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दलित सरपंच रोशनी ने दिखाया रास्ता

रोशनी कहती हैं कि मैं अपने गांव की पहली दलित महिला सरपंच थी और पहली दलित स्नातक भी। मैंने जब चुनाव लड़ा उस समय 8 पुरुष भी चुनाव मैदान में थे। चुनाव जीत जाने के बाद भी वे व्यंग्य कसतेे थे लेकिन मैंने अपने कार्यकाल के 5 साल में खुद को साबित करके दिखा दिया

नारनौल : हरियाणा के जिला महेंद्रगढ के गांव कोथल खुर्द की पूर्व सरपंच रोशनी देवी सिर्फ  दलित समाज के लिए ही नहीं बल्कि देश की सभी संघर्षशील महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। 2005 से लेकर 2010 तक कोथल खुर्द की सरपंच रहीं रोशनी देवी ने शराबबंदी के लिए गांव में 18 महिलाओं की टीम बनाकर कड़ा संघर्ष किया। इस कार्य के लिए उन्हें व उनकी टीम की सदस्यों को 11 जुलाई 2009 को राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने सम्मानित भी किया था।

 

रोशनी ने सरपंच रहते हुए गांव में शराब पीने वाले व्यक्तियों पर 500 रुपये जुर्माने का भी प्रावधान किया। उनकी टीम रोजाना शाम को गांव के चारों तरफ  शराब पीने वाले पुरुषों पर नजर रखती थी तथा उन्हें पकड़ती थी। रोशनी बताती हैं कि शुरुआत में तो लोगों द्वारा इसका जबरदस्त विरोध किया गया लेकिन धीरे-धीरे लोग उनके अभियान से जुड़ते चले गए। रोशनी बताती हैं कि सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी दिलचस्पी किशोरावस्था से ही रही थी, इसी कारण उनके पति रामानंद ने उन्हें गांव का सरपंच बनने के लिए प्रेरित किया।

रोशनी कहती हैं कि मैं अपने गांव की पहली दलित महिला सरपंच थी और पहली दलित स्नातक भी। मैंने जब चुनाव लड़ा उस समय 8 पुरुष भी चुनाव मैदान में थे। चुनाव जीत जाने के बाद भी वे व्यंग्य कसतेे थे लेकिन मैंने अपने कार्यकाल के 5 साल में खुद को साबित करके दिखा दिया। वह कहती हैं कि मैं मुहम्मद इकबाल की इन पंक्तियों में यकीन रखती हूं कि खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से, खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है।

वे अब गांव छोड़कर नारनौल (हरियाणा का एक प्रमुख शहर) में आ बसी हैं, जहां उनके पति, जो एलआईसी में अधिकारी हैं तथा हरियाणा प्रदेश अनुसूचित जाति, जनजाति कर्मचारी संघ के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं, ने एक मकान बनाया है। वे बताती हैं कि गांव छोड़कर शहर में आने का मुख्य कारण अपने दोनों बच्चों को अच्छी व उच्च शिक्षा प्राप्त करवाना है। उनका एक बेटा 12वीं तथा दूसरा बीए में पढ रहा है। रोशनी यहां रहकर भी सखी सेवा समिति महिला संगठन से जुड़कर महिलाओं को भ्रूण हत्या, अत्याचार व दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के विरुद्ध जागरूक करने का काम कर रही हैं।

(फारवर्ड प्रेस के जून 2013 अंक में प्रकाशित)

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संजय मान

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