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कौन आया साथ, किस-किस ने साधी चुप्पी

कांग्रेस और भाजपा के ही नहीं, पिछड़ों और दलितों के हितों की सुरक्षा का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेता भी इस मामले में अपवाद नहीं थे

उत्तरप्रदेश में जुलाई-अगस्त, 2013 में हुए सिविल सर्विसेज में नियुक्ति के लिए आरक्षण के नए नियम के विरोध और समर्थन में हुए आंदोलनों में शामिल नेताओं की फेहरिश्त देखने पर एक बडा़ फर्क सामने आता है। आरक्षण विरोधियों का साथ देने के लिए जहां सभी पार्टियों के स्थानीय सवर्ण नेताओं ने पार्टीलाइन से अलग हटकर काम किया, वहीं सभी पार्टियों के पिछड़े और दलित नेताओं ने चुप्पी साधे रखी।

 

कांग्रेस और भाजपा के ही नहीं, पिछड़ों और दलितों के हितों की सुरक्षा का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेता भी इस मामले में अपवाद नहीं थे। वास्तव में, इन दोनों पार्टियों की ‘पार्टीलाइन’ ही आरक्षण समर्थकों के विरोध में थी। यही कारण था कि सपा और बसपा के पिछड़े और दलित नेताओं ने भी इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे रखी।

आरक्षण समर्थक अधिवक्ता जय सिंह बताते हैं कि ‘आरक्षण समर्थक जब सड़क पर आंदोलित होने लगे तो सपा के लोग ही उन्हें दबाने का काम करने लगे। समर्थकों के ऊपर कई धाराएं लगाकर उन्हें जेलों में ठूंसा गया। जबकि इसके विपरीत, बसपा से निर्वाचित सांसद धनंजय सिंह न केवल सवर्ण विद्यार्थियों की सड़क से संसद तक मदद की, बल्कि आर्थिक रूप से भी सहयोग कर रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेता रहे केसरीनाथ त्रिपाठी उनकी तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। ‘दरअसल, आरक्षण के नए नियम लागू होने के बाद जैसे ही परिणाम आए, सवर्ण छात्र सड़कों पर उतरकर हंगामा करने लगे। उसके तुरंत बाद सवर्ण छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की। मुलायम सिंह ने उन्हें आश्वस्त किया कि ‘सामान्य वर्ग के हितों का ख्याल रखा जाएगा’। यहां यह स्मरण करना जरूरी होगा कि 2003 में मायावती के इस्तीफे के बाद जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने, तो वे शपथ समारोह से सीधे इलाहाबाद विश्वविद्यालय पहुंचे थे और कहा था कि पिछड़े समाज के युवाओं को अपने हक के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन अब जब 31 जुलाई को आरक्षण समर्थक उनके सुपुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से नए नियम बहाल रखने की मांग करने गए तो मुख्यमंत्री ने उनकी एक भी बात मानने से इंकार कर दिया। वार्ता असफल होने के बाद समर्थकों ने जब सरकार विरोधी नारा लगाने शुरू किए तो राजभवन के सामने पुलिस ने उन्हें घेरकर जमकर लाठियां भांजी, जिसमें समाजवादी युवा जनसभा इलाहाबाद के उपाध्यक्ष मनोज यादव सहित कई लोगों को गंभीर चोटें आईं। मनोज यादव ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 8 अगस्त को जब वे लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो फिर से उन्हें निशाना बनाकर कैंट थाने में बंद कर दिया और शहर के चार थानों में एफआईआर दर्ज कर लगभग आधा दर्जन धाराएं लगाकर आंदोलन को रोकने की पूरी साजिश की गई। ओबीसी-दलित युवा जब पुलिस की लाठी से लहूलुहान हो रहे थे तो सवर्णों को साधने के लिए उसी दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती का भी बयान आ गया कि ‘एक ही जाति को फायदा पहुंचाने के लिए नया नियम बनाया गया है। गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दिया जाए।

आरक्षण के समर्थन की लड़ाई में आगे रहने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष दिनेश सिंह यादव का आरोप है कि एक ओर समाजवादी पार्टी के प्रभावशाली नेता रामवृक्ष यादव, कृष्णमूर्ति यादव जैसे लोग आरक्षण समर्थकों के आंदोलन को दबाने में लगे रहे, तो दूसरी ओर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पिछड़े छात्र नेताओं की लंबी फेहरिस्त (पूर्व उपाध्यक्ष निर्भय सिंह पटेल, पूर्व अध्यक्ष हेमंत कुमार टुन्नू, पूर्व महामंत्री संग्राम यादव आदि) होने के बावजूद कोई उनके साथ नहीं आया। इलाहाबाद के आरक्षण समर्थक छात्र नेताओं के अनुसार, ‘आंदोलन के पहले दिन इलाहाबाद छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष निर्भय सिंह पटेल दिखाई दिए, लेकिन अगले दिन से उनका आना बंद हो गया। कहा जा रहा है कि पटेल के न आने का फरमान सपा हाईकमान से जारी हुआ था। इलाहाबाद की बारह विधानसभा सीटों में से सपा और बसपा को मिलाकर 6 विधायक ओबीसी और दलित समाज से आते हैं। इतना ही नहीं यूपी की सियासत में इलाहाबाद मंडल में पिछड़े और दलित समाज के प्रभावशाली नेताओं की लंबी कतार है, लेकिन इस आंदोलन के पक्ष में सभी ने चुप्पी साधे रखी। हालांकि इस दौरान अपना दल की महासचिव व विधायक अनुप्रिया पटेल पूरे आंदोलन के दौरान आरक्षण समर्थकों के साथ रहीं और उनके अगुआ के रूप में उभरीं। बहरहाल, आरक्षण जैसे संवेदनशील व दूरगामी महत्व के मसले पर चुप्पी साधे रखने वालों के लिए, आरक्षण समर्थक छात्र नेतागण ख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियों को उद्धृत कर रहे हैं – समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।

(फारवर्ड प्रेस के सितंबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

अशोक चौधरी

अशोक चौधरी फारवर्ड प्रेस से बतौर संपादकीय सहयोग संबद्ध रहे हैं।

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