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अक्टूबर में इतिहास को जीता है नागपुर

हालांकि धर्मपरिवर्तन के दूसरे दिन ही बाबा साहब ने इस बात का खंडन कर दिया था और अपने चुनाव को ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ते हुए स्पष्ट किया था कि चूंकि नागपुर, आर्यों से सबसे मुखर संघर्ष करने वाली नाग जनजाति का क्षेत्र है, इसलिए यह चुनाव किया गया है।

सन् 1936 में विनायक दामोदर राव सावरकर ने कहा था कि बमुश्किल 20-25 हजार लोग डा. आम्बेडकर के साथ बौद्ध बन भी गए तो भी वे धीरे-धीरे हिन्दू धर्म की ओर लौट आएंगे। ऐसा उन्होंने बाबा साहब आम्बेडकर के द्वारा 1935 में बौद्ध हो जाने का दृढ मत व्यक्त करने के बाद कहा था। हालांकि इतिहास ने सावरकर की भविष्यवाणी को गलत सिद्ध किया और 1956 में 14 अक्टूबर को 4 लाख लोगों ने आम्बेडकर के साथ बौद्ध धर्म में प्रवेश किया। यह ‘धम्म चक्र प्रवर्तन’ नागपुर में हुआ और तब से अब तक दीक्षाभूमि पर यह दिवस धूम-धाम से आयोजित होता है। जब हिन्दू विजयदशमी मना रहे होते हैं तब नागपुर का वातावरण नीले आवरण से ओत-प्रोत हो जाता है, क्योंकि उस दिन लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायी वहां उमड़ पड़ते हैं। सावरकर की उनके हिन्दू धर्म में लौट आने वाली भविष्यवाणी भी गलत सिद्ध हुई।

अक्टूबर का महीना दो महत्वपूर्ण तारीखों के लिए जाना जाता है- 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी जयंती के लिए और धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस के लिए, जो हर साल ‘विजयदशमी’ के समानांतर मनाया जाता है। महात्मा गांधी ने 30 अप्रैल, 1936 को वर्धा के निकट शेगांव नामक गांव में अपनी कुटिया बनाई थी, जो कई एकड़ में फैले सेवाग्राम आश्रम में आज भी अपने पुराने स्वरूप में विद्यमान है। गांधी ने दलितों की बहुसंख्यक आबादी वाले गांव के पास अपना आश्रम बनाया था। आश्रम से 70 किलोमीटर दूर नागपुर में 1956 में बाबा साहब आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म की मशाल जलाई, जहां लाखों दलितों ने भेदभाव के दर्शन से संचालित हिन्दू धर्म को छोड़ा। गांधी के आश्रम में तब से आज तक ‘वैष्णव जण तो तैने कहीए जे पीर पराई जाणे रे’ का पाठ होता है और दीक्षाभूमि पर ‘संघम शरणं गच्छामि’ की गूंज होती है।

बाबा साहब द्वारा धर्मपरिवर्तन के लिए नागपुर के चुनाव पर लोगों की राय थी कि चूंकि वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है, इसलिए उन्होंने नागपुर का चुनाव किया था। हालांकि धर्मपरिवर्तन के दूसरे दिन ही बाबा साहब ने इस बात का खंडन कर दिया था और अपने चुनाव को ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ते हुए स्पष्ट किया था कि चूंकि नागपुर, आर्यों से सबसे मुखर संघर्ष करने वाली नाग जनजाति का क्षेत्र है, इसलिए यह चुनाव किया गया है।

नागपुर में जन्मे और सक्रिय रहे केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इन 8 दशकों में अपना विस्तार करता गया है। नागपुर में इसके प्रभाव के नए समीकरण की चर्चा इस रिपोर्ट में आगे करते हैं।

फॉरवर्ड प्रेस के लिए हमने ऐतिहासिक अक्टूबर के बहाने इस क्षेत्र को केस स्टडी के तौर पर देखते हुए एक पड़ताल की कि इन विचारों-परंपराओं का प्रभाव और उसके प्राकट्य की क्या स्थिति है। सेवाग्राम का गांधी आश्रम पिछले दिनों सर्वथा गलत कारणों से चर्चा में रहा। गांधी आश्रम से महात्मा गांधी का चश्मा चोरी हुआ। सबसे दुखद था नमक आंदोलन को जनांदोलन बना देने वाले गांधी के आश्रम में खाने में नमक को लेकर आश्रम के अंतेवासियों के बीच झगड़ा, जिसमें मुकदमेवाजी तक हुई। दरअसल, एक दिन आश्रम के सामूहिक भोजन के दौरान, एक व्यक्ति ने आपत्ति जताई कि भोजन में नमक कम है। यह आपत्ति आश्रम में भोजन की व्यवस्था संभालने वालों को नागवार गुजरी और उन्होंने उस व्यक्ति की पिटाई कर दी। आश्रम के दो गुटों में इसी बात पर जमकर मार-पीट हुई। बहरहाल, आश्रम में सरकारी सहयोग से दो अक्टूबर को होने वाला आयोजन कर्मकांड भर रह गया है, जिसमें कुछ गांधीवादियों के अलावा शहर के अफसर और कांग्रेसजन शामिल होते हैं। कुछ बच्चों/युवाओं को स्कूलों से बुला लिया जाता है। यह सब धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस में हर साल उमड़ते जनसैलाब की तुलना में तुच्छ-सा दिखता है और सवाल छोड़ जाता है कि क्या गांधी और गांधीवाद अब मठों के कर्मकांडियों तक सीमित रह गए हैं। सेवाग्राम आश्रम प्रबंधन समिति के सक्रिय सदस्य और किसान अधिकार अभियान के नेता अविनाश काकडे, गांधी और उनके आश्रम के प्रति जनता की उदासीनता का कारण बताते हुए कहते हैं कि ‘गांधीवादियों का जनता से कोई सरोकार नहीं रह गया है, शासन-प्रशासन में गांधी के नाम पर उनकी पैठ भले ही हो।’

धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस पर हर साल उमड़ऩे वाली भीड़ से उत्साहित आम्बेडकरवादी विचारक और रिपब्लिकन नेता विमल सूर्य चिमनकर कहते हैं कि ‘डा. आम्बेडकर और उनकी वैचारिकी के प्रति इस दिन से जनता का जुड़ाव महत्वपूर्ण है। इसी दिन कस्तूरचंद पार्क पर संघ का विजयदशमी समारोह होता है, फिर भी नागपुर में उस दिन इस वैचारिक/धार्मिक क्रांति का उत्सव ही महत्वपूर्ण होता है। नागपुर की ओर आम्बेडकर-भक्त बौद्धों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है।’ हालांकि इस जनसैलाब के बावजूद आम्बेडकरवादी ऐतिहासिक चुनौतियों के प्रति सजग हैं। वे ब्राह्मणवादी तंत्र द्वारा चलाई जा रही को-ऑप्शन की प्रक्रिया को बखूबी समझते हैं। चिमनकर के अनुसार, 1936 में सावरकर के अनुमान के गलत सिद्ध होने के बाद ब्राह्मणवादी शक्तियां इस तथ्य को समझ गईं कि बौद्ध धर्म और आम्बेडकरवाद विस्तार लेता चला जाएगा। उन्होंने अपनी तैयारी शुरू कर दी। चिमनकर कहते हैं, ‘1964 में रिपब्लिकन नेता दादा साहब गायकवाड़ के नेतृत्व में भूमिहीनों को भूमि आवंटन करने के मसले पर 3 लाख से ज्यादा लोग जेल चले जाते हैं, जिसके बाद लालबहादुर शास्त्री की सरकार दो लाख एकड़ जमीन दलितों-भूमिहीनों में बांट देती है। इसके बाद ही 1966 में गोलवलकर की किताब आती है ‘ए बंच ऑफ थॉट्स’, जिसमें गोलवलकर बौद्धों के बढ़ते प्रभाव को खतरा बताते हैं। गायकवाड़ का वह आंदोलन बौद्ध भारत का आंदोलन था, सामजिक-आर्थिक हक के लिए।

संघ का वैचारिक आयोजन प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अक्टूबर महीने में ही ‘विजयदशमी’ को होता है। विजयदशमी को संघ, शक्ति की पूजा के प्रतीक के तौर पर शस्त्रों की पूजा करता है। सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश खैरनार एक सवाल करते हैं कि ‘जिन शस्त्रों की पूजा होती है, क्या वे कानूनी तौर पर लाइसेंस प्राप्त हैं? इस अवसर पर संघ से जुड़े लोग घातक अस्त्रों-शस्त्रों की पूजा करते हुए देखे जाते हैं।’ खैरनार हालांकि इन तमाम विचारों को नागपुर सहित देश में निष्प्रभावी बताते हैं, लेकिन संघ का बढ़ता प्रभाव नागपुर सहित विदर्भ में दिखता है, जहां भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ में काफी हद तक सेंध लगा दी है। आगामी 2014 के चुनाव में नागपुर से संघ के विश्वस्त स्वयंसेवक और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी की ताजपोशी लगभग तय मानी जा रही है, जिसके लिए कई कांग्रेसी नेता भी परदे के पीछे से पहल कर रहे हैं।

एक चौथी विचारधारा-साम्यवाद-का भी जुड़ाव इस क्षेत्र से रहा है। कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के नेता जम्मू आनंद के अनुसार, ऐतिहासिक 14 अक्टूबर की पूर्व संध्या पर सीपीआई के पूर्व महासचिव एबी बर्धन और सुदाम देशमुख डा. आम्बेडकर से मिले थे तथा संभवत: दूसरे दिन वहां उपस्थित भी थे। इस तथ्य की आम्बेडकरवादी स्रोतों से कोई पुष्टि तो नहीं हो सकी लेकिन इसी युवा बर्धन को प्रभावी ट्रेड यूनियन वाले नागपुर क्षेत्र ने 1957 में विधानसभा में भेजा, जो आज की तारीख में एक बड़े साम्यवादी नेता और विचारक हैं। सीपीआई के प्रांतीय सचिव डा. कांगो खुद स्वीकार करते हैं कि इस विचारधारा का देश के दूसरे हिस्सों के साथ-साथ नागपुर में भी प्रभाव घटा है।

गांधी विचार के प्राध्यापक डा. विजय कुमार, हालांकि, विचारों के प्रभाव और प्रासंगिकता की पड़ताल की इस कवायद को ही नकार देते हैं। उनके अनुसार जनसैलाबों के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता कि कौन-सी विचारधारा प्रासंगिक है। जबकि चिमनकर कहते हैं कि ‘नागपुर का क्षेत्र एक लिटमस टेस्ट जैसा है, विचारों के जीवंत प्रभाव की जांच के लिए।’

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

राजीव सुमन/संजीव चंदन

राजीव सुमन फॉरवर्ड प्रेस के संपादकीय शोध सहायक हैं और संजीव चंदन फॉरवर्ड प्रेस के रोविंग संवाददाता हैं

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