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सामाजिक बहिष्कार जारी

हरियाणा के हिसार जिले के भगाना गांव में एक दलित युवक विक्रम को गांव में घूमने पर बिना किसी गुनाह के जाट समुदाय के लड़कों ने जातिसूचक अपशब्दों का प्रयोग करते हुए पीट दिया। गांव में आयोजित पंचायत में इस मुददे को उठाने पर सभी दलितों के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा कर दी गई

हरियाणा दलित उत्पीड़न की प्रयोगशाला बन चुका है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब दलितों के साथ जुल्म, उत्पीड़न और अत्याचार की घटनाएं सामने ना आती हों। उत्पीडन तब और बढ जाता है जब दलित पंचायतों के ऊल-जुलूल फरमान नहीं मानते। दलितों को उनके अपने ही गांव से भागने पर मजबूर किया जाता है। दूसरी ओर दलित सशक्त हो रहे हैं और उनकी ओर से भी चुनौतियां मिलनी शुरू हो गई हैं, यह भी जाटों को नहीं सुहाता। बदले में दलितों पर हमले दुगुने हो जाते हैं। हरियाणा के भगाना गांव में दलित उत्पीडन की ताजा घटना पर रपट।

हरियाणा के हिसार जिले के भगाना गांव में एक दलित युवक विक्रम को गांव में घूमने पर बिना किसी गुनाह के जाट समुदाय के लड़कों ने जातिसूचक अपशब्दों का प्रयोग करते हुए पीट दिया। गांव में आयोजित पंचायत में इस मुददे को उठाने पर सभी दलितों के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा कर दी गई। पीडि़त दलित युवक विक्रम का कहना है कि उन्हें सामान बेचने वाले गांव के दुकानदारों पर पंचायत ने 1100 रुपये के जुर्माने का ऐलान किया है। हालांकि इस आरोप को जाट जाति के लोग निराधार बताते हैं।

वहीं कुछ जाट जाति के लोगों ने बताया कि दलित युवक गांव की लड़कियों को छेड़ रहे थे और जब उन्हें रोकने की कोशिश की गई तो वे गाली-गलौज करने लगे और रोकने वालों को मुकदमों में फंसाने की धमकी देने लगे। इसके बाद दलित युवकों और सवर्ण जाति के लड़कों में बहस हुई। इन लोगों ने मारपीट की घटना से इनकार किया। हालांकि कुछ अन्य पिछड़ी जाति के लोगों ने दबे स्वर में दलितों की पिटाई की बात स्वीकार की। सवर्ण जाति और जाट जाति के लोग दलितों से इसलिए नाराज हैं, क्योंकि उन्होंने गैर-कानूनी रूप से आयोजित पंचायत की बात नहीं मानी। राजवीर जो सवर्ण जाति से आते हैं, कहते हैं दलितों ने गांव को बदनाम किया है। पंचायत में इलाके के सभी प्रभावशाली लोग होते हैं। दूसरी ओर दलितों का कहना है कि वे सिर्फ अदालत का फैसला मानेंगे।


भगाना से जाटों के आतंक के कारण विस्थापित एक परिवार के सदस्य जगदीश काजला बताते हैं कि गांव में उनकी जमीन पर जाटों ने अवैध कब्जा कर रखा है। जगदीश बताते हैं कि उनके साथ लगभग 50 परिवार भगाना छोड़कर हिसार स्थित लघु सचिवालय में शरण लिए हुए हैं लेकिन प्रशासन उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है। उलटे किसी ना किसी मामले में उन्हें फंसा जरूर रहा है। प्रशासन व जाटों के आतंक का दंश झेल रहे एक और विस्थापित परिवत के रामफल, रामेश्वर, बलराज, सतीश व धर्मपाल ने बताया कि पुलिस ने उनके हक के लिए आवाज उठाने पर उन्हें हवालात की सैर करा दी। दलितों में से बुली और जगदीश काजला कहते हैं, पंचायत में सभी जाट हैं, हमारा एक भी आदमी पंचायत में नहीं है। कई बार ऐसा हुआ है जब इस तरह की जाति पंचायतों में हमें बुलाया गया और उनका फैसला न मानने पर हमारी पिटाई हुई।

इसी बीच पुलिस ने शांति भंग करने और शासकीय कार्य में बाधा डालने के आरोप में हिसार स्थित लघु सचिवालय में स्थापित बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर परिसर को अतिक्रमण से बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे ग्यारह लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गांव के दलितों का कहना है कि झगड़ा जमीन विवाद के साथ उनके जमीर से भी जुड़ा हुआ है। इन लोगों ने बताया कि जाट इस बात से भी नाराज हैं कि दलित अब उनके यहां बेगार करना नहीं चाहते। दलित महिला रेशम कहती हैं, पहले तो ऐसा था कि किसी ने हमसे काम करवाया और मजदूरी दी तो दी वरना मना कर दिया। पर अब हमारे बच्चे उनका दबाव नहीं मानना चाहते।

ताजा घटना के बाद गांव में दलितों की आंखों में डर साफ दिखाई देता है, परंतु इस बार वे झुकने को तैयार नहीं हैं, वहीं दूसरी ओर मिर्चपुर कांड के बाद हिसार के कैमरी रोड स्थित तंवर फार्म हाउस में शरण लिए हुए दलित समुदाय के लोग अब भी अपने गांव मिर्चपुर लौटने को तैयार नहीं हैं। हाल में ही उनके हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे सीनियर एडवोकेट कोलिन गोंसाल्वेस को दलितों ने बताया कि जो परिवार कांड के बाद भी गांव में रह रहे हैं वे और भी नारकीय जीवन जीने पर विवश हैं। तंवर फार्म हाउस के मालिक और सर्वजन के उत्थान के लिए काम करने वाले वेदपाल तंवर का कहना है कि जाटों के आतंक से लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इन्हें पनाह देने के कारण जाट समुदाय के लोग तंवर को भी फंसा रहे हैं। आज हरियाणा में कानून एक मजाक बनकर रह गया है। हुडडा सरकार समस्या को सुलझाने की बजाय सवर्णों और जाट को आरक्षण देकर संविधान की अवमानना करते हुए समाज की समरसता को खत्म करने पर तुली हुई है।

(फारवर्ड प्रेस के मार्च 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

अमरेंद्र कुमार आर्य

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