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बच्चों में अवसाद

दो से पांच प्रतिशत बच्चे अवसाद का सामना करते हैं और अगर उनका समय पर इलाज न हो तो वे अवसाद के रोगी बन जाते हैं। अच्छी खबर यह है कि इलाज से शत-प्रतिशत बच्चे अवसादमुक्त हो जाते हैं

सन् 1980 के दशक तक, यह माना जाता था कि अवसाद,एक ऐसा रोग है जो सिर्फ वयस्कों को होता है। बाद मे हुए अनुसंधान से यह बात गलत साबित हुई। अमेरिका की बाल व किशोर मनोचिकित्सा अकादमी, अवसाद को एक ऐसी बीमारी के रूप में परिभाषित करती है जब उदासी, किसी बच्चे या किशोर का स्थायी भाव बन जाता है और उसके कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करने लगता है, कई बच्चे अपने अवसाद को जज्ब कर लेते हैं और अंतत: वह गुस्से और विध्वंसक व्यवहार के रूप में प्रकट होता है। इस तरह के वेष बदले हुए अवसाद को पहचानना सबसे कठिन होता है।

यह दिलचस्प है कि दस साल से कम उम्र के बच्चों में, लड़कियों की अपेक्षा लड़कों के अवसादग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है। अवसाद के कई कारण हैं परंतु इनमें से तीन मुख्य हैं और इन सभी का संबंध माता-पिता या अभिभावकों से है। सबसे अच्छी खबर यह है कि बच्चों में अवसाद का शत-प्रतिशत इलाज संभव है।

अवसाद का दानव कब सिर उठाता है?

अ. दम्पत्य  में तनाव

माता-पिता, सावधान! हो सकता है कि हमारे छोटे या बड़े बच्चों, जिन्हें हम बेइंतहा प्यार करते हैं, के अवसाद का कारण हम स्वयं हों। अगर हम आपस में हमेशा लड़ते-झगड़ते रहते हैं और एक- दूसरे पर दोष मढ़ते रहते हैं तो हमें यह पता भी नहीं चलता कि कब हमारे बच्चों ने खुद को अपराधबोध और स्वनिंदा की चहारदीवारी में बंद कर लिया। इस तरह के माता-पिता की करतूतों की सजा, बच्चों को अवसाद के रूप में भुगतनी पड़ती है।

ब. सीखने में अक्षमता व सीखने के अलग-अलग तरीके

भारत का वर्तमान स्कूली ढांचा, इस तरह के बच्चों को नजरंदाज करता है। दुर्भाग्यवश, बहुसंख्यक बच्चे इसी श्रेणी में आते हैं। दो साल के बच्चों तक को पढऩे और लिखने के लिए मजबूर किया जाता है और किशोरों पर उन प्रतियोगी परीक्षाओं में सफ लता पाने का दबाव बनाया जाता है, जिनमें उनकी तनिक भी रुचि नहीं होती।

स. यौन शोषण

आंकड़े बताते हैं कि हर दस में से सात बच्चों को अपने जीवन में कभी न कभी यौन शोषण का सामना करना पड़ता है। जिन बच्चों के साथ यह होता है वे गहरे अवसाद में डूब जाते हैं क्योंकि उनका यौन शोषण करने वाला व्यक्ति अक्सर परिवार का ही सदस्य होता है और इस कारण उन्हें न तो न्याय प्राप्त हो पाता है और ना ही माता-पिता का संरक्षण। कभी-कभी अपराधी, बच्चों को इतना डरा-धमका देते हैं कि वे अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की शिकायत तक नहीं करते।

माता-पिता क्या करें

अ . बच्चों को उनके जीवन का बड़ा चित्र दिखाएं

दुनिया में तनाव पर अनुसंधान करने वालों में से सबसे जाने-माने, डॉक्टर हेन्स सेलिए ने आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व, तनाव की समस्या पर तब विचार करना शुरू किया जब उन्होंने देखा कि उनके छोटे-छोटे बच्चे व उनके बच्चों के मित्र, अपना जीवन बस ऐसे ही जिए चले जा रहे हैं। उन्हें यह नहीं मालूम की वे अपने जीवन में क्या करना चाहते हैं-यह एक अत्यंत तनावपूर्ण स्थिति है। उन्होंने इस समस्या का समाधान यह सुझाया कि हम अपने बच्चों को ‘परोपरकारी अहंवाद’ के सिद्धांत से परिचित कराएं। हम उन्हें समझाएं कि यदि हम स्वयं को, दूसरों के लिए, उपयोगी बना सकें तो हमारे जीवन को एक लक्ष्य मिल जाएगा। इस सिद्धांत के अवलंबन के बिना, युवा होता बालक, स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाले काम कर सकता है, जिनमें आत्महत्या भी शामिल है। कुछ अन्य बच्चे अपने अर्थहीन जीवन में रंग भरने के लिए शराब व ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं।

ब. बच्चों को धन्यवाद कहना सिखाइए : यह निराशा की
रामबाण दवा है

डॉक्टर टिम लहये को विश्वास है कि जो बच्चे उनके माता-पिता व ईश्वर के प्रति शुक्रगुजार होते हैं, अवसाद उनसे मीलों दूर रहता है। माता-पिता को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि उन्हें जो मिला है, उसके लिए वे कृतज्ञ रहें और ईश्वर का धन्यवाद करें-चाहे वह परिवार हो, भोजन हो, अच्छा स्वास्थ्य हो, सिर पर छत हो या प्यारे मित्र हों। कई ऐसे बच्चे होते हैं जो हमेशा शिकायत करते रहते हैं। ऐसे बच्चों की इस प्रवृत्ति पर शुरू से ही रोक लगानी चाहिए।

स . प्रेम व बिना शर्त स्वीकार्यता

बच्चों को अगर उनके माता-पिता ही नकार दें तो इससे बड़ी मुसीबत उनके लिए कुछ नहीं हो सकती। मुझे याद है कि एक लड़की अपनी छोटी बहन की तुलना में अधिक सांवली थी। उसकी मां अक्सर अपनी बड़ी लड़की के बारे में जान-पहचान वालों से कह देती थी कि वह नौकरानी है। हाउ टू रियली लव यूअर चाईल्ड के लेखक डा. रॉक्स केमबेल कहते हैं कि बच्चों से आंख से आंख मिलाकर और उनके सिर या कंधे पर हाथ रखकर उनसे बात करना और वे जो कह रहे हैं, उस पर पूरा ध्यान देना-यही वे मानक हैं जो यह तय करते हैं कि आप अपने बच्चे को कितना चाहते हैं। अपने बच्चे में सुरक्षा, आत्मविश्वास और स्वीकार्यता की भावना पैदा करने के लिए यह जरूरी है कि आपके अपने जीवनसाथी के साथ प्रेमपूर्ण संबंध हों व आप उसका सम्मान करते हों।

अवसादग्रस्त बच्चे का इलाज

साइकोथेरेपी या बातचीत के जरिए इलाज, अवसादग्रस्त बच्चे के इलाज की सर्वोत्तम विधि है। इसमें संज्ञानात्मक चिकित्सा, व्यवहार संबंधी चिकित्सा व जिसे मनोचिकित्सक व द मॉस्क ऑफ मेलनकोली के लेखक डाक्टर जॉन व्हाईट, विषाद वर्णन कहते हैं, शामिल हैं। बातचीत से इलाज मूलत: बच्चे को नकारात्मक सोच और अपनी दुनिया को तोड़-मरोड़कर देखने से बचाता है। जानेमाने अनुसंधानकर्ता डॉक्टर पॉल ओ केलेघन ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में यौन शोषण के शिकार बच्चों के बीच लंबे समय तक काम किया। उनका यह अनुभव है कि साईकोथेरेपी ने इन बच्चों को सामान्य जीवन जीने में मदद की। बच्चों से यह कहा गया कि वे जिस भयावह अनुभव से गुजरे हैं, उसके चित्र बनाएं और उसके बारे में बात करें। जाहिर है कि यह बातचीत अकेले में की जाती थी।

बच्चों के अवसाद के इलाज के लिए अवसाद निरोधक (एन्टीडिप्रेसेंट) दवाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर गंभीर मतभेद हैं। अमेरिका का फू ड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन इसके खिलाफ है क्योंकि इन दवाओं के ढेर सारे साईड इफेक्ट्स होते हैं। परंतु गंभीर रूप से अवसादग्रस्त बच्चों के इलाज के लिए एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का प्रयोग किया जाता है। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों में अवसाद के लक्षण पहचान नहीं पाते और अवसादग्रस्त बच्चे के लालन-पालन में आने वाली कठिनाइयां उन्हें कुंठित और परेशान कर देती हैं। मुझे उम्मीद है कि यह लेख, माता-पिता को उनके बच्चों में अवसाद के लक्षणों की पहचान करने में मदद करेगा और वे अपने बच्चों को अवसाद से मुक्त कर सकेंगे।

फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

दिव्या जकारिया

डॉ. दिव्या जकारिया लेखक और जीवन जीने की कला की प्रशिक्षक हैं। वे अपने पति और दो बच्चों के साथ बेंगलुरु में रहती हैं।

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