हम लोग वैवाहिक विशेषज्ञ नहीं हैं। हम यह दावा नहीं करते कि हमें विवाहित दपंत्ति के रूप में साथ रहने का लंबा अनुभव है। परंतु हमारे विवाहित जीवन के तीन सालों में हमने यह सीखा है कि विवाह आपके सद्गुणों को उभार सकता है और दुर्गुणों को भी। विवाह के कुछ माह पहले हमने वैवाहिक संबंधों पर एक सेमिनार में भाग लिया था, जहां हमें मार्क गनजोर की फिल्म ‘ए टेल ऑफ़ टू ब्रेन्स’, ‘दो दिमागों की कहानी’ दिखाई गयी, जो महिलाओं और पुरूषों के मस्तिष्क के अंतरों का सटीक व विस्तृत विवरण करती है। इसने हमारी आंखें खोल दीं और हमें सब कुछ बहुत साफ-साफ समझ में आ गया। महिलाओं और पुरूषों के दिमागों में बहुत फर्क होता है। दोनों की अलग-अलग रूचियां होती हैं और काम करने और संवाद के तरीके जुदा होते हैं। दोनों अलग-अलग ढंग से सोचते हैं। कई बार हमारे विवाह में टकराव दिल से जुड़े मुद्दों पर नहीं बल्कि दिमाग से जुड़े मसलों पर होता है। यह टकराव बहुदा बौद्धिक होता है।
सौभाग्यवश हमने यह अंतर पहले ही जान लिया और इसलिए विवाह के बाद हम एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझ सके। वह हमेशा क्यों कहता है कि मैं कुछ नहीं सोच रहा हूं,जबकि वह स्पष्टत: चिंताग्रस्त होता है? (पुरूष दिमाग) या इन दोनों चीजों में क्या संबंध है? (महिला दिमाग)। हमारे पास इन प्रश्नों के उत्तर पहले से ही थे। महत्वपूर्ण यह है कि इस विभिन्नता के बावजूद हम एक-दूसरे के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। यह ईश्वर का चमत्कार ही है कि उसने विवाह के रूप में आनंद का एक स्त्रोत हमें भेंट किया है। साफ़ है कि टीवी और फिल्मों में हम जो देखते हैं, वह सच नहीं होता। विवाह एक पौधे की तरह होता है। इस पौधे की हम जितनी अच्छी देखभाल करेंगे, वह उतना ही निखरेगा और प्रशंसा अर्जित करेगा। और अगर देखभाल के अभाव में वह मुरझा जायेगा और हमें पता ही नहीं चलेगा कि वह कब मर गया।
ये कुछ तरीके हैं जिनसे हम अपने विवाह को पोषित कर सकते हैं।
अपनी प्रेम भाषा को जानिये : किसी भी स्थिति पर हम सब अलग-अलग ढंग से प्रतिक्रिया करते हैं। इस तथ्य की जानकारी से हम दोनों को बहुत मदद मिली। हमारी प्रेम ‘भाषा’ जानने के लिए हमने एक साधारण परीक्षण किया। अपनी पुस्तक ‘फाईव लव लैंग्वेजेस’ (प्रेम की पांच भाषायें) में लेखक गैरी चैपमेन कहते हैं कि प्रशंसा, सेवा, शारीरिक स्पर्श, उपहार और गुणवत्तापूर्ण समय देना, ये सब प्रेम की वे भाषायें हैं,जो हर व्यक्ति को प्रभावित करतीं हैं। यदि हम अपने साथी की प्रेम भाषा की पसंद जान जाएँ तो हम उससे उस भाषा में अधिक संवाद कर सकते हैं। जब हमने एक-दूसरे की पसंदीदा प्रेम भाषा में संवाद शुरू किया तो हमारे विवाह में प्रेम का एक नया रंग घुल गया और हम एक-दूसरे को बेहतर समझने लगे। आप भी http://www.5lovelanguages.com/पर जाकर यह पता लगा सकते हैं कि आपकी प्रेम भाषा क्या है।
सुनना सीखिये : अपने जन्म से ही हम कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। हमारे माता-पिता हमें बात करना सिखाते हैं, लिखना-पढऩा सिखाते हैं परंतु कोई हमें सुनना नहीं सिखाता। हम लोग अक्सर अपनी जिह्वा का ज्यादा और अपने कानों का कम इस्तेमाल करते हैं। अपने रोजाना के कामों में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हमारे पास हमारे सहकर्मियों, मित्रों और सबसे महत्वपूर्ण हमारे जीवनसाथी की बात सुनने का समय ही नहीं रहता। हमारा ध्यान केवल बातें करने और यह सुनिश्चित करने पर रहता है कि हमारी बातें सुनी जायें। हम सौ प्रतिशत एकाग्रता के साथ और बिना किसी अन्य चीज (टीवी पर ‘खाना-खजाना’ भारत और आस्ट्रेलिया के बीच रोमांचक क्रिकेट मैच) की तरफ ध्यान दिये बगैर सुनना ही नहीं चाहते। हमने एक-दूसरे की बातों को सुनने का नियम-सा बना लिया है। हर रात सोने से पहले हम लोग चाय या काफी पीते हुए एक-दूसरे की बातें सुनते हैं। कई बार इधर-उधर की बातें भी होती हैं परंतु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह समय केवल एक-दूसरे की बातें सुनने और एक-दूसरे के साथ का आनंद उठाने का होता है।
क्षमाशीलता : ईश्वर जानता है कि पुरूष को दिन भर कौन-से संघर्ष करने होते हैं और महिलाओं का दिन क्या करते बीतता है। इसलिए पतियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी पत्नियों से प्रेम करें और पत्नियों से कहा जाता है कि वे पतियों के प्रति समर्पित रहें। जब भी मेरे पति ने मेरे साथ कुछ ऐसा किया जो मुझे बुरा लगा तब मुझे उन्हें माफ करने के पहले ऊहापोह की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। मेरा अहं मेरी सोच आड़े आई। परंतु जब मैंने यह सोचा कि ईश्वर ने मुझे कितनी बार माफ किया है तो मेरे लिए मेरे पति को माफ करना आसान हो गया। ईश्वर हमसे बिना शर्त प्रेम करता है। हम कितनी ही गलतियां क्यों न करें वह हमें क्षमा कर देता है। यह सोचने के बाद मेरे लिए क्षमावान बनना आसान हो गया और सॉरी कहने में मुझे एक क्षण भी नहीं लगा!
(फारवर्ड प्रेस के मार्च, 2015 अंक में प्रकाशित )
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