h n

पहली बार घोड़े पर निकली दलित दूल्हे की बिंदोरी

भेदभाव की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि श्रीमाली ब्राम्हण और कुछ अन्य सवर्ण समाजों में वधू को घोड़े पर बैठाकर बिंदोरी निकाली जाती है। ऐसी खबरें फोटो समेत अखबारों में समाज की प्रगति के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं, जबकि दलितों के साथ इसी मुद्दे पर होने वाले अत्याचार की खबरों को दबा दिया जाता है

राजस्थान के अजमेर के भिनाय तहसील के दूरस्थ गांव निमेड़ा के दलितों के लिए 12 जुलाई, 2013 का दिन ऐतिहासिक रहा। पहली बार एक दलित दूल्हे रणजीत बैरवा की घोड़े पर बैठकर बैंडबाजों के साथ बिंदोरी निकाली गई। राजस्थान में शादी से तीन दिन पहले तेल की रस्म होती है। दूल्हा या दुल्हन को तेल-उबटन चढ़ाने से पहले बहन या बुआ अपनी सामर्थ्य के अनुसार बिंदोरी का आयोजन करती हैं। दूल्हा या दुल्हन को बहन या बुआ अपने घर बुलाकर खाना खिलाती हैं, फिर उपहारों के साथ जुलूस के रूप में उनके घर के लिए रवाना करती हैं। वे खुद भी साथ रहती हैं और घर पहुंचने पर आरती उतारकर उनकी अगवानी करती हैं।

हर परिवार अपनी हैसियत के अनुसार इसका आयोजन करता है। कोई ढोल-ढमाकों के साथ तो कोई बैंड-बाजों के साथ बिंदोरी निकालता है। दुल्हन को घोड़ा-गाड़ी जिसे बग्घी कहा जाता है और दूल्हे को घोड़े पर बैठाकर बिंदोरी निकलती है। राजस्थान में दलितों की बारात या बिंदोरी में दूल्हे को घोड़े पर बैठने की इजाजत नहीं है। सवर्ण उन्हें यह अधिकार नहीं देते। अगर कोई दलित घोड़े पर बैठकर निकलता है तो सवर्ण हथियारों समेत बारात पर हमला कर देते हैं। यहां तक कि बारात को सवर्णों की बस्तियों से होकर भी नहीं गुजरने दिया जाता। गाहे-बगाहे ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। कई दफा तो पूरी की पूरी बारात दुल्हन के घर पहुंचने की जगह घायल होकर अस्पताल या मुकदमा दर्ज कराने पुलिस थाने पहुंच जाती है। ऐसा भी तभी हो पाता है जब दूल्हे का परिवार आर्थिक और शारीरिक तौर पर सक्षम होता है। वह सवर्णों से अपने हक के लिए पहल करता है और नतीजा लड़ाई-झगड़े के रूप में सामने आता है।

भेदभाव की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि श्रीमाली ब्राम्हण और कुछ अन्य सवर्ण समाजों में वधू को घोड़े पर बैठाकर बिंदोरी निकाली जाती है। ऐसी खबरें फोटो समेत अखबारों में समाज की प्रगति के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं, जबकि दलितों के साथ इसी मुद्दे पर होने वाले अत्याचार की खबरों को दबा दिया जाता है।

ऐसे माहौल में लामगरा ग्राम पंचायत के गांव निमेड़ा के रतनलाल बैरवा के बेटे रणजीत की शादी तय हुई। रणजीत और उसके भाई परमेश्वर की इच्छा थी कि बिंदोरी और बारात घोड़े पर बैठकर निकाली जाए। परंतु उन्हें यह भी भली-भांति पता था कि उनके गांव में आजतक दलित समाज के किसी भी युवक की बिंदोरी या बारात घोड़े पर बैठकर नहीं निकलने दी गई है। परमेश्वर ने हिम्मत की और उसने निमेड़ा गांव से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित जिला मुख्यालय पर आकर जिला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक समेत अन्य अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें लिखित शिकायत दी। शिकायत में घोड़े पर बिंदोरी निकालने पर सवर्णों की ओर से लड़ाई-झगड़े की आशंका जताई गई। जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने इस पर कठोर आदेश जारी किए। परिणाम यह रहा कि उपखंड अधिकारी ओमप्रकाश शर्मा, तहसीलदार रामचंद्र मीणा व भिनाय थानाधिकारी सुगन सिंह भारी पुलिस बल लेकर 12 जुलाई को निमेड़ा गांव पहुंच गए। इन सभी की मौजूदगी में रणजीत की बैंड बाजों के साथ घोड़े पर बिंदोरी निकाली गई।

बिंदोरी शांतिपूर्वक निकल जाने पर प्रशासन ने भले ही राहत की सांस ली हो, परंतु ऐसे कितने दलित हैं जो इतनी हिम्मत कर पाते हैं और कितनों के पास इतना धन होता है?

(फारवर्ड प्रेस के सितंबर 2013 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

राजेंद्र हाड़ा

राजेंद्र हाडा फारवर्ड प्रेस के अजमेर संवाददाता हैं

संबंधित आलेख

यूपी में हार पर दलित-बहुजन बुद्धिजीवियों ने पूछे अखिलेश और मायावती से सवाल
पौने पांच साल की ‘लंबी छुट्टी’ के बाद सिर्फ ‘तीन महीने की सीमित सक्रियता’ से भला पांच साल के लिए कोई नयी सरकार कैसे...
बहस-तलब : दलितों के उपर अंतहीन अत्याचार और हम सवर्ण
जातिगत भेदभाव भारतीय समाज को आज भी खोखला कर रहा है। इसकी बानगी राजस्थान के सुरेन्द्र गागर नामक एक दलित युवक की आपबीती के...
बहस-तलब : उड़ीसा के इन गांववालों पर क्यों जुल्म ढा रही सरकार?
जब गांववालों ने गांव में ही रहकर इसका सामना करने का निर्णय लिया तो पुलिस और कंपनी के लोगों ने मिलकर गांव के बाहर...
पानी की बुंद-बुंद को तरसते बुंदेलखंड में आरक्षित सीटों का हाल
अपनी खास सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक विशेषताओं के लिए जाना जानेवाला बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विस्तारित है। इस इलाके में बड़ी समस्या...
चुनावी मौसम में किसका पक्ष रख रहे हैं यूपी के हिंदी अखबार?
बीते 5 फरवरी को दैनिक हिन्दुस्तान के प्रयागराज संस्करण के पृष्ठ संख्या 9 पर एक आलेख नजर आया– ‘आगरा मंडल : असल मुद्दे जाति...