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बोधगया धमाका : हिंदुत्ववादियों की ओर शक की सुई

भारतीय राजनीति में ‘हिन्दू राष्ट्र’ की अवधारणा से प्रेरित कई संगठन आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं। स्वामी असीमानंद, स्वामी दयानंद, साध्वी प्रज्ञा सिंह और उनके साथी ऐसे लोगों में शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, यह गलत धारणा कि ‘सभी आतंकी मुसलमान होते है’ ने बरसों तक उन्हें बचाए रखा। निश्चित तौर पर इस मामले में निष्पक्षता से और सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जांच किए जाने की आवश्यकता है

पिछले महीने (8 जुलाई 2013) बोधगया के पवित्र तीर्थस्थल में धमाके हुए। धमाकों के तुरंत बाद से यह कहा जाने लगा कि ये धमाके म्यंनमार में बौद्धों द्वारा, रोंहिग्या मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिए ‘इंडियन मुजाहिद्दीन’ द्वारा किए गए हैं। यह घटनाचक्र पिछले कुछ वर्षों में कई बार दुहराया जा चुका है। पहले किसी धमाके के लिए किसी पाकिस्तानी या मुस्लिम संगठन को दोषी ठहराया जाता है और बाद में यह सामने आता है कि उसके पीछे स्वामी असीमानंद या उनके जैसे अन्य लोग थे। जो लोग आतंकी हमलों का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण करते रहे हैं, उनका कहना है कि बोधगया पर आतंकी हमले का नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ऩे से कुछ संबंध हो सकता है। नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का मुखिया नियुक्त किए जाने के विरोध में एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था। मोदी ने बिहार में भाजपा कार्यकताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘नीतिश कुमार को सबक सिखाया जायेगा’ इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा, मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना दावेदार घोषित करेगी। जहां तक इंडियन मुजाहिदीन का सवाल है, उसका नाम बम धमाकों के कुछ ही घंटों बाद सामने आ गया था और भाजपा ने उसे खुशी-खुशी लपक लिया। इंडियन मुजाहिदीन की क्या भूमिका है? उसपर किसका नियंत्रण है? आदि जैसे मूल प्रश्नों का उत्तर आज तक नहीं मिल सका है। कुछ सालों पहले तक, इंडियन मुजाहिदीन की बजाए हर हमले के पीछे सिमी का हाथ बताया जाता था। सिमी पर प्रतिबंध भी लगाया गया और जब प्रतिबंध को अदालत में चुनौती दी गई तो न्यायमूर्ति लता मित्तल अधिकरण ने पाया कि संस्था पर प्रतिबंध लगाने का कोई कारण नहीं था। परंतु लोगों के दिमाग में यह भर दिया गया था कि सिमी एक आतंकवादी संगठन है।

भाजपा की ओर से रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ‘मीडिया के अनुसार, बेकरी मामले में शामिल आतंकियों ने बोधगया के मंदिर में रैकी की थी। कई चेताविनयां दी गईं परंतु सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए’। इसके विपरीत, कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है कि यह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास है और यह भी कि गैर-भाजपा सरकारों और विशेषकर नीतीश कुमार को बहुत सावधान रहना चाहिए। दरअसल, भाजपा जानती है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ही वह सीढ़ी है जो उसे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा सकती हैं।

इस घटना का एक पहलू, जिसे लगभग नजरअंदाज किया जा रहा है वह है विनोद मिस्त्री नाम के एक बढ़ई का बैग और आईडी कार्ड घटनास्थल से बरामद होना। इस बैग में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पहना जाने वाला पारंपरिक परिधान पाया गया है। इससे हम क्या नतीजा निकाल सकते हैं? निर्दोष मुसलमानों की मदद करने के लिए गठित संगठन ‘रिहाई मंच’ कहता है, ‘जिस तरह से इस मामले में विनोद मिस्त्री का नाम सामने आ रहा है और यह पता चला है कि उसके बैग में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़े भी पाए गए हैं और जिस प्रकार उर्दू में लिखे गए पत्र मंदिर से मिले हैं उससे ऐसा लगता है कि बोधगया में एक और मालेगांव हुआ है। मालेगांव में भी घटनास्थल से एक नकली दाढ़ी जब्त की गई थी और अंत में यह पता चला कि इसके पीछे आरएसएस के लोग थे।’

भारतीय राजनीति में ‘हिन्दू राष्ट्र’ की अवधारणा से प्रेरित कई संगठन आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं। स्वामी असीमानंद, स्वामी दयानंद, साध्वी प्रज्ञा सिंह और उनके साथी ऐसे लोगों में शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, यह गलत धारणा कि ‘सभी आतंकी मुसलमान होते है’ ने बरसों तक उन्हें बचाए रखा। निश्चित तौर पर इस मामले में निष्पक्षता से और सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जांच किए जाने की आवश्यकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि गौतम बुद्ध से जुड़े एक पवित्र स्थान को हिंसा का निशाना बनाया गया है। इसके दोषियों को सजा जरूर मिलनी चाहिए। जरूरत इस बात की भी है कि जब तक कोई ठोस सबूत न मिल जाएं तब तक इस घटना को रोंहिग्या मुसलमानों से जोड़ऩे से हम सब परहेज करें।

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

राम पुनियानी

राम पुनियानी लेखक आई.आई.टी बंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।

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