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सामूहिक प्रयास की देन है ‘दलित दस्तक’

दलित चिंतक एचएल दुसाध ने कहा कि बहुत-सी दलित पत्रिकाओं में से वे सिर्फ दो को ही प्रमुख मानते हैं - फारवर्ड प्रेस और दलित दस्तक

नई दिल्ली : ‘दलित दस्तक’ एक पत्रिका नहीं बल्कि एक आंदोलन है। यह किसी एक व्यक्ति की पत्रिका नहीं बल्कि सामूहिक प्रयास है। दलित दस्तक ने अपने संपादकीय तथा लेखों के जरिए बसपा के साथ-साथ अन्य दलित राजनीतिक आंदोलनों के भूत, वर्तमान और भविष्य का परीक्षण करने का कार्य किया है। यह बात प्रो. विवेक कुमार ने मुख्य अतिथि के रूप में 29 जून को कांस्टिट्यूशन क्लब में बोलते हुए कही। दलित चिंतक एचएल दुसाध ने कहा कि बहुत-सी दलित पत्रिकाओं में से वे सिर्फ दो को ही प्रमुख मानते हैं – फारवर्ड प्रेस और दलित दस्तक।

अशोक दास ने दलित दस्तक के संरक्षकों एवं पाठकों का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में अनिता भारती, बौद्धाचार्य शान्तिस्वरूप
बौद्ध, प्रोफेसर कौशल पंवार, जयप्रकाश कर्दम, अमित परिहार, रामकुमार गौतम, जेसी आदर्श, देवमणि भारतीय, राजिंद्र कश्यप आदि ने भी अपनी बातें रखीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आनंद श्रीकृष्ण ने कहा कि जब व्यक्तिवाद हावी हो जाता है तो आंदोलन गौण हो जाता है। हमें हीरो वर्शिप से बचना चाहिए। आंदोलन को आगे बढ़ाना है तो आंदोलन को सामूहिक होना पड़ेगा। कार्यक्रम का संचालन पूजा राय और विनोद आर्या ने किया।

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

राज वाल्मीकि

'सफाई कर्मचारी आंदोलन’ मे दस्तावेज समन्वयक राज वाल्मीकि की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कविता, कहानी, व्यग्य, गज़़ल, लेख, पुस्तक समीक्षा, बाल कविताएं आदि विधाओं में लेखन किया है। इनकी अब तक दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं कलियों का चमन (कविता-गजल-कहनी संग्रह) और इस समय में (कहानी संग्रह)।

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