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‘घासीराम’ नहीं, ‘घासीदास’

आशा है आप मेरे इस ई-मेल को अपनी पत्रिका में स्थान देंगे, ताकि लेखकों को छत्तीसगढ़ के सतनामी गुरुओं के बारे में सही जानकारी मिल सके

फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2014 अंक के पृष्ठ 7 पर छपे कैलेंडर में छत्तीसगढ़ के सतनामियों के परमपूज्य गुरु ‘घासीदास जी’ के नाम को आपने ‘घासीराम’ लिखा है, जो गलत है। इससे हमारे समाज को ठेस पहुंची है। हमारे गुरुओं के बारे में बाहरी लेखक कुछ भी लिख देते हैं। रामचंद्र क्षीरसागर ने अपनी पुस्तक, ‘दलित मुवमेंट इन इंडिया एण्ड इट्स लीडरस् 1857-1956’ में गुरु बालकदास का जन्म-वर्ष 1830 और जन्म-स्थान ‘भंडार’ बताया है, जबकि उनका जन्म ‘गिरौदपुरी’ में 8 अगस्त, 1793 को हुआ था। इस भूल की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए मैंने संबंधित प्रकाशक को ई-मेल भेजा और उनसे आग्रह किया कि वे उसे लेखक को फारवर्ड कर दें, पर आज तक उनका कोई जवाब नहीं आया।

इसी तरह डॉ. संजय पासवान ने अपनी पुस्तक, ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ दलितस् इन इंडिया : लीडरस्’ में लिखा है कि गुरु अगमदास को हत्या के एक केस में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी (142)। बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर ने उनकी पैरवी की थी और उन्हें मृत्युदंड से बचाया था। सच्चाई यह है कि वह गुरु मुक्तावनदास थे, जिन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। इस त्रुटि की ओर ध्यान दिलाते हुए मैंने 25 सितंबर, 2013 को ई-मेल भेजा था, जिसका जवाब आज तक नहीं आया है।

आशा है आप मेरे इस ई-मेल को अपनी पत्रिका में स्थान देंगे, ताकि लेखकों को छत्तीसगढ़ के सतनामी गुरुओं के बारे में सही जानकारी मिल सके।

आपका,

सीआर बंजारे

मानिकपुर कॉलोनी

कोरबा-495682, छत्तीसगढ

(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2014 अंक में प्रकाशित)


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सीआर बंजारे

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