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फोटो फीचर : सत्यशोधक समाज के अभिनव कार्यों को नमन

जोतिबा फुले ने 24 सितम्बर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की और फुले उसके प्रथम अध्यक्ष व कोषाध्यक्ष बने। समाज का मुख्य उद्देश्य शूद्रों और अतिशूद्रों को ब्राह्मणों के शोषण से मुक्ति दिलाना था

सत्यशोधक समाज स्थापना दिवस : 24 सितम्बर 1873

हर रविवार को शूद्रों की बदहाली पर चर्चा करने के लिए एकत्रित होने वाले जोतिबा फुले के मित्रों और उनके सह-व्यवसायियों ने निर्णय लिया कि वे एक संस्था का गठन करेंगे। तद्नुसार, 24 सितम्बर, 1873 को उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की और फुले उसके प्रथम अध्यक्ष व कोषाध्यक्ष बने। समाज का मुख्य उद्देश्य शूद्रों और अतिशूद्रों को ब्राह्मणों के शोषण से मुक्ति दिलाना था। सत्यशोधक समाज के सभी सदस्यों ने यह शपथ ली कि वे बिना किसी मध्यस्थ के, केवल एक विश्वनिर्माता (निर्मिक) की आराधना करेंगे और सभी मनुष्यों को ईश्वर की एक समान संतानें मानेंगे। ‘सत्यदीपिका’ के अक्टूबर 1873 के अंक में लिखा गया कि ‘पुणे में इन दिनों एक महान क्रांति हो रही है’, कुनबी, माली, कुंवर, बढ़ई और अन्य शूद्र जातियों के 700 परिवारों ने सूत्रबद्ध होकर यह निर्णय लिया है कि वे आध्यात्मिक और सामाजिक मसलों पर ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्ति पाएंगे। फुले अध्येता रोजालिंड ओ हेनलॉन ने लिखा है कि ऐतिहासिक दृष्टि से समाज की स्थापना ‘(उन्नीसवीं) सदी के आखिरी तीन दशकों में नीची जातियों के राजनेताओं व चिंतकों द्वारा संगठित होने के कई प्रयासों में से पहली थी।’

 

 

ब्राह्मणविहीन विवाह : अपनी स्थापना के पहले ही वर्ष में समाज ने अपने सदस्यों को अंधविश्वासों और विवाह समारोहों में ब्राह्मणों की उपस्थिति की अनिवार्यता को त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया। समुदाय के दकियानूसी तत्वों के विरोध और कम से कम एक मौके पर, पुलिस की सुरक्षा में, सामाजिक जीवन को ब्राह्मणमुक्त करने का अभियान शुरू हुआ।

 

जया कराडी लिंगू तेलुगू व्यापारियों व ठेकेदारों के उस समूह में शामिल थे, जिसने मुंबई में समाज की सदस्यता ली। उन्होंने समाज के कार्यक्रमों को उदारतापूर्वक अपना सहयोग दिया और अपने समुदायों में समाज के संदेश को फैलाया भी।

 

समाज का ध्वज जुलूस : अप्रैल 1885 में गुड़ी पड़वा (हिन्दू नववर्ष दिवस) के मौके पर धार्मिक ध्वजों की बजाय, समाज ने साथी संगठन ‘दीनबंधु सार्वजनिक सभा’ के साथ मिलकर पुणे की सड़कों पर ध्वज जुलूस निकाला। जुलूस में सबसे आगे महार बैंड था। फुले और अन्य प्रमुख बहुजन नेताओं के नेतृत्व में एक बड़ी भीड़ ने पांच घंटो तक समाज के नवरचित ध्वज के साथ जुलूस निकाला।

 

 

(फारवर्ड प्रेस के सितम्बर 2014 अंक में प्रकाशित)


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