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रावण की पूजा : ब्राह्मणवादी मिथकों पर प्रहार

अक्टूबर के महीने में एक ओर देश में रावण का वध करने वाले राम और महिषासुर की हत्या करने वाली दुर्गा की पूजा भारत में उल्लास से होती है तो दूसरी ओर अनेक दलित-ओबीसी संगठनों ने रावण और महिषासुर को अपना मिथकीय पूर्वज घोषित कर ब्राह्मणवादी परंपराओं के उल्लास को फीका करना शुरू कर दिया है।

संभवत: मिथकों का भी अपना एक अवचेतन होता है, जो इतिहास की धूल के नीचे वर्षों तक दबे रहकर मृतप्राय हो चुकने के बाद भी अनुकूल आबोहवा पाकर अचानक सर उठाने लगता है। वे मिथक, जिन्हें कभी भारत की प्रभुत्वशाली जातियों ने अपनी धार्मिक और सामाजिक सत्ता को मजबूत करने के लिए निर्मित किया होगा, आज दलित-बहुजनों की चुनौती का सामना कर रहे हैं। अक्टूबर के महीने में एक ओर देश में रावण का वध करने वाले राम और महिषासुर की हत्या करने वाली दुर्गा की पूजा भारत में उल्लास से होती है तो दूसरी ओर अनेक दलित-ओबीसी संगठनों ने रावण और महिषासुर को अपना मिथकीय पूर्वज घोषित कर ब्राह्मणवादी परंपराओं के उल्लास को फीका करना शुरू कर दिया है। दक्षिण भारत में तो ब्राह्मणवादी परंपराओं को बहुजनों की ओर से लंबे समय से चुनौती मिलती रही है। उत्तर भारत में पंजाब संभवत: इसमें सबसे आगे है। पंजाब के लुधियाना जिले में भारतीय दलित सेना के मुख्य संचालक और धर्मगुरु अरुण सिद्धू हर वर्ष रावण का पुतला जलाने का विरोध करते हैं। सिद्धू कहते हैं कि “महात्मा रावण का पुतला जलाने का कोई धार्मिक आधार नहीं है, यह सिर्फ उनके वंशजों को डराने के लिए किया जाता है, जिससे वे दुबारा अपनी शक्ति एकत्रित ना कर सकें। देश में सैकड़ों तरह की रामायण है और किसी में भी नहीं लिखा गया कि रावण का पुतला जलाया जाए। इसके विपरीत इन्हीं की रामायण के अनुसार रावण की मृत्यु के समय राम ने विभीषण को कहा था कि रावण से बड़ा विद्वान् इस समय पृथ्वी पर कोई नहीं है, इसलिए इनका अंतिम संस्कार पूरे मान-सम्मान के साथ किया जाना चाहिए।” सिद्धू की भारतीय दलित सेना महात्मा रावण को अपना महान पूर्वज मानती है, और इसके सदस्य हर साल दशहरा के दिन रावण का शहीदी दिवस मानते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देती है।

ऐसा ही एक और संगठन है ‘महात्मा रावण यूथ फेडरेशन’, जिसकी गति‍विधियां पंजाब के कई जिलों में फैल चुकी हैं। फेडरेशन के मुख्य संचालक रवि बाली का कहना है कि ‘हम महान विद्वान और शक्तिशाली महाराजा रावण के वंशज हैं, जिन्होंने अपनी कौम की शान के लिए अपनी जान दे दी। हमने उनके आदर्शों पर चलते हुए इस संगठन का निर्माण किया है, जिसकी पंजाब में हर जिले में शाखाएं बन गई हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य लोगों के मन से महात्मा रावण के प्रति गलत धारणाओं को मिटाना है। हमारा संगठन दशहरे मेले का पुरजोर विरोध करता है और अपने समाज के लोगों को दशहरा के उपलक्ष्य में लगने वाले मेले में जाने से रोकता है। उस दिन हमारी सारी शाखाएं रावण को श्रद्धांजलि देती हैं।”

पंजाब में तेजी से बढ़ रहे एक और संगठन ‘महात्मा रावण क्रांति सेना’ के प्रधान संदीप कुमार कहते हैं कि “हमारे संगठन का मुख्य उद्देश्य भारत में रावण राज लाना है। राम राज में औरतों की कोई इज्जत नहीं थी, मां-बेटियों को नचाया जाता था। सतीत्व की अग्निपरीक्षा के नाम पर महिलाओं को जला दिया जाता था और बिना किसी गलती के घर से निकाल दिया जाता था। इसके विपरीत महाराजा रावण ने अपने शासनकाल में महिलाओं को उचित सम्मान दिया और अपनी बहन के मान-सम्मान के लिए राज-पाट तक लुटा दिया। हमें गर्व है कि हम ऐसे महात्मा रावण के वंशज हैं। हम उनकी पूजा करते हैं।” कपूरथला की ‘रावण सेना’ के चेयरमेन चरणजीत हंस का भी इस बारे में कहना है कि महात्मा रावण हमारे पूर्वज हैं। हमने सेना का इसलिए निर्माण किया, जिससे हमारे दलित परिवारों के युवक वीर सैनिक महाराजा रावण की तरह आदर्शवादी विद्वान और परमवीर बनें। इस संगठन के कार्यकर्ता दशहरा के दिन बाजू पर काली पट्टी बांधकर महात्मा रावण की पूजा करते हैं और शोक मनाते हैं। संगठन के कार्यकर्ताओं के घरों में इस दिन कोई जश्न नहीं मनाया जाता है और ना ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। पंजाब में आदि धर्म समाज के प्रमुख दर्शनरत्न रावण भी महात्मा रावण के आदर्शों को स्वीकार करते हैं। यह संगठन सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी अपनी पहुंच बना चुका है और दशहरा का विरोध करने के लिए दलित-बहुजनों को प्रेरित कर रहा है। इस तरह के और भी अनेक संगठन हैं, जो रावण, महिषासुर, वाणासुर आदि असुरों का अपना मिथकीय पाठ तैयार कर रहे हैं, और तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

राजेश मंचल

राजेश मंचल फारवर्ड प्रेस के लुधियाना (पंजाब) संवाददाता हैं

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