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‘जम्मू-कश्मीर में हो रही है आरक्षण नियमों की अनदेखी’

जो आरक्षण मिलना चाहिए, वह ठीक प्रकार से लागू नहीं किया जा रहा है। सरकार में मंत्री की हैसियत के बावजूद मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आरक्षण सही प्रकार से लागू नहीं हो रहा है। कुछ विभाग हैं, जिनमें नियमों की पूरी अनदेखी हो रही है, जिसमें खासतौर से पुलिस विभाग नंबर वन है, जहां आरक्षण के नियमों का विशेष तौर से कांस्टेबल के स्तर पर तो बिल्कुल ही ख्याल नहीं रखा जा रहा। शिक्षा के क्षेत्र में भी आरक्षण का ध्यान नहीं रखा जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर के वन एवं पर्यावरण मंत्री मियां अल्ताफ अहमद की पहचान एक गुर्जर नेता के तौर पर भी रही है। उनके पिता मियां बशीर, जिन्हें लोग सज्जाद नशीन जयारत बाबा जी साहिब लारवी के नाम से भी जानते हैं, और उनके दादा हजरत मियां निजाम दीन लारवी, जम्मू कश्मीर के धार्मिक नेता रहे हैं। गुर्जर-बकरवाल समाज के बीच इनके परिवार का सम्मान है। जम्मू कश्मीर में गुर्जर और बकरवाल समाज को एसटी में रखा गया है। राज्य में आरक्षण की व्यवस्था और इससे जुड़े विषयों पर मंत्री मियां अल्ताफ अहमद से आशीष कुमार अंशु की बातचीत के प्रमुख अंश

बतौर गुर्जर नेता, जम्मू-कश्मीर में गुर्जरों की क्या समस्याएं आप देखते हैं?

वर्ष 2001 की जनगणना के बाद से राज्य में गुर्जरों को एसटी का दर्जा मिला है। उसके मिलने के बाद निश्चित तौर पर बेहतरी आई है। वे राज्य में उपेक्षित थे। एसटी का दर्जा मिलने के बाद, खास तौर से शिक्षा, नौकरी के अवसरों में हमें हिस्सेदारी मिली। अभी पूरी हिस्सेदारी तो नहीं मिली लेकिन समाज में बेहतरी आई है। गुर्जरों के इलाकों में आधारभूत संरचना विकसित करने की जो बात है, उसका लाभ अभी हमें नहीं मिला। चाहे वह रजौरी-पूंछ, जम्मू-कश्मीर हो या फिर डोडा का इलाका। वहां पानी, सड़क, बिजली से संबंधित अधिक लाभ नहीं मिला।

जो अनुसूचित जनजाति के लिए तय आरक्षण है, क्या यहां सही प्रकार से उन्हें मिल रहा है?

जो आरक्षण मिलना चाहिए, वह ठीक प्रकार से लागू नहीं किया जा रहा है। सरकार में मंत्री की हैसियत के बावजूद मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आरक्षण सही प्रकार से लागू नहीं हो रहा है। कुछ विभाग हैं, जिनमें नियमों की पूरी अनदेखी हो रही है, जिसमें खासतौर से पुलिस विभाग नंबर वन है, जहां आरक्षण के नियमों का विशेष तौर से कांस्टेबल के स्तर पर तो बिल्कुल ही ख्याल नहीं रखा जा रहा। शिक्षा के क्षेत्र में भी आरक्षण का ध्यान नहीं रखा जा रहा है।

जम्मू कश्मीर में लंबे समय से यह मांग रही है कि पहाडिय़ों को भी आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि उनकी भी हालत गुर्जरों से बेहतर नहीं है। इस पर आप लोगों ने विचार नहीं किया?

पहाडिय़ों को आरक्षण देने के संबंध में विचार किया जा सकता है, लेकिन पहाड़ी की पहचान कैसे हो? पहाड़ी का अर्थ है जो भी पहाड़ में रहता हो। इसमें सभी तरह की जातियां शामिल हैं। वैसे, आरबीए के अन्तर्गत जो आरक्षण मिल रहा है, उसमें पहाड़ी भी शामिल हैं। उन्हें भी आरबीए का लाभ मिल रहा है।

आरबीए (रेजिडेन्ट ऑफ बैकवर्ड एरिया) के नाम पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) से अधिक आरक्षण जम्मू-कश्मीर में दिया जाता है। क्या यह न्यायोचित है?

आरबीए से हम पर किसी प्रकार का असर नहीं पड़ता। आरबीए बिल्कुल सही है, क्योंकि जो पिछड़ा इलाका है, वहां के लोग कभी मुख्यधारा से जुड़ नहीं पाएंगे। रजौरी है, पूंछ का क्षेत्र है, वे कभी मुख्यधारा से जुड़ ही नहीं पाएंगे। इस तरह आरबीए बिल्कुल सही है।

बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर ने हमेशा सामाजिक बराबरी की बात की। इसलिए देश में आरक्षण जाति-आधारित है। क्या आरबीए द्वारा मिल रहा आरक्षण सभी जातियों के लोगों को मिल रहा है?

मैं आरबीए पर बहस नहीं करना चाहता। मेरा नुख्ता-ए-नजर यह है कि कुछ कमियां होती हैं, जब भी हम कोई बड़ा कदम उठाते हैं तो। आरबीए से भी लोगों की मुश्किलें हल हुईं हैं। लाखों लोगों को इसका फायदा मिला है।

इस्लाम बराबरी में यकिन रखता है। जाति के आधार पर गैर बराबरी, भेदभाव यहां नहीं है। लेकिन गुर्जर, जो मुस्लिम आबादी है, उसे जाति के आधार पर पिछड़ा मानना, क्या गैर इस्लामिक नहीं है?

इस्लाम कहता है कि गरीबों की मदद करो। इसलिए इसमें कुछ भी गैर इस्लामिक नहीं है।

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

आशीष कुमार अंशु

मासिक पत्रिका सोपान से जुडे आशीष कुमार अंशु की कई खोजी रिपोर्टें चर्चित रहीं है। हिंदी सोशल मीडिया में उनकी पहचान 'उंगलबाज डॉट कॉम’नाम से समसामायिक राजनैतिक, सामाजिक परिदृश्य पर धारदार व्यंग्य करने वाले के रूप में तथा दक्षिणपंथ के प्रतिनिधि पत्रकार के रूप में है

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