हालिया घटनाक्रम से ऐसा जाहिर होता है कि मोदी लहर के दो हिस्से हैं-पहला वह जो चुनाव के पहले दिखाई और सुनाई दे रहा था : जोशीले भाषणों, होर्डिंगों व थ्री डी आमसभाओं के जरिए और दूसरा वह जो सतह के नीचे था और मोदी की जीत के बाद, अब, धीरे-धीरे उभर रहा है।
नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार चुने जाने के दो दिन बाद-25 दिसंबर, 2007 को-कंधमाल, ओडिशा में पुलिस व पत्रकारों के सामने, 82 वर्षीय स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने मोबाइल फोनपर अपने अनुयायियों से कहा, ‘तुम लोग केवल टायर क्यों जला रहे हो। अब तक तुमने कितने ईसाई घरों व चर्चों में आग लगाई है? क्रांति के बिना शांति नहीं हो सकती। नरेंद्र मोदी ने गुजरात में क्रांति की है इसलिए वहां शांति है।’
इसके बाद, स्वामी के गुंडों ने हिंसा का तांडव शुरू कर दिया। लगभग छह माह बाद, स्वामी और उनके साथियों की माओवादियों ने हत्या कर दी। हत्या के बाद कंधमाल में हिंसा का नया दौर शुरू हुआ, जिसमें भारी खून-खराबा हुआ। लगभग 38 लोग मारे गए और हजारों को अपने घर-बार छोड़कर भागना पड़ा।
मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के पूर्व और उसके बाद, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के निवासी, मोदी लहर के इस भयावह चेहरे से दो-चार हुए। विश्व हिन्दू परिषद् की बस्तर जिला इकाई के प्रमुख सुरेश यादव का दावा है कि पिछले छह महीनों में जिले की लगभग 50 ग्राम पंचायतों ने बाकायदा प्रस्ताव पास कर, गैर-हिन्दू धार्मिक गतिविधियों और गैर-हिन्दू मिशनरियों (अर्थात् ईसाई) के गांवों में प्रवेश पर प्रतिबंध की घोषणा की है।
मोदी की जीत से संघ परिवार के सदस्यों और उन जैसे अन्य संगठनों की हिम्मत बढ़ी है। सुरेश यादव कहते हैं, ‘गांव वाले अपनी समस्याएं लेकर हमारे पास आए। विहिप ने तो केवल उन्हें कानून के बारे में बतलाया। अब, जबकि ग्राम पंचायतों ने प्रस्ताव पारित कर दिए हैं, यह जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह उन्हें लागू करे। अन्यथा हम विरोध करेंगे। हम मुख्यमंत्री व राज्यपाल से भी अनुरोध करेंगे कि इस प्रतिबंध को लागू किया जाए।’ प्रदेश की भाजपा सरकार अब तक इस घटनाक्रम की मूकदर्शक बनी हुई है।
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम (सीसीएफ) का आरोप है कि यह प्रतिबंध ‘गैर कानूनी व असंवैधानिक है।’ सीसीएफ के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल पूछते हैं, ‘यह वैसा ही है जैसा कि खाप पंचायतें करती हैं। भला एक पंचायत के प्रस्ताव के जरिए हमारी धार्मिक गतिविधियों को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है?’
कुछ आदिवासियों पर हमले भी हुए हैं। कुछ को सस्ती दरों पर खाद्यान्न नहीं मिल रहा है, जिसके वे पात्र हैं। क्या यही वे ‘अच्छे दिन’ हैं जिनका वायदा चुनाव के पहले रैलियों और टीवी पर किया गया था। ‘आज लगभग दो महीने से गांव में राशन नहीं मिल रहा है और राशन लेने गए 10 ईसाईयों पर हमले हुए हैं’, यह दावा है सोनुरू मंडावी का जिनके परिवार ने सन् 2002 में ईसाई धर्म को अंगीकार किया था।
ईसाई संगठनों ने मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है कि बस्तर के ईसाई आदिवासियों के साथ जो हो रहा है, वह संविधान द्वारा प्रदत्त आस्था, अभिव्यक्ति, संगठित होने व एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। उसके अलावा, यह उनके भोजन के अधिकार का भी मखौल बनाता है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता चितरंजन बख्शी कहते हैं, ‘सीपीआई के राष्ट्रीय नेतृत्व को यहां के घटनाक्रम से अवगत करा दिया गया है और हम दक्षिणपंथी संगठनों की इन (अलगाववादी) कार्यवाहियों के खिलाफ कदम उठाएंगे।’
(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित)
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