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ब्राह्मणों का प्रवेश वर्जित

यद्यपि इसे आधुनिक, प्रगतिशील और सर्वथा उचित सोच नहीं कहा जा सकता लेकिन, आम्बेडकर नवयुवक दल का मानना है कि ब्राह्मण जाति के संपूर्ण बहिष्कार की आवश्यकता है। इससे उन्हें दलितों के साथ किये गये अन्याय का अहसास होगा तथा दलित समाज में आत्म सम्मान की भावना आएगी

पंजाब में दलित समाज के हित में कई सालों से काम कर रहे ‘डॉ आम्बेडकर नवयुवक दल’ ने एक नियम बना रखा है। उसके सदस्यों ने अपने घरो में ब्राह्मणों के प्रवेश पर घोषित रूप से, बजाप्ते बोर्ड लगवा कर, पाबन्दी लगा दी है, जिस पर लिखा है– ‘ब्राह्मणों का प्रवेश वर्जित है’। वे ब्राह्मणों के हाथ से बना खाना नहीं खाते, ना ही उन्हें अपनी किसी वस्तु को स्पर्श करने देते हैं।

पिछले वर्ष का वाकया है। लुधियाना में नगर निगम के चुनाव हो रहे थे। चुनाव प्रचार के क्रम में एक पार्षद पद का ब्राह्मण उम्मीद्दवार, दल के प्रदेश महासचिव बंशीलाल प्रेमी के घर में वोट मांगने के उद्देश्य से घुस गया। इससे बंशीलाल इतना खफा हुए कि उन्होंने तुरंत घर को अच्छी तरह धुलवा कर, शुद्धि की।

दल के सदस्य बताते हैं कि ‘एक बार दिल्ली के एक कार्यक्रम से हिस्सा लेकर बस से लुधियाना वापस आ रहे थे। ड्राईवर ने हाईवे के एक बड़े रेस्त्रां पर बस रोकी। वेटर ने खाना हमारी टेबल पर लगाया ही था कि अचानक दल के एक कार्यकर्ता की नजर रेस्त्रां के मालिक पर पड़ी, जो सर पर लम्बा-सा तिलक लगाकर कर बैठा था। यह देखते ही सभी लोग खाना छोड़कर उठ खड़े हुए। हमने वेटर से कहा कि यह खाना जूठा नहीं है। उठाना है तो उठा लो अन्यथा इसके पैसे ले लो। यह देख मालिक दौडता आया और खाना छोडने का कारण पूछने लगा। मालिक को जिज्ञासा हुई कि आखिर ये लोग ऐसी कौन सी उच्च जाति के हैं, जो एक ब्राह्मण के होटल का भी खाना नहीं खा रहे हैं। कई बार पूछने पर जब हम लोगों ने बताया कि हम भंगी और चमार जाति के हैं, तो उस पंडित की हालत देखने लायक थी।’

यद्यपि इसे आधुनिक, प्रगतिशील और सर्वथा उचित सोच नहीं कहा जा सकता लेकिन, आम्बेडकर नवयुवक दल का मानना है कि ब्राह्मण जाति के संपूर्ण बहिष्कार की आवश्यकता है। इससे उन्हें दलितों के साथ किये गये अन्याय का अहसास होगा तथा दलित समाज में आत्म सम्मान की भावना आएगी।

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

राजेश मंचल

राजेश मंचल फारवर्ड प्रेस के लुधियाना (पंजाब) संवाददाता हैं

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