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व्यवसाय योजना

योजना, दरअसल एक 'जीवंत दस्तावेज’ है जिस पर लगातार चिंतन जारी रहना चाहिए और जिसमें समय-समय पर परिवर्तन किए जाने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हर व्यवसायी अनुभव से ही सीखता है

प्रिय दादू,

अभी तक के पत्रों में आप व्यवसाय की योजना बनाने के विभिन्न पहलुओं पर पर्याप्त प्रकाश डाल चुके हैं इसलिए मैं ‘व्यवसाय योजना’ के संबंध में जानने को उत्सुक हूं। मैं कुछ उलझन में भी हूं। क्या ‘व्यवसाय योजना’, ‘व्यवसाय की योजना’ बनाने से कुछ अलग है ?

सप्रेम,

सुदामा

प्रिय सुदामा,

पहली नजर में यह सब तुम्हें थोड़ा उलझनपूर्ण लग सकता है। यदि हम शुद्ध शाब्दिक अर्थों में सोचें तो यह साफ है कि कोई भी प्रक्र्रिया (व्यवसाय की योजना बनाना) अंतत: हमें किसी परिणाम या उत्पाद (व्यवसाय योजना) की ओर ले जाती है। परंतु व्यवसाय की योजना का निर्माण, ‘व्यवसाय योजना’ का अंत नहीं है। बल्कि यह उसकी शुरुआत है।

इसे समझने की कोशिश करो। कुछ लोग व्यवसाय योजना बनाने के बाद उसे कहीं कोने में रखकर भूल जाते हैं। कुछ अन्य, व्यवसाय योजना का अक्षरश: पालन करने की कोशिश करते हैं। ये दोनों राहें असफलता की ओर जाती हैं।

योजना, दरअसल एक ‘जीवंत दस्तावेज’ है जिस पर लगातार चिंतन जारी रहना चाहिए और जिसमें समय-समय पर परिवर्तन किए जाने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हर व्यवसायी अनुभव से ही सीखता है। वह अपने कार्यकलापों पर दूसरों की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान देता है और यह भी समझने की कोशिश करता है कि उसके प्रतियोगी जो कर रहे हैं, उसका क्या नतीजा निकल रहा है।

इस तरह, व्यवसाय योजना को तुम्हें केवल एक खाका समझना चाहिए, जिसके भीतर तुम अपने विचारों, रणनीतियों और दांव-पेंचों को परिष्कृत कर सकते हो। व्यवसाय योजना के प्रत्येक भाग पर अकेले और पूरी योजना के संदर्भ में विचार करना चाहिए। मूलत: किसी भी व्यवसाय योजना में तीन तरह की गतिविधियों पर जोर दिया जाता है और ये तीनों एक दूसरे से जुड़ी होती हैं।

* उत्पाद विकास

* ग्राहक विकास

* कंपनी का विकास (जिसमें तुम्हारी कंपनी का ढांचा, उसके विभिन्न विभाग, तुम्हारे मानव संसाधन, नीतियां व कार्य करने का तरीका शामिल है)।

उदाहरणार्थ, जब तुम कंपनी के विकास के सभी पहलुओं पर विचार करोगे तो तुम्हें अपनी (या पूरी टीम की) ताकत और कमजोरियों पर विचार करना होगा। अगर तुम ऐसा करोगे तो हो सकता है कि तुम किसी कमी को पूरी करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश पहले से ही शुरू कर दो (इसके विपरीत, अगर तुम यही काम जल्दी में करोगे तो हो सकता है कि तुम्हें किसी कम उपयुक्त व्यक्ति को काम पर रखना पड़े)। या तुम योजना के ‘प्रतियोगिता खंड’ (जो ऊपर दी गई तीनों गतिविधियों को प्रभावित करता है) पर काम कर सकते हो और अपने प्रतियोगियों व अन्य व्यवसायियों के काम की विवेचना कर सकते हो। तुम इस पर विचार कर सकते हो कि उनमें से कौन, क्या कर रहा है, किस मामले में वे मजबूत हैं और किस मामले में कमजोर।

दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यवसाय योजना को बाजार की स्थिति के अनुसार बदलना पड़ता है और बाजार की स्थिति हमेशा बदलती रहती है। लोग अक्सर यह भूल जाते हैं कि व्यवसाय की नींव में होते हैं कुछ यथार्थ (प्रतियोगिता, बाजार का आकार, आर्थिक कारक आदि) व कुछ ऐसी चीजें जिन्हें हम मानकर चलते हैं (ग्राहक का व्यवहार, वितरण के चैनल, कीमतें आदि) जो हमेशा बदलती रहती हैं।

इसके प्रकाश में इस उक्ति को जरूर अपनाओ-जीवन के मूल्य के रूप में नहीं परंतु व्यवसाय के सिद्धांत के रूप में : ‘मैं किसी भी समय अपना मन बदलने का अधिकार सुरक्षित रखता हूं।’ कहने की आवश्यकता नहीं कि जब भी हम अपना मन बदलें अर्थात कोई नया निर्णय लें तब हमें अपनी वर्तमान प्रतिबद्धताओं और समझौतों को ध्यान में रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका उल्लंघन न हो।

तुम्हारा व्यवसाय समय के साथ बदलता रह सकता है परंतु एक बात साफ  है : व्यवसाय का संबंध केवल दो चीजों से है-अपने ग्राहकों के लिए उत्पाद या सेवा तैयार करना और अपने उत्पाद या सेवा को बेचना।

हमारे जैसे लोगों, जिनके पास बहुत संसाधन नहीं हैं, को बिक्री पर विशेष ध्यान देना होता है ताकि हमारे व्यवसाय में नकद राशि आ सके। तुम्हें अपने पहले उत्पाद और पहले ग्राहक तक पहुंचने के लिए सबसे बेहतर रास्ता खोजना होगा। परंतु इसके बाद भी तुम्हें लगातार स्वयं से ये प्रश्न पूछते रहने होंगे : मेरा ग्राहक कौन है ? कोई ग्राहक मेरा उत्पाद या सेवा क्यों खरीदना चाहेगा ? मैं अपने उत्पाद या सेवा को बेहतर कैसे बना सकता हूं ? उसकी और क्या आवश्यकताएं हैं जिनको पूरा कर मैं मुनाफा कमा सकता हूं? वर्तमान में उत्पाद वितरण के कौन से चैनल हैं ? क्या कोई नए चैनल उभर रहे हैं ? क्या किसी नए चैनल के उपयोग के बारे में सोचा जाना चाहिए ? क्या किसी नए चैनल का निर्माण हो सकता है ? हर व्यवसायी को अपने ग्राहकों के पीछे दौडऩा होता है और व्यवसाय का एक ऐसा मॉडल तैयार करना होता है जिसे बार-बार दोहराया जा सके और जिसके आकार में वृद्धि की जा सके।

व्यवसाय की दुनिया में क्या परिवर्तन आ रहे हैं, उन्हें समझने के लिए तुम्हें अधिक से अधिक लोगों के संपर्क में रहना होगा। इनमें सिर्फ  वे लोग शामिल नहीं हैं जो तुम्हारे ग्राहक या संभावित ग्राहक हैं। इनमें शिक्षा जगत के लोग, अन्य उत्पादों के प्रदायकर्ता, अन्य व्यवसायों में रत उद्यमी, उद्योगपति, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, बैंककर्मी आदि शामिल हैं। मित्रों और परिवारजनों से मिलने वाली सलाह भी बहुत कीमती होती है। जो लोग दूसरे व्यवसाय में हैं वे भी कब जब अच्छी सलाह दे सकते हैं (परंतु अपने प्रतियोगी से कभी सीधे सलाह नहीं मांगना चाहिए क्योंकि वह तुम्हें जान-बूझकर गलत सलाह दे सकता है-इसकी जगह उसके कार्यकलापों पर नजर रखो और इसकी विवेचना करो कि उसका कौन सा कार्य सफ ल हो रहा है और कौन सा असफल)।

इस सब से तुम्हें सूचनाओं और जानकारियों का एक खजाना हाथ लगेगा जिसे आत्मसात कर तुम लगातार बदलते हुए बाजार के हालातों से उत्पन्न अवसर और खतरों के बीच से अपने व्यवसाय को आगे ले जा सकोगे। सफ ल व्यवसायी बनने के लिए यह जरूरी है कि बाजार में हो रहे परिवर्तनों की उद्यमी कितनी सही व्याख्या और विवेचना कर पाता है। साथ में उसे विभिन्न खतरों और अवसरों व उनसे जुड़े जोखिमों का आकलन करना भी आना चाहिए।

यह करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि नियत तारीखों पर एक समय निश्चित कर दिया जाए जिसका इस्तेमाल नए अवसरों और लागत, कीमत, कार्य-आदेश, बिक्री व तुम्हारे व्यवसाय के सभी पहलुओं पर विचार करने के लिए हो।

आगे चलकर क्या परिवर्तन हो सकता है इसका अंदाजा लगाने की कोशिश करो। परिवर्तन के लिए तैयार रहो। परिवर्तन का स्वागत करो और उसे समझो क्योंकि परिवर्तन ही उद्यमी का सबसे बड़ा मित्र है। जब तुम यह समझ जाओगे तब तुम इस वाक्य का अर्थ भी समझ जाओगे जिसे विंस्टन चर्चिल ने कहा था, ‘योजना कुछ नहीं है, योजना बनाना सब कुछ है।’

सप्रेम,

दादू

(फारवर्ड प्रेस के मार्च, 2014 अंक में प्रकाशित )


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

दादू

''दादू'' एक भारतीय चाचा हैं, जिन्‍होंने भारत और विदेश में शैक्षणिक, व्‍यावसायिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में निवास और कार्य किया है। वे विस्‍तृत सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक मुद्दों पर आपके प्रश्‍नों का स्‍वागत करते हैं

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