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इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा : ओबीसी उम्मीदवारों ने लहराया परचम

इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबंधन संस्थानों में सामान्य कोटे की सीटों पर ओबीसी छात्रों का आधिपत्य सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में हो रहे बदलाव का परिणाम है। शिक्षा को लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में जागृति आ रही है और वह आरक्षण को लेकर भी अधिक सचेत हो गए हैं। इस कारण उनके प्रदर्शन में लगातार सुधार हो रहा है

भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थानों एवं अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में नामांकन के लिए होने वाली जेईई की मेन्स और एडवांस परीक्षा के परिणाम से सिर्फ परीक्षार्थियों की प्रतिभा की ही पहचान नहीं होती है, बल्कि इससे सामाजिक और शैक्षणिक जगत में हो रहे बदलावों का भी पता चलता है।

वर्ष 2013 में जेईई की मेन्स परीक्षा का परिणाम चौंकाने वाला था। वजह यह थी कि एडवांस के लिए सामान्य व ओबीसी कोटे के छात्रों की संख्या लगभग बराबर थी। जून, 2013 में आए जेईई एडवांस के परीक्षा परिणाम में सामान्य कोटे के 51,170 छात्र तो ओबीसी कोटे से 47,085 परीक्षार्थी पंजीकृत किए गए। इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबंधन संस्थानों में सामान्य कोटे की सीटों पर ओबीसी छात्रों का आधिपत्य सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में हो रहे बदलाव का परिणाम भी है। शिक्षा को लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में जागृति आ रही है और वह आरक्षण को लेकर भी अधिक सचेत हो गए हैं। इस कारण उनके प्रदर्शन में लगातार सुधार हो रहा है। इसी को रेखांकित करते हुए आईआईटी गुवाहाटी के निदेशक गौतम बरुआ कहते हैं कि ओबीसी के छात्र बड़ी संख्या में सामान्य सीटों पर चयनित हो रहे हैं और उनका नामांकन अच्छे संस्थानों में बिना आरक्षण के हो रहा है।

 

कई कोचिंग संस्थानों में छात्रों को मार्गदर्शन दे चुके और पटना के बीएस कॉलेज में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डा. राम अशीष सिंह कहते हैं कि ओबीसी के छात्रों में पढ़ऩे की प्रवृत्ति बढ़ी है और पढऩे वालों की संख्या भी बढ़ी है। इस कारण तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा में उनकी हिस्सेदारी बढ़ी है। दूसरी वजह यह है कि आरक्षण के कारण इन वर्गों में नया आत्मविश्वास आया है। उनके अंदर इस बात का भरोसा होता है कि सामान्य कोटे में नहीं होगा तो आरक्षण कोटे में हो ही जाएगा। इसलिए वे इसकी तैयारी भी जमकर करते हैं। इसका परिणाम होता है कि वह सामान्य कोटे से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। डा. राम अशीष कहते हैं कि कोचिंग संस्थानों में भी ओबीसी छात्रों की बड़ी संख्या में भागीदारी है। इन सबको मिलाकर बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं।

यहां फंसता है पेंच

केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन के लिए ओबीसी छात्रों को ओबीसी प्रमाण पत्र देना होता है। प्रमाण पत्र को लेकर दो तरह की जटिलताएं आमतौर पर होती हैं।

  1. ओबीसी की केंद्रीय सूची और राज्य सरकारों की सूची में अंतर होने के कारण छात्रों को लाभ से वंचित हो जाना पड़ता है। आमतौर पर राज्यों की जातिवार सूची को ही केंद्र सरकार आधार मानती है। उसी के आधार पर आरक्षण का लाभ मिलता है। लेकिन कई बार केंद्रीय सूची और राज्यों की सूची में जातियों की श्रेणी में अंतर हो जाता है। वैसी स्थिति में उस जाति के छात्र को आरक्षण के लाभ से वंचित होना पड़ता है।
  2. ओबीसी प्रमाणपत्र की मान्यता सिर्फ एक वर्ष के लिए होती है। इसमें क्रीमीलेयर की सीमा तय होती है, जबकि आदमी की वार्षिक आय में प्रतिवर्ष कमी या बढ़ोतरी होती रहती है। इस कारण हर वर्ष ओबीसी प्रमाणपत्र बनवाना पड़ता है। इस ओबीसी प्रमाणपत्र के फेर में भी छात्रों का दावा अमान्य कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए आपने आवेदन वर्ष 2010-11 में किया, लेकिन आपकी काउंसलिंग वर्ष 2011-12 में हो रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि आवेदन के समय दिया गया ओबीसी प्रमाणपत्र काउंसलिंग के समय तक अमान्य हो जाएगा और आपका ओबीसी का दावा भी रद्द कर दिया जाएगा।

बरतें सावधानी

अपने दावे को पुख्ता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि ओबीसी प्रमाणपत्र को एकदम अद्यतन रखें ताकि आपके दावे पर अपटूडेट प्रमाण पत्र नहीं होने का ग्रहण नहीं लगे। पिछले वर्ष आईआईटी में ओबीसी के 4,800 छात्रों का चयन किया गया था, लेकिन उनमें से 800 छात्र अपना उपयुक्त ओबीसी प्रमाणपत्र समय पर नहीं दे पाए थे। इस कारण उनका नामांकन नहीं हो सका और इन आठ सौ सीटों पर सामान्य छात्रों का नामांकन हुआ।

आरक्षण पर हमला’ की है बड़ी साजिश

अनारक्षित श्रेणी के छात्रों द्वारा ‘आरक्षण पर हमला’ की बड़ी साजिश होती है। इस कारण अंतिम चयन में ओबीसी के योग्य उम्मीदवारों की कमी दिखा दी जाती है और सीट को ओपन कर दिया जाता है। जेईई का उदाहरण लें। ओबीसी के लिए कोटा निर्धारित है। यह कोटा एडवांस और अंतिम चयन के लिए होता है। जेईई मेन्स की परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी के छात्र आरक्षित श्रेणी से अपना आवेदन भर देते हैं। जब एडवांस के लिए लिस्ट बनती है तो अनारक्षित श्रेणी के छात्र फर्जी दावे के आधार पर आरक्षित कोटे से चयनित हो जाते हैं। फिर एडवांस की परीक्षा में भी वे शामिल हो जाते हैं। इसमें भी फर्जी दावे वाले छात्र चुन लिए जाते हैं। पर अंतिम चयन के लिए वे शामिल ही नहीं होते हैं, क्योंकि उनके पास उपयुक्त कागजात नहीं होते हैं। लेकिन मेन्स और एडवांस में शामिल होकर फर्जी दावे वाले छात्र सैकड़ों ओबीसी छात्रों को दौड़ से बाहर कर चुके होते हैं। वैसी स्थिति में यह दिखा दिया जाता है कि उपयुक्त छात्र नहीं मिल रहे हैं। अगर फर्जी दावे वाले छात्र शामिल नहीं होते तो दूसरे बहुत सारे ओबीसी छात्रों का चयन मेन्स व एडवांस के लिए होता, लेकिन वे साजिश के शिकार हो जाते हैं। ‘आरक्षण पर हमले’ की साजिश के खिलाफ भी ओबीसी के छात्रों को सतर्क रहने की जरूरत है।

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

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फारवर्ड प्रेस, हिंदुस्‍तान, प्रभात खबर समेत कई दैनिक पत्रों में जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव इन दिनों अपना एक साप्ताहिक अखबार 'वीरेंद्र यादव न्यूज़' प्रकाशित करते हैं, जो पटना के राजनीतिक गलियारों में खासा चर्चित है

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