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बहुजनों को ठगा ‘चीट’ फंड ने

बहुजन परिवारों के आम पुरुषों और महिलाओं से यह वायदा किया गया था कि उन्हें उनके निवेश पर ऊंची दर से लाभ प्राप्त होगा। इसी अपेक्षा में लोगों ने अपने घर, जमीन और काम-धंधे गिरवी रखकर चिट फंड में पैसे लगाए। कुछ लोगों ने अपने जीवनभर की कमाई निवेशित कर दी।

इस साल जनवरी से शारदा रियल्टी के चैक बाउंस होने शुरू हो गए थे और यह साफ था कि कोलकाता-स्थित शारदा समूह बर्बादी की राह पर है। अप्रैल आते- आते तक यह विपत्ति अपनी पूरी भयावहता में सामने आ गई। पश्चिम बंगाल के गांवों और कस्बों के हजारों छोटे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। इस तथाकथित चिट फंड घोटाले से गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।

बहुजन परिवारों के आम पुरुषों और महिलाओं से यह वायदा किया गया था कि उन्हें उनके निवेश पर ऊंची दर से लाभ प्राप्त होगा। इसी अपेक्षा में लोगों ने अपने घर, जमीन और काम-धंधे गिरवी रखकर चिट फंड में पैसे लगाए। कुछ लोगों ने अपने जीवनभर की कमाई निवेशित कर दी। कंपनी की ओर से भुगतान न प्राप्त होने से कई परिवार पूरी तरह टूट गए हैं। बारुईपुर की दलित रहवासी, पचास-वर्षीया उर्मिला प्रामाणिक ने खुद को आग के हवाले कर आत्महत्या कर ली। उन्होंने दूसरों के घरों में बर्तन साफ कर अपने जीवन में जो कुछ थोड़ी-बहुत बचत की थी, वह उन्होंने पूरी की पूरी शारदा समूह में लगा दी थी। अपना धन जल्दी ही दोगुना हो जाने की आशा में उन्होंने 30 हजार रुपये का निवेश इस फंड में किया था।

दुर्गापुर में रहने वाले याधव मांझी के पड़ोसी, जो उसकी तरह फूस की छत वाली झोपडिय़ों में रहते हैं, अब तक इस तैंतीस साल के बढई की मौत के धक्के से उबरे नहीं हैं। मांझी, जो कि बांकुरा से आकर दुर्गापुर में बसे थे, ने अपने घर की छत से फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। मांझी एक दलित थे और वे आकर्षक कमीशन कमाने की खातिर शारदा समूह के एजेंट बन गए थे। वे दुर्गापुर के माया बाजार इलाके में अकेले रहते थे और कंपनी में ताले डल जाने के बाद से अत्यंत परेशान थे। सैकड़ों निवेशक रोज उनके घर को घेर लेते, उन्हें गालियां देते और अपना पैसा वापस मांगते। इन हालातों से परेशान होकर उन्होंने अपनी जिंदगी समाप्त करने का निर्णय लिया।

परंतु राज्य और उसके बाहर के हजारों परिवारों को बर्बाद करने की जिम्मेदारी केवल चिट फंड कंपनी की नहीं है। गणेश सरकार 39 साल के रोज खाने-कमाने वाले मजदूर थे। वे इस कंपनी में हर महीने एक हजार रुपये जमा किया करते थे और उनसे यह वायदा किया गया था कि पंद्रह महीने बाद उन्हें 17,500 रुपये मिलेंगे। उनके अनुसार, हर बार पैसा जमा करने के बाद उन्हें कुछ ‘सर्टिफिकेट’ दिए जाते थे, जिनमें अंग्रेजी में कुछ लिखा होता था। बाद में पता चला कि गणेश सरकार को हर महीने, पंद्रह महीने बाद शारदा रिसोर्ट में हालीडे पैकेज की बुकिंग के सर्टिफिकेट पकड़ाए जाते रहे! सुदीप्तो सेन ने न केवल लोगों को ठगा बल्कि उसने गरीब और आसानी से दूसरों पर विश्वास कर लेने वाले लोगों के भोलेपन के साथ खिलवाड़ किया। उसके कारण आज हजारों लोग असहाय भिखारी बन गए हैं। उनके सिर पर छत भी नहीं बची है।

राजनीति के रंग में गहरे तक रंगे पश्चिम बंगाल में इस घटनाक्रम को लेकर आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला चल रहा है। जब यह घोटाला अखबारों की सुर्खियों में आया, तब ममता बनर्जी की पहली प्रतिक्रिया थी, ‘जो हो गया, सो हो गया। अब हम कानून लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।’ घोटाले पर टिप्पणी करते हुए वाम मोर्चा शासनकाल में वित्तमंत्री रहे अशीम दासगुप्ता कहते हैं, ‘तृणमूल कांग्रेस के सांसद इस चिट फंड कंपनी से जुड़े हुए हैं। यह कंपनी टीएमसी शासनकाल में मालामाल हुई है।’ यह गौरतलब है कि टीएमसी सांसद कुणाल घोष, शारदा समूह द्वारा संचालित चैनल 10 के मुख्य संपादक थे। ममता बनर्जी ने अपना बचाव करने के लिए सीआईडी और राज्य पुलिस बल के जरिए अपराधी को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने पर अधिक जोर दिया। मामले की ठीक तरह से जांच हो सके, इसलिए उन्होंने सीबीआई को भी जांच प्रक्रिया का हिस्सा बनाया। ममता ने यह भी कहा कि शारदा ग्रुप की स्थापना सन् 2006 में हुई थी और उस समय प्रदेश पर वाम मोर्चें का शासन था। उनका यह भी कहना था कि चिट फंड योजनाओं पर नजर रखने की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी की है।

शारदा ग्रुप के अध्यक्ष व कार्यपालक निदेशक सुदीप्तो सेन, रिसेप्शनिस्ट से कंपनी की डायरेक्टर बनी देवयानी मुखर्जी और सेन के सहायक अरविन्द सिंह चौहान को बिधाननगर पुलिस कमीश्नर द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (अमानत में खयानत), 420 (धोखाधड़ी) और 506 (धमकी देना) के अंर्तगत गिरफ्तार किया गया है। आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। उनसे पूछताछ जारी है। सभी निवेशक और कंपनी के एजेंट चाहते हैं कि इस घोटाले के मास्टरमाइंड को, जिसने उनकी जिंदगियां बर्बाद कर दी हैं, कड़ी से कड़ी सजा मिले। लोग अपने खून-पसीने की कमाई का पैसा वापस चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने यह आश्वासन दिया है कि वे गरीब लोगों को उनका पैसा वापस दिलवाने में मदद करेंगी। परंतु यह कैसे संभव होगा, समय ही बताएगा।

इस बीच, सुदीप्तो सेन की जमानत की अर्जी खारिज करते हुए पश्चिम बंगाल की एक स्थानीय अदालत ने 18 मई को सेन और उनके नजदीकी सहायक अरविंद चौहान को 31 मई तक के लिए जेल भेज दिया।

(फारवर्ड प्रेस के जून 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

पूनम मंडल

पूनम मंडल पश्चिम बंगाल में फारवर्ड प्रेस की संवाददाता हैं

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