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व्यवसाय प्रारंभ करने से पहले मार्केट रिसर्च जरूर करें बहुजन उद्यमी

सबसे पहले हम बाजार की मांग की बात करें। तुम्हें यह पता लगाना होगा कि लोग क्या पाना/खरीदना चाहते हैं। सामान्यत: वे वह पाना चाहते हैं जिससे उनकी आवश्यकताएं पूरी हों। अब्राहम मेस्लो नामक एक सज्जन ने आवश्यकताओं के पदानुक्रम की अवधारणा को जन्म दिया और व इस कारण उन्हें ढेर सारी प्रसिद्धि मिली

प्रिय दादू,

अपना व्यवसाय शुरू करने’ विषय पर आपके पत्र के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी दिलचस्पी यह जानने में है कि मार्केट रिसर्च के बारे में आपका क्या कहना है। क्योंकि व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक ओबीसी व दलितों की मदद के लिए बहुत कम मार्केट रिसर्च उपलब्ध है।

सप्रेम
विनोदिनी

प्रिय विनोदिनी,

हां, तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। ओबीसी, दलित-बहुजन उद्यमियों की मदद के लिए बहुत कम मार्केट रिसर्च की जाती है। दरअसल, हमारे देश में, किसी भी तरह की मार्केट रिसर्च का घोर अभाव है। यह बहुत अजीब इसलिए लगता है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत विशाल है। हमारे देश में मार्केट रिसर्च न होने का कारण बहुत साफ हैं। सारे व्यवसाय, ज्ञान के आधार पर चलाये जाते हैं। हम भारतीय, पारम्परिक रूप से अपना ज्ञान दूसरों के साथ बांटने के लिए अनिच्छुक रहते हैं। जहां तक व्यवसाय करने वाले समुदायों का सवाल है, वे तो व्यवसाय संबंधी अपने ज्ञान को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि इससे उनके प्रतियोगियों की संख्या में वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त, कुछ सालों पहले तक, संपर्क-संबंध, व्यवसाय और बाजार की जानकारी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थे क्योंकि सम्पर्कों-संबंधों से ही आपको बाजार में प्रवेश मिलता था, न कि उपलब्ध अवसरों या आपके गुणों (व्यापार में आपके उत्पाद या सेवा की गुणवत्ता या कीमत) के आधार पर। आर्थिक उदारीकरण के कई अच्छे और कई बुरे नतीजे हुए हैं। एक अच्छा नतीजा यह हुआ है कि अब व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ऩे के लिए आपके गुणों का महत्व बढ़ गया है और सम्पर्कों-संबंधों का कम हुआ है। यह सब तो ठीक है, परन्तु इससे तुम्हें मार्केट रिसर्च के बारे में कुछ भी पता नहीं चला होगा। तो यह रही आवश्यक जानकारी।

मार्केट रिसर्च, बाजार की मांग, उसके आकार व प्रतियोगिता के बारे में सूचनाओं व जानकारियों को सुनियोजित ढंग से इकट्ठा करना और उनका विश्लेषण करना है। इसे समझने के लिए सबसे पहले हम बाजार की मांग की बात करें। तुम्हें यह पता लगाना होगा कि लोग क्या पाना/खरीदना चाहते हैं। सामान्यत: वे वह पाना चाहते हैं जिससे उनकी आवश्यकताएं पूरी हों। अब्राहम मेस्लो नामक एक सज्जन ने आवश्यकताओं के पदानुक्रम की अवधारणा को जन्म दिया और व इस कारण उन्हें ढेर सारी प्रसिद्धि मिली। यद्यपि इस पदानुक्रम की अपनी कमियां हैं परन्तु बाजार की मांग पर चर्चा के लिए यह काफी है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि तुम अपने व्यवसाय के जरिए, जिस आवश्यकता की पूर्ति करने जा रही हो, वह इस पदानुक्रम में कहां स्थित है।

तुम्हें यह जानकारी भी होनी चाहिए कि तुम्हारे ग्राहकों के पास उनकी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद कितना धन बचा रहता है। तुम्हें उनकी क्रय शक्ति का अंदाजा भी होना चाहिए। अगर तुम्हारा लक्ष्य ऐसे ग्राहकों तक पहुंचना है, जो गरीब हैं परन्तु जिनके पास समय का अभाव नहीं हैं तो वे काफी दूर जाकर भी उस उत्पाद या सेवा को क्रय करने के लिए तैयार रहेंगे, जो तुम्हारे उत्पाद या सेवा से सस्ती हो, बशर्ते दोनो की गुणवत्ता समान हो। दूसरी ओर, अगर तुम्हारे ग्राहक ऐसे लोग हैं जो धनी हैं और जिनके पास समय की बहुत कमी है तो वे वहीं से सामान खरीदना पसन्द करेंगे, जहां वे कम से कम समय में खरीददारी कर सकें। परन्तु यदि तुम ऐसे ग्राहकों को आकर्षित करना चाहती हो जो धनी भी हैं और जिनके पास पर्याप्त समय भी उपलब्ध है, तब तुम्हें यह ध्यान में रखना होगा कि ऐसे ग्राहक न तो समय बचाने के इच्छुक होंगे और न सस्ते दामों पर चीजें खरीदने के। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण होगी वस्तु की गुणवत्ता। इस तरह, कई ऐसे मुद्दे होंगे जिनका तुम्हें अध्ययन और विश्लेषण करना होगा। चूंकि प्रकाशित मार्केट रिसर्च रपटें हमारे देश में कम ही उपलब्ध हैं, इसलिए तुम्हें अपने व्यक्तिगत अवलोकन और अपने परिवारजनों, मित्रों और अन्य व्यवसायियों से चर्चा पर निर्भर रहना होगा।

अब हम बाजार के आकार की बात करें। स्वाभाविकत: भारत जैसे देश में बाजार बहुत विशाल है। परन्तु पूरे बाजार के आकार में तुम्हारी रूचि नहीं है। तुम्हारी रूचि तो बाजार के केवल उस हिस्से के आकार में है, जिस तक तुम पहुंच सकती हो। यह निर्भर करेगा इस बात पर कि तुम्हारा व्यवसाय कहां अवस्थित है, माल परिवहन की सुविधा उपलब्ध है या नहीं और उसकी लागत कितनी है। इसके अलावा, यह इस बात पर भी निर्भर है कि तुम अपना समान बेचने के लिए किन और चैनलों का इस्तेमाल कर रही हो। अत: नई दिल्ली रेलवे स्टेशन और किसी बस्ती या झुग्गी कालोनी में मिठाई की दुकान खोलने या अपनी मिठाईयों को डाक से भेजने में बहुत अंतर है।

अब हम प्रतियोगिता की बात करें। हमारे देश में व्यवसाय के लगभग हर क्षेत्र में जबरदस्त प्रतियोगिता है। परन्तु तुम्हें सिर्फ यह पता लगाना होगा कि जिस बाजार में प्रवेश करने की तुम सोच रही हो, उसमें तुम्हारे कौन व कितने प्रतियोगी हैं? ग्राहकों का उत्पाद व सेवाऐं क्रय करने का निर्णय किस कारक पर निर्भर करता है (सुविधा, कीमत, गुणवत्ता और या सेवा)? वे महीने या हफ्ते में कितनी बार खरीददारी करते हैं? वे दिन के किस समय खरीददारी करना पसंद करते हैं? वे एक बार में कितनी मात्रा में वस्तु खरीदते हैं? किस तरह का ग्राहक तुम्हारे किस प्रतियोगी से सामान खरीदता है और क्यों, इसका तुम जितनी अच्छी तरह से अध्ययन करोगी, उतने ही बेहतर तरीके से तुम यह सुनिश्चित कर सकोगी कि ग्राहक तुम्हारे प्रतियोगी की बजाय तुमसे सामान और सेवाऐं खरीदें। तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए अपने प्रतियोगियों के मुकाबले ग्राहकों को बेहतर सेवा देना।

परन्तु याद रखो कि प्रतियोगी कभी स्थाई नहीं रहते। वे बाजार के अनुसार स्वयं को बदलते रहते हैं। वे इस बात पर नजर रखते हैं कि ग्राहकों के व्यवहार में क्या परिवर्तन आ रहा है। इसलिए तुम्हें न केवल वर्तमान में प्रतियोगिता की स्थिति का अध्ययन करना होगा वरन तुम्हें यह भी अंदाजा लगाना होगा कि यदि तुम व्यवसाय में प्रवेश करोगी, तो तुम्हारे प्रतियोगियों की प्रतिक्रिया क्या रहेगी। अगर तुम उतनी ही गुणवत्ता की वस्तु कम कीमत पर बाजार में उपलब्ध करवाने लगोगी तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी। क्या वे अपने सामान की कीमत गिरा देंगे? या वे तुम्हें नजरअंदाज करेंगे और यह मानकर चलेंगे कि तुम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकोगी क्योंकि वे बहुत दिनों से इस व्यवसाय में हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वे अपने समान की कीमत बढ़ा दें ताकि लोगों को लगे कि उनके समान की गुणवत्ता बहुत उच्च है? अगर तुम बेहतर सेवाएं उपलब्ध कराओगी तो क्या तुम्हारा प्रतियोगी भी अपनी सेवाओं का स्तर सुधारेगा? तुम्हें बाजार की मांग, उसके आकार और तुम्हारे प्रतियोगियों को ध्यान में रखते हुए काम करना होगा।

व्यापार में स्वतंत्रता और अपने ढंग से काम करने का मौका उपलब्ध होता है। परन्तु तुम सही राह पर चल सको और सही कदम उठाओ इसके लिए यह जरूरी है कि तुम पहले होमवर्क करो अर्थात बाजार के आकार, उसकी मांग और अपने प्रतियोगियों पर गहन और विस्तृत शोध।

सप्रेम दादू

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में  ‘मार्केट रिसर्च’ शीर्षक से प्रकाशित)

लेखक के बारे में

दादू

''दादू'' एक भारतीय चाचा हैं, जिन्‍होंने भारत और विदेश में शैक्षणिक, व्‍यावसायिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में निवास और कार्य किया है। वे विस्‍तृत सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक मुद्दों पर आपके प्रश्‍नों का स्‍वागत करते हैं

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