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जजों की नियुक्ति : नहीं मिले योग्य दलित-आदिवासी!

राजस्थान हाईकोर्ट के नियमों के मुताबिक 250 अंकों की लिखित परीक्षा में कम से कम 40 प्रतिशत और साक्षात्कार के 30 अंकों में से न्यूनतम 7.5 अंक लाने वाले को ही नियुक्ति के योग्य माना जाता है। प्रथम स्थान पर रहे दलित वकील को लिखित में 250 में से 131 अंक प्राप्त हुए परंतु साक्षात्कार में उसे 30 में से सिर्फ 6 अंक ही दिए गए

राजस्थान में अपर जिला न्यायाधीशों की सीधी भर्ती में दलितों के 6 में से 5 और आदिवासियों के 2 में से 1 पद खाली रह गए। राजस्थान हाईकोर्ट ने 25 मई 2013 को भर्ती परिणाम घोषित किया है। इस बार भी रटा-रटाया जवाब सामने आया। योग्य व्यक्ति नहीं मिले। इन पदों के लिए कम से कम सात साल के अनुभव वाले वकील ही योग्य थे।

आश्चर्यजनक पहलू यह है कि लिखित परीक्षा और साक्षात्कार दोनों में प्राप्त अंकों के कुल योग में मेरिट में प्रथम आए दलित वकील को इस पद के योग्य नहीं माना गया। मेरिट में दूसरे नंबर पर रहे दलित वकील का चयन किया गया परंतु पांच पद खाली छोड़ दिए गए।

राजस्थान हाईकोर्ट के नियमों के मुताबिक 250 अंकों की लिखित परीक्षा में कम से कम 40 प्रतिशत और साक्षात्कार के 30 अंकों में से न्यूनतम 7.5 अंक लाने वाले को ही नियुक्ति के योग्य माना जाता है। प्रथम स्थान पर रहे दलित वकील को लिखित में 250 में से 131 अंक प्राप्त हुए परंतु साक्षात्कार में उसे 30 में से सिर्फ 6 अंक ही दिए गए। उसे कुल 137 अंक मिले परंतु उसे इसलिए नियुक्ति के योग्य नहीं माना गया, क्योंकि वह साक्षात्कार में न्यूनतम 7.5 अंक प्राप्त नहीं कर पाया। नियुक्ति के लिए योग्य माने गए दूसरे दलित वकील ने लिखित में 121 और साक्षात्कार में 7.5 कुल 128.5 अंक प्राप्त कर इस भर्ती में एकमात्र दलित न्यायाधीश बनने का गौरव हासिल किया।

प्रश्न यह है कि अगर कुल अर्जित अंकों के आधार पर नियुक्ति नहीं देकर सिर्फ साक्षात्कार में प्राप्त न्यूनतम अंकों की अनिवार्यता पर ही नियुक्ति दी जानी थी तो लिखित परीक्षा का अर्थ ही क्या था। स्पष्ट है कि साक्षात्कार के अंकों की अनिवार्य शर्त के जरिए हाईकोर्ट नियुक्ति में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है। एक और वजह यह है कि आरक्षित पदों के लिए अगर लगातार तीन भर्तियों में कोई योग्य उम्मीदवार नहीं पाए जाते हैं तो वह पद सामान्य पदों में परिवर्तित हो जाते हैं और राजस्थान हाईकोर्ट में आरक्षित पदों के लिए बैकलाग या विशेष भर्ती अभियान का कोई नियम नहीं है।

सबसे खास बिन्दु यह है कि राजस्थान हाईकोर्ट अपनी इस भर्ती प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के 1 फरवरी, 2010 को नई दिल्ली के एक दलित रमेश कुमार बनाम हाईकोर्ट आफ देहली के मुकदमे में दिए गए फैसले को नजरंदाज करने से भी नहीं चूका। रिट याचिका संख्या 57/2008 में निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक पुराने फैसले के हवाले से यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दोहराई।

एक खास तथ्य और। हाईकोर्ट ने 19 जुलाई 2011 को राजस्थान उच्च न्यायिक सेवा के लिए यह भर्ती निकाली थी। इसमें वकीलों से सीधे अपर जिला न्यायाधीश बनने के लिए 39 पदों और वर्तमान में अपर जिला न्यायाधीश के रूप में अंतरिम रूप से फास्ट ट्रेक जज के पदों पर काम कर रहे मजिस्ट्रेटों से 21 पदों के लिए आवेदन मांगे गए। करीब पचास न्यायाधीशों ने परीक्षा दी और सिर्फ 9 ही यह परीक्षा पास कर पाए। इनमें से भी 8 पदों पर ही भर्ती की गई। वकीलों ने मांग की थी कि पद पर काम करने के बावजूद उसी पद की भर्ती में अनुत्तीर्ण हुए न्यायाधीशों को नौकरी से निकाला जाए क्योंकि उनकी अयोग्यता जाहिर हो चुकी है। हाईकोर्ट ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।

(फारवर्ड प्रेस के जुलाई 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

राजेंद्र हाड़ा

राजेंद्र हाडा फारवर्ड प्रेस के अजमेर संवाददाता हैं

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