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अंत्येष्टि कर्मकांडों से किया किनारा

उनके भारी विरोध और लंबे समय तक चले वाद-विवाद के बाद अंतिम संस्कार बिना किसी पुरोहित के ही किया गया। इसके बाद तीजा और तेहरवीं को लेकर विवाद शुरू हो गया। चौहान का कहना था कि वे किसी भी कीमत पर किसी पुरोहित अथवा ब्राह्मण को भोज नहीं करवाएंगे। इस पर ब्राह्मण समाज भड़क गया। उनके परिवार को अप्रत्यरक्ष रूप से धमकियां दी जाने लगीं।

उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जिले के ताजुद्दीनपुर ग्राम में उस समय सामाजिक तनाव की स्थिति उत्पन हो गई, जब एक दलित परिवार ने अपने एक बुजुर्ग परिजन की मृत्यु पर, ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले कर्मकांडों का पूरी तरह से बहिष्कार कर दिया।

पंजाब के एक दलित संगठन ‘आम्बेडकर नवयुवक दल’ से जुड़े शिव सहाय चौहान के परिजन उनके पैतृक गांव ताजुद्दीनपुर में रहते हैं। चौहान लगभग 20 वर्ष पूर्व अपना पैतृक गांव छोड़कर पंजाब के लुधियाना में बस गए थे। लुधियाना में वे आंबेडकरवादी साहित्य व संगठनों के संपर्क में आए तथा दलित आंदोलनों में कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे। 12 जुलाई को उनके पिता राम अचल चौहान की मृत्यु हो गई। चौहान के परिजनों ने उनका अंतिम संस्कार ब्राह्मणों द्वारा बनाए गए रीति-रिवाजों और कर्मकांडों के बिना ही करने का निश्चय किया। उनके इस निर्णय पर गांव वाले चौंके, तथा उन्होंने सामाजिक नियमों को तोडऩे पर कड़ा एतराज जताया। विशेषकर, ब्राह्मण व कथित उच्च जाति के लोगों को यह सब बड़ा नागवार गुजरा। उनके भारी विरोध और लंबे समय तक चले वाद-विवाद के बाद अंतिम संस्कार बिना किसी पुरोहित के ही किया गया। इसके बाद तीजा और तेहरवीं को लेकर विवाद शुरू हो गया। चौहान का कहना था कि वे किसी भी कीमत पर किसी पुरोहित अथवा ब्राह्मण को भोज नहीं करवाएंगे। इस पर ब्राह्मण समाज भड़क गया। उनके परिवार को अप्रत्यरक्ष रूप से धमकियां दी जाने लगीं।

इसकी सूचना मिलने के बाद डॉ आम्बेडकर नवयुवक दल व राष्ट्रवादी दलित सेना सहित दलित संगठनों के कार्यकर्ता उत्तरप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा बिहार से भी उनके गांव में पहुंचने लगे। उनकी भारी सं या देखकर कथित उच्च जाति के लोगो ने चुह्रश्वपी साधने में ही अपनी भलाई समझी। हालांकि उन्होंने दैवीय प्रकोप हो जाने का भय बता कर डराने की कोशिश तो की लेकिन प्रत्यक्ष रूप से हमला करने की उनकी हिम्मत नहीं हुई। अब स्थानीय ब्राह्मण समाज ने धमकी दी है कि ‘यह तो कर लिया लेकिन देखते है कि बच्चों की शादी बिना ब्राह्मणों के कैसे करते हो?’ बहरहाल, शिव सहाय का परिवार इस मामले में निश्चिंत है। उनका कहना है कि ‘महात्मा फूले और बाबा साहब के साहित्य ने हमें इतनी ताकत तो दी ही है कि हम ब्राह्मणों के बनाए पाखंड और रीति रिवाज के नाम पर ढोंग और ढकोसलों के बिना भी जी सकें’।

(फारवर्ड प्रेस के सितंबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

राजेश मंचल

राजेश मंचल फारवर्ड प्रेस के लुधियाना (पंजाब) संवाददाता हैं

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