h n

क्या आप मुझे अपनी मौजूदगी का उपहार नहीं देंगे?

मैं कहता हूं प्रेम, समय है। अगर आप मुझसे प्यार करते हैं तो मेरे साथ समय बिताइए, मुझे वैसा ही स्वीकार कीजिए, जैसा कि मैं हूं, मेरे पंख मत कतरिए, मुझे अपने ढांचे में ढालने की कोशिश न करिए बल्कि मेरी मदद कीजिए ताकि मैं पंख लगाकर आशा के क्षितिज की ओर उड़ान भर सकूं

मेरा नाम सतीश है। मैं 16 वर्ष का हूं। यह लुभावने बेंगलुरु शहर में ऐश्वर्य के साधनों के बीच मेरी मृत्यु की कहानी है। मैं एक धनी घर में पैदा हुआ था। मेरे माता-पिता की आमदनी अच्छी-खासी थी और वे मुझे कभी ऐसी कोई वस्तु दिलवाने से इंकार नहीं करते थे जो पैसों से खरीदी जा सकती हो।

मैं परिक्षाओं में कभी उतने अच्छे अंक नहीं ला सका, जितने वे चाहते थे। खेल और संगीत के क्षेत्रों में भी मेरा प्रदर्शन कोई खास नहीं था। मैं रंगों से खेलना चाहता था परंतु मेरे माता-पिता इससे प्रसन्न नहीं थे। जिन मित्रों के साथ मैं घूमता-फिरता था वे भी मुझे खास पसंद नहीं करते थे।

मेरे माता-पिता सुशिक्षित थे और अच्छे पदों पर कार्य कर रहे थे। उनका बाहर की दुनिया में मान था और मुझसे उनके अहं को चोट पहुंचती थी। मैं कभी उतना अच्छा नहीं बन सका, जितना वे चाहते थे और वे मेरे लिए कभी उतने अच्छे नहीं बन सके, जितना कि मैं चाहता था। उनके लिए मैं जिद्दी, कृतघ्न और उनकी उपेक्षा करने वाला पुत्र था।

वे यह कभी नहीं समझ पाए कि उनकी उपस्थिति ही मेरे लिए हमारे विशाल मकान को घर बनाती थी, उनकी उपस्थिति से ही मेरा जीवन जीने लायक बनता था, उनकी उपस्थिति से मुझे चलते रहने की हिम्मत मिलती थी। वे कहते थे कि वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं और इसलिए अधिक से अधिक समय काम करते हैं। वे कहते थे कि वे मुझे इसलिए डांटते-फटकारते हैं ताकि मैं उनकी पसंद का करियर बना सकूं।

मैं कहता हूं प्रेम, समय है। अगर आप मुझसे प्यार करते हैं तो मेरे साथ समय बिताइए, मुझे वैसा ही स्वीकार कीजिए, जैसा कि मैं हूं, मेरे पंख मत कतरिए, मुझे अपने ढांचे में ढालने की कोशिश न करिए बल्कि मेरी मदद कीजिए ताकि मैं पंख लगाकर आशा के क्षितिज की ओर उड़ान भर सकूं।

मैंने सब कुछ करके देख लिया। नशे से आशा नहीं मिलती, मित्र वफादार नहीं हैं। अब अवसाद मेरा स्थाई साथी है और वह मुझे एक ब्लेकहोल की ओर घसीट रहा है। मुझे पंख चाहिए, मुझे आशा चाहिए, मुझे कोई ऐसा शख्स चाहिए जिसके कंधे पर सिर रखकर मैं रो सकूं। मुझे कोई ऐसा चाहिए जो मुझ पर विश्वास करे…मुझमें अब जीने की ताकत नहीं बची है। जीवन के पास मुझे देने के लिए कुछ नहीं है। मैं हार मान रहा हूं…

सतीश के माता-पिता अब उसके प्राणहीन शरीर को जकड़कर रो रहे हैं…जो वह अपने जीवन में चाहता था, वह उसे मौत के बाद मिला। परंतु ऐसा होना जरूरी नहीं था। जिन्हें हम चाहते हैं, उन्हें हमारी मौजूदगी की जरूरत होती है, उपहारों की नहीं, धैर्य की जरूरत होती है, दबाव की नहीं, शांति की जरूरत होती है, दर्द की नहीं, प्रार्थना की जरूरत होती है, शक्ति की नहीं।

वे यह कभी नहीं समझ सके कि उनकी उपस्थिति हमारे विशाल मकान को घर बनाती है, उनकी उपस्थिति मेरे जीवन को जीने लायक बनाती है, उनकी उपस्थिति मुझे चलते रहने की हिम्मत देती है।

हमारे बच्चे, ईश्वर का हमें उपहार हैं और हम उनके प्रति उसी तरह जिम्मेदार हैं जैसे वह व्यक्ति होता है, जिसे कोई बेशकीमती चीज हिफाजत से रखने के लिए दी गई हो। हमसे यह अपेक्षा नहीं की जाती कि हम अपने बच्चों को व्यवसाय या शिक्षा के क्षेत्र में सफलता के शीर्ष पर पहुंचाएं। हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य यही है कि हम उन्हें बिना शर्त प्यार दें और उनमें आशा जगाएं, हम उन्हें बताएं कि हमारे लिए वे बहुत कीमती हैं, अनोखे हैं और हमें ईश्वर ने यह जिम्मेदारी सौंपी है कि हम उनका हाथ पकड़कर उन्हें उस यात्रा पर ले जाएं, जिसमें वे स्वयं को खोज और पा सकें और एक परिपूर्ण जिंदगी जी सकें।

 

(फारवर्ड प्रेस के अप्रैल 2014 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

चित्रा रामास्वामी

चित्रा रामास्वामी-जयकरण सामाजिक कार्यकर्ता हैं और 'पीसमेकर्स' नामक एनजीओ की मुखिया हैं जो विवादों को सुलझाने, हिंसा रोकने और न्याय व शांति की स्थापना के लिए काम करता है। वे पारिवारिक जीवन के मामलों में लोगों को शिक्षित करने और उन्हें परामर्श देने का काम भी करती हैं

संबंधित आलेख

महिलाओं के सम्मान के बिना कैसा आंबेडकरवाद?
सवर्णों के जैसे ही अब दलित परिवारों में भी दहेज आदि का चलन बढ़ा है। इसके अलावा पितृसत्तात्मक समाज के जो अवगुण दलित साहित्य...
प्यार आदिवासियत की खासियत, खाप पंचायत न बने आदिवासी समाज
अपने बुनियादी मूल्यों के खिलाफ जाकर आदिवासी समाज अन्य जाति, धर्म या बिरादरी में विवाह करने वाली अपनी महिलाओं के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने...
कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न
लेखक अरविंद जैन बता रहे हैं कि कार्यस्थलों पर कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों में तमाम सुधारों के बावजूद पेचीदगियां कम नहीं...
सभी जातियों के नौजवान! इस छोटेपन से बचिये
हिंदी के ख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कहते हैं कि जो आदमी अपनी जाति को अच्‍छा और दूसरी जाति काे बुरा मानता है वह...
विदेश में बसने के लिए व्यक्तित्व परिवर्तन आवश्यक
विदेश में रहने से जहां एक ओर आगे बढऩे की अपार संभावनाएं उपलब्ध होती हैं वहीं कठिन चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है।...