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सहनिवेशक ढूंढो

तुम उन लोगों से अपने व्यवसाय में निवेश करवाना चाहोगे जिन्हें तुम पसंद करते हो और भरोसा कर सकते हो और जिन्हें व्यवसाय की सफलता की उतनी ही आशा हो, जितनी कि तुम्हें

प्रिय दादू,

आपके पिछले महीने के पत्र के लिए धन्यवाद, जिसमें आपने उत्पाद की एडवांस बिक्री की संभावना के बारे में चर्चा की थी। मैंने उन सभी लोगों से मुलाकात की, जिनके बारे में मुझे ऐसा लगता था कि वे उत्पाद की एडवांस बिक्री में मेरी मदद कर सकते हैं। परंतु उनमें से लगभग सभी इसके लिए अनिच्छुक दिखे। वे तो तब तक इस बारे में सोचने तक को तैयार नहीं थे जब तक कि उत्पाद उनकी आंखों के सामने नहीं आ जाता।

सप्रेम
सुदामा

प्रिय सुदामा,

उत्पाद के संभावित ग्राहकों से मिलने का एक लाभ तो यह होता है कि तुम यह जान सकते हो कि वे क्या चाहते हैं, ऐसी कौन-सी वस्तुएं हैं जिनकी बाजार में मांग है परंतु वे उपलब्ध नहीं हैं और यह भी कि किसी वस्तु को खरीदने के निर्णय को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं-ये सभी ऐसी जानकारियां हैं, जो किसी भी व्यवसायी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं।

परंतु जहां तक तुम्हारे व्यवसाय में धन लगाने का सवाल है, यदि तुम्हें एडवांस ग्राहक नहीं मिलते तो फिर दो ही रास्ते बचते हैं : निवेश और ऋण। तुम्हें मेरे पिछले पत्र से यह अंदाजा तो लग ही गया होगा कि मैं ऋण लेने में अधिक विश्वास नहीं रखता-फिर चाहे वह बैंक से लिया गया हो या व्यक्तियों से।

ऐसा क्यों? इसलिए, क्योंकि जो भी तुम्हें पैसा उधार देता है, उसकी रुचि केवल इसी में रहती है कि उसे तय की गई अवधि के बाद, उसका मूलधन और निर्धारित ब्याज की राशि मिल जाए। ऐसे कुछ रिश्तेदार या नजदीकी दोस्त हो सकते हैं जो तुम्हें छोटी-मोटी धनराशि उधार दे दें। परंतु बहुत कम व्यक्ति या बैंक ऐसे होंगे, जो तुम्हें ‘समपार्श्विक प्रतिभूति’  के बगैर बड़ी राशि उधार दें। समपार्श्विक प्रतिभूति वह वस्तु होती है, जिसे तुम ऋणदाता के पास बंधक रखते हो और अगर तुम उसका धन नहीं लौटाते, तो तुम्हें उस वस्तु से हाथ धोना पड़ता है। उदाहरणार्थ, अगर तुम कार खरीदने के लिए ऋण लेना चाहते हो तो वह या तो तुम्हारे मकान के विरुद्ध या तुम्हारे वेतन के विरुद्ध या ऋण से ली जाने वाली कार के विरुद्ध मिलता है। तुम्हारे मकान को सामान्यत: बैंक ‘बंधक’ रख लेता है और तुम्हारे वेतन के कुछ भाग पर भी अपना अधिकार कर लेता है। अत: ऋण लेने के लिए यह आवश्यक है कि तुम्हारे पास कुछ ऐसी आस्तियां हों, जिन्हें तुम्हारे ऋण न चुकाने की स्थिति में, ऋणदाता अपने कब्जे में ले सके।

मेरा मत तो यह है कि अगर तुम्हारे पास ऐसी कोई सम्पत्ति है तो बेहतर तो यही होगा कि उस सम्पत्ति को बेचकर (उदाहरणार्थ बड़े मकान की जगह छोटे मकान में रहकर) उससे प्राप्त पूंजी का इस्तेमाल किया जाए। यह कर्ज लेने से कहीं बेहतर है। ब्याज की दरें अक्सर बहुत अधिक होती हैं और उनसे तुम्हारे हाथ-पैर बंध जाते हैं, क्योंकि तुम्हें हर महीने ब्याज की राशि चुकानी होती है। अत: हर महीने ऋण की किश्त चुकाने का तनाव भोगने से बेहतर यह है कि तुम अपने जीवन की सुख-सुविधाओं में कुछ कटौती कर लो। इसके अलावा, सिद्धांतत:, कोई भी बैंक, ऋण राशि को कभी भी वापस मांग सकता है। यद्यपि सामान्यत: ऐसा नहीं होता, परंतु इसके कारण एक तलवार तो तुम्हारे सिर पर हमेशा लटकती ही रहती है।

तुम्हारे व्यवसाय में निवेश करने वाले भी अपना हिस्सा कभी भी बेच सकते हैं परंतु उनके शेयर खरीदने के लिए व्यक्ति या संस्था ढूंढना उनका काम होता है। तुम्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे व्यवसाय में किसका पैसा लगा हुआ है।

निस्संदेह तुम उन लोगों से अपने व्यवसाय में निवेश करवाना चाहोगे जिन्हें तुम पसंद करते हो और भरोसा कर सकते हो और जिन्हें व्यवसाय की सफलता की उतनी ही आशा हो, जितनी कि तुम्हें। हर निवेशक संबंधित व्यवसाय के एक हिस्से का मालिक होता है और मालिक ही यह तय करते हैं कि कंपनी किस दिशा में आगे बढ़े। किसी भी व्यवसाय की शुरुआत में निवेशक अक्सर परिवारजनों, मित्र और सहकर्मी होते हैं। निवेशक, ऋणदाताओं से इस अर्थ में बेहतर होते हैं कि तुम्हारे व्यवसाय की सफलता में उनकी रुचि रहती है। वे जानते हैं कि अगर तुम्हारा व्यवसाय असफल हुआ तो उनका पैसा डूब जाएगा और अगर सफल हुआ तो उन्हें आमदनी होगी। सहनिवेशक ग्राहक ढूंढने में भी तुम्हारी मदद करेंगे। वे कम से कम कीमत पर कच्चा माल खरीदने में तुम्हारी सहायता करेंगे और तुम्हारे लिए योग्य और ऊर्जावान कर्मचारी भी ढूंढेंगे।

इन दिनों कई ऐसी सरकारी योजनाएं उपलब्ध हैं जिनके अंतर्गत नव-उद्यमियों को सहायता दी जाती है। दलित इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंण्डस्ट्रीज जैसी संस्थाएं भी तुम्हारी मदद कर सकती हैं। इस संबंध में जानकारियां हासिल करने से तुम्हें लाभ होगा। वेंचर केपिटलस्ट्सि और निजी इक्विटी संस्थान भी होते हैं और अगर तुम्हारा व्यवसाय बड़ा है तो तुम स्टाक एक्सचेंज के जरिए भी उसकी स्थापना के लिए आवश्यक धन जुटा सकते हो। परंतु तुम्हारे लिए ये रास्ते तभी खुलेंगे जब तुम कम से कम तीन वर्ष की अवधि तक अपने व्यवसाय का सफलतापूर्वक संचालन कर दिखा दो।

यहां तुम्हारे लिए यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि दुनिया में अर्थव्यवस्थाएं कभी एक सी स्थिति में नहीं रहतीं। आर्थिक चक्र के कारण कभी तेजी रहती है तो कभी मंदी। जब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही होती है तब नया व्यवसाय शुरू करने के लिए धन जुटाना मुश्किल होता है। इसके विपरीत, जब अर्थव्यवस्था फल-फूल रही होती है तब निवेशक आसानी से मिल जाते हैं। इसके साथ ही यह भी सच है कि जब निवेश पाना आसान होता है, तब कई नए उद्यम शुरू होते हैं और इस कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है व व्यावसायिक क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन होते हैं। मंदी के दौर में भी हालात तेजी से बदलते हैं परंतु अगर तुम मंदी के दौर में अपने व्यवसाय की लाभप्रदता बनाए रखने में सफल होते हो तो तुम्हारे सामने अवसरों के कई नए द्वार खुल जाएंगे।

अर्थव्यवस्था चाहे मंदी के दौर में हो या तेजी के, तुम्हें तब तक निवेशक (अधिकांश मामलों में ऋणदाता भी) नहीं मिलेंगे जब तक तुम्हारे पास व्यवसाय की एक अच्छी योजना न हो। इस और इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर हम मेरे अगले पत्र में चर्चा करेंगे।

सप्रेम,
दादू

(फारवर्ड प्रेस के नवंबर 2013 अंक में प्रकात)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

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लेखक के बारे में

दादू

''दादू'' एक भारतीय चाचा हैं, जिन्‍होंने भारत और विदेश में शैक्षणिक, व्‍यावसायिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में निवास और कार्य किया है। वे विस्‍तृत सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक मुद्दों पर आपके प्रश्‍नों का स्‍वागत करते हैं

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