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सामाजिक न्याय का संदेश देने में सफल रही महापंचायत

पुलिस की कड़ी पहरेदारी के बावजूद शहर के कोने-कोने और निकटवर्ती जिलों से लोग इलाहाबाद के बालसन चौराहे पर जुटते रहे और पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर पुलिसलाइन में ले जाती रही। पुलिसलाइन में बनाई गई अस्थाई जेल में ही लगभग दस हजार युवाओं ने गिरफ्तारी दी और वहीं पर महापंचायत कर डाली।

इलाहाबाद में गत 17 सितंबर को ‘सामाजिक न्याय मोर्चा’ के बैनर तले आयोजित महापंचायत को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। आयोजन स्थल की अनुमति रद्द कर दी गई, आयोजन में भाग लेने आ रहे लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, पूरे शहर की सीमाएं सील कर दी गईं और चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल को तैनात कर दिया गया। इसके बाबजूद, इस महापंचायत के माध्यम से आरक्षण समर्थकों ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी ताकत का अहसास करवाया बल्कि सामाजिक न्याय का संदेश देने में सफल रहे। गौरतलब है कि महापंचायत का आयोजन उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा आरक्षण नियमावली में वंचित समूहों के पक्ष में किए गए परिवर्तन तथा उसके बाद आरक्षण विरोधियों के दबाव में राज्य सरकार के इशारे पर उसे वापस लिए जाने के विरोध में किया गया था (विस्तृत विवरण के लिए फारवर्ड प्रेस के सितंबर, 2013 अंक की कवर स्टोरी ‘मंडल 3.0’ देखें) महापंचायत में मुख्य वक्ता के रूप में भाग लेने आ रहे शरद यादव को गाजियाबाद से व ‘अपना दल’ की अनुप्रिया पटेल को रायबरेली में गिरफ्तार कर लिया गया। उदित राज को बमरौली एयरपोर्ट पर ही रोक लिया गया।

जिन आरक्षण समर्थक छात्रों के महापंचायत में भाग लेने की संभावना थी, उन्हें भी 16 सितंबर की रात दबिश देकर उनके घरों व हॉस्टलों से हिरासत में ले लिया गया। पुलिस की कड़ी पहरेदारी के बावजूद शहर के कोने-कोने और निकटवर्ती जिलों से लोग इलाहाबाद के बालसन चौराहे पर जुटते रहे और पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर पुलिसलाइन में ले जाती रही। पुलिसलाइन में बनाई गई अस्थाई जेल में ही लगभग दस हजार युवाओं ने गिरफ्तारी दी और वहीं पर महापंचायत कर डाली। महापंचायत की अनुमति मांगने के लिए अनशन पर बैठे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष दिनेश सिंह यादव, छात्र नेता मनोज यादव व मुकुंद लाल मौर्या को 16 की रात में ही पुलिस ने नैनी जेल में डाल दिया था। इनकी अनुपस्थिति में आंदोलन की दूसरी पंक्ति के नेताओं लाला राम सरोज, सुरेंद्र चौधरी और अजीत यादव ने कमान अपने हाथ में लेकर अस्थाई जेल में महापंचायत का संचालन किया तथा आरक्षण समर्थकों को संबोधित किया। अस्थायी जेल में रखे जाने के पूर्व पूरे शहर में आरक्षण समर्थकों ने सपा सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और सपा तथा बसपा को सबक सिखाने का संकल्प लिया। गौरतलब है कि महापंचायत का कवरेज कर रहे फारवर्ड प्रेस के इलाहाबाद संवाददाता बंजारा गंवार को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया। करीब दो घंटे तक हिरासत में रखने के बाद उन्हें छोड़ा गया।

बहुजन बु्द्धिजीवियों में नाराजगी

आरक्षण महापंचायत को रोकने के राज्य सरकार के प्रयास से बहुजन तबके के बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी है। सेवानिवृत्त आईएएस श्रीराम यादव कहते हैं कि ‘यह कोई उत्पात करने के लिए आयोजित महापंचायत नहीं थी। हमलोग तो महापंचायत के माध्यम से अपने बहुसंख्यक समाज के साथ संवाद करने के लिए इकट्ठा हो रहे थे। लेकिन इस सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी पर ही प्रतिबंध लगा दिया। प्रदेश सरकार जिनके वोटों से सत्ता में बैठी है उन्हीं का हक छीन रही है।’ उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (इस आयोग द्वारा आरक्षण नियामवली में परिवर्तन के निर्णय के बाद ही सवर्ण छात्रों ने उत्पात मचाया था) के एक वरिष्ठतम अधिकारी का कहना था कि ‘हमने तो अन्याय का सिर्फ ‘अ’ हटाया है। आरक्षण विरोधी जिस नियम को नया नियम बताकर विरोध कर रहे हैं वह नया नहीं बल्कि इसे 1994 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कानून बनाया था परन्तु उसे अभी तक लागू नहीं किया गया था। और यह नियम छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में पहले से ही लागू है। उत्तरप्रदेश सरकार के 23 मार्च, 1994 अधिनियम के क्रमांक 4 में कहा गया है कि यदि आरक्षित श्रेणी से संबंधित कोई व्यक्ति योग्यता के आधार पर खुली प्रतियोगिता में सामान्य अभ्यर्थियों के साथ चयनित होता है तो उसे आरक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित नहीं किया जाएगा अर्थात उसे अनारक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित माना जाएगा, भले ही उसने आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को अनुमान्य किसी सुविधा या छूट (यथा आयु सीमा में छूट आदि) का उपभोग किया हो।

बहरहाल, आरक्षण मामले को लेकर उत्तरप्रदेश की सामाजवादी सरकार एक विस्फोटक स्थिति का सामना कर रही है। एक ओर उस पर सामाजिक और राजनीतिक रूप से मुखर सवर्ण समुदाय का दबाव है तो दूसरी ओर उसका अपना कहे जाने वाला अन्य पिछड़ा वर्ग भी अब पहले की तरह अपनी नाराजगी को जज्ब कर चुप्पी साधे रखने को तैयार नहीं है।

मीडिया की चतुराई

आरक्षण महापंचायत को लेकर हिंदी मीडिया के रुख में कोई खास परिवर्तन नहीं आया। आरक्षण समर्थकों के विरोध में खबर लिखने के आरोप में गत् 7 अगस्त को आंदोलनकारियों के एक हुजूम ने ‘दैनिक जागरण’ के इलाहाबाद कार्यालय पर हमला कर दिया था। इस घटना से सहमे दैनिक जागरण ने थोड़े संयम और चतुराई के साथ आरक्षण समर्थकों के पक्ष में खबरें प्रकाशित कीं। अन्य अखबारों का रुख भी बेहतर था लेकिन कुल मिलाकर इनकी मंशा आरक्षण समर्थकों के आंदोलन को येन-केन-प्रकारेण कमजोर करने की ही रही।

इलाहाबाद में दैनिक जागरण पर हमले के पहले तक, आरक्षण समर्थकों का विरोध कर रहे ‘जन संदेश’ के इलाहाबाद संस्करण में महापंचायत के दौरान ‘फिर उठा आरक्षण का बवंडर’ शीर्षक से खबर छपी लेकिन इसके ठीक विपरीत, इसी अखबार के लखनऊ संस्करण में शीर्षक था ‘थम गया आरक्षण का बवंडर।’ मीडिया ने आरक्षण के विरोध में विशेषज्ञों की राय, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, कानूनी तथ्य आदि धड़ाधड़ उगले। ‘दैनिक हिंदुस्तान’ ने यादव, कुर्मी, लोध, मौर्या जातियों को खलनायक के रूप में पेश किया तो दैनिक जागरण ने इस आन्दोलन को केवल बैकवर्डों का आन्दोलन बताने की कमान संभाली। प्रगतिशील माने जाने वाले ‘अमर उजाला’ के पूर्व संपादक शंभूनाथ शुक्ला ने ‘अमर उजाला’ में आरक्षण समर्थकों की लोकप्रिय नेत्री अनुप्रिया पटेल का मजाक उड़ाते हुए लिखा कि ‘जिसकी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं वो मुख्यमंत्री की एक चूक का लाभ उठाने चली हैं, जिससे कुर्मी नाराज हैं।’ इसके प्रतिवाद में आम्बेडकर महासभा के अध्यक्ष डा. लालजी निर्मल ने शंभूनाथ शुक्ला के विरोध में फेसबुक पर कई खुलासे किए। अगले दिन शंभूनाथ शुक्ला ने अपने फेसबुक वॉल पर अपने लेख पर माफी मांगते हुए कहा कि वे आरक्षण का समर्थन करते हैं और अपने नाम के आगे शुक्ला शब्द के स्थान पर अपनी मां का नाम लिखेंगे। बाद में उन्होंने खेद जताते हुए लिखा कि किन्हीं तकनीकी कारणों से ऐसा करना संभव नहीं है।

इस तरह की खबरें प्रकाशित-प्रसारित कर हिंदी के सवर्ण मानसिकता वाले पत्रकार व मीडिया संस्थान भले ही अभिजन समाज का चहेता बने रहें लेकिन वे उन बहुजनों के लिए ‘खलनायक’ बनते जा रहे हैं, जिन्होंने पिछले दिनो बहुत बड़ी संख्या में ज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश किया है तथा इन बौद्धिक छलों को अच्छी तरह समझ लिया है।

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

अशोक चौधरी/बंजारा गंवार

अशोक चौधरी फारवर्ड प्रेस के विशेष संवाददाता हैं जबकि बंजारा गंवार फारवर्ड प्रेस के इलाहाबाद संवाददाता हैं

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