव मंडल आंदोलन के दौरान ही जेएनयू में एक भाषण देने गए थे। उस समय उन्हें तथाकथित माक्र्सवादी सवर्ण छात्रों ने यह कहते हुए अपमानित किया था तथा उनके कपड़े खींचे थे कि यह यादव यहां जाति का वायरस फैलाने आया है। बहरहाल, उपरोक्त समारोह में कामरेड बत्तीलाल द्वारा दिया गया वक्तव्य कम्युनिस्ट संगठनों में कार्यरत पिछड़ी जाति के छात्रों की आंखें खोलने वाला है। बाहर से प्रगतिशील और जाति निरपेक्ष संस्थान अंदर से जातिवाद के रोग से किस कदर ग्रसित है, इसका बयान इस तथ्य से खुद-ब-खुद हो जाता है कि आज भी जेएनयू में मात्र 3 ओबीसी फैकल्टी हैं। हाल में हो रहीं नियुक्तियों में एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर एक भी ओबीसी को नहीं लाया गया है। लाइफ बियांड जेएनयू का आयोजन जेएनयू कन्वेंशन सेंटर में किया गया था, जिसे तीन सत्रों में बांटा गया था। पहले सत्र में समारोह का आरंभ विवि के कुलपति प्रोफेसर सोपोरी के द्वारा किया गया। समारोह को जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्षों ने संबोधित किया। प्रथम सत्र को संबोधित करने वालों में प्रकाश करात, आनंद कुमार, डीपी त्रिपाठी और डी रधुनंदन थे। दूसरे सत्र में आए हुए वक्ताओं में नलिनी रंजन मोहंती, रश्मि दोरायस्वामी, जगदीश्वर चतुर्वेदी, टीके अरुण, अमैया चंद्र और अमित सेन गुप्ता मौजूद थे। तीसरे और चौथे सत्र में आए हुए प्रमुख लोगों में सीताराम येचुरी, शकील अहमद खान, संदीप महापात्रा एवं अलबीना शकील ने सेमिनार को संबोधित करते हुए अपने-अपने अनुभव को विवि से जोड़कर भावनात्मक होते हुए छात्रों को देश को आगे बढाने के लिए सकारात्मक राजनीति करने पर जोर दिया। सेमिनार का समापन प्रोफेसर सुधा और देवेन्द्र चौबे ने की।

(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

जितेन्द्र यादव, जितेंद्र कुमार ज्योति

संबंधित आलेख

क्या है ओबीसी साहित्य?
राजेंद्र प्रसाद सिंह बता रहे हैं कि हिंदी के अधिकांश रचनाकारों ने किसान-जीवन का वर्णन खानापूर्ति के रूप में किया है। हिंदी साहित्य में...
बहुजनों के लिए अवसर और वंचना के स्तर
संचार का सामाजिक ढांचा एक बड़े सांस्कृतिक प्रश्न से जुड़ा हुआ है। यह केवल बड़बोलेपन से विकसित नहीं हो सकता है। यह बेहद सूक्ष्मता...
पिछड़ा वर्ग आंदोलन और आरएल चंदापुरी
बिहार में पिछड़ों के आरक्षण के लिए वे 1952 से ही प्रयत्नशील थे। 1977 में उनके उग्र आंदोलन के कारण ही बिहार के तत्कालीन...
कुलीन धर्मनिरपेक्षता से सावधान
ज्ञानसत्ता हासिल किए बिना यदि राजसत्ता आती है तो उसके खतरनाक नतीजे आते हैं। एक दूसरा स्वांग धर्मनिरपेक्षता का है, जिससे दलित-पिछड़ों को सुरक्षित...
दलित और बहुजन साहित्य की मुक्ति चेतना
आधुनिक काल की मुक्ति चेतना नवजागरण से शुरू होती है। इनमें राजाराम मोहन राय, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, पेरियार, आम्बेडकर आदि नाम गिनाए जा सकते...