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बहुजन रंगमंच को नए आयाम देते श्याम कुमार

रंगमंच में सक्रिय रहते हुए श्याम के मन में हमेशा एक बेचैनी-सी बनी रहती थी और वे रंगमंच को बाबासाहेब की वैचारिकी से जोड़कर कुछ खास करना चाहते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 2004 में 'सम्यक् नाट्य संस्थान' की स्थापना की

लखनऊ में पिछले दिनों सम्पन्न चौथे बाल नाट्य समारोह एवं दूसरे बाबासाहेब डॉ. बीआर आम्बेडकर प्रबुद्ध नाट्य समारोह की अपार सफलता ने बहुजन रंगमंच के बेहतर भविष्य के प्रति आश्वस्त किया है। लखनऊ में पिछले कई वर्षों से भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी की स्थापना करके ऊर्जावान और आम्बेडकरी मिशन के प्रति समर्पित युवा रंगकर्मी श्याम कुमार बहुजन रंगकर्म को नए आयाम देने के काम में दिन-रात जुटे हुए हैं। श्याम पिछड़ी धानुक जाति से आते हैं। आरंभ में वे खेल के क्षेत्र में सक्रिय थे लेकिन डॉ आम्बेडक के विचारों से गहरे तक प्रभावित होने के कारण वे अपने समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें रंगमंच का माध्यम सबसे बेहतर लगा और 1996 में वे सक्रिय रूप से रंगमच से जुड़ गए। पहले कई नाट्य समूहों के साथ काम किया। बंसी कौल (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली) के साथ श्याम ने 1996-97 तक रंग विदूषक रंगमंडल, भोपाल में एक वर्ष तक रहकर नाटक की बारीकियां सीखीं और फिर उन्होंने भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ में एक वर्ष तक काम किया। इन्हें लाहौर में आयोजित वल्र्ड परफार्मिंग आर्ट फेस्टिवल, 2005 में जाने का मौका मिला। वहां ‘बेगम और बागी’ नाटक में श्याम ने प्रमुख भूमिका निभाई और उनके बेटे मानवेन्द्र कुमार ने बेगम के लड़के की भूमिका अदा की।

रंगमंच में सक्रिय रहते हुए श्याम के मन में हमेशा एक बेचैनी-सी बनी रहती थी और वे रंगमंच को बाबासाहेब की वैचारिकी से जोड़कर कुछ खास करना चाहते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 2004 में ‘सम्यक् नाट्य संस्थान’ की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य बहुजन रंगकर्म के प्रति समर्पित लेखकों, निर्देशकों एवं अभिनेताओं को मंच प्रदान करना था। साथ ही आम आदमी को उत्कृष्ट एवं उद्देश्यपूर्ण नाट्य प्रस्तुतियों तथा नाट्य प्रदर्शनों के द्वारा नाट्य विधा से जोडऩा भी था। इनकी यह भी कोशिश रही कि वंचित तबके से जुड़े समसामयिक विषयों, उपन्यास व कहानियों पर नाटक तैयार कर उनका मंचन हो। ‘लखनऊ नाट्यमहोत्सव’ में इनकी संस्था हर बार टकों का सफल मंचन करती आ रही है। बाद में अपने काम को और विस्तार देने के लिए श्याम ने 2011 में भारतीय दलित नाट्य अकादमी की स्थापना की। 2014 में इसका नाम बदलकर भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी कर दिया गया।

श्याम के साथ उनका पूरा परिवार भी रंगमंच पर सक्रिय है। अभी तक श्याम और उनकी पत्नी अर्चना ने मिलकर लगभग 40 नाटकों में अभिनय व 25 नाटकों का निर्देशन किया है, जिनमें से कुछ प्रमुख नाटक हैं-एक था गधा उर्फ अलादाद खां, तुक्के पे तुक्का, चंद्रिमा सिंह उर्फ चमकू, मृच्छकटिकम (मिट्टी की गाड़ी), हर क्षण विदा है, सदा सार्थक बुद्ध, नीति मानकीकरण, द ग्रेट राजा मास्टर, बेगम और बागी, नया बीज, देशद्रोही की मां, दहशत आत्मअग्नि, चुनाव चक्रम, रेशम, सलीम शेरवानी की शादी, स्वह्रश्वन मृत्यु, बारह सौ छब्बीस बटा सात, कथा एक पेड़ की, पूरब से पश्चिम की ओर, अहसास, अश्वत्थामा, रावण, भरतनाट्य (मिसफिट), डोम पहलवान, कामरेड का बक्सा, जब मैंने जात छुपाई, आषाढ़ का एक दिन, बुद्धं शरणं गच्छामि, 23 मार्च भगाणा कांड, थेरीगाथा और दिल्ली की गद्दी पर खुसरो।

लखनऊ में नाटकों के माध्यम से समाज की समस्याओं को सामने लाने वालों में श्याम की संस्था का नाम बड़े ही गर्व से लिया जाता है। श्याम ने लखनऊ से बाहर भी कई राज्यों में अपने नाटकों का मंचन किया है। सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एवं आर्ट, नई दिल्ली द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन, 2012 में श्याम के निर्देशन और मुख्य भूमिका में ‘डोम पहलवान’ नाटक का शानदार मंचन हुआ। 2013 में आम्बेडकरी युवा साहित्य सम्मलेन, यवतमाल, महाराष्ट्र में ‘कॉमरेड का बक्सा’ नाटक काफी प्रशंसित रहा था। इन्होंने कुछ टेलीविजन धारावाहिकों में भी अभिनय किया है। ‘हम भी इंसान हैं’ (टेलीफिल्म), ‘अपने हुए पराये’, सज्जाद जहीर पर वृत्तचित्र तथा जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘गुंडा’ के नाट्य रूपांतरण आदि में इन्होंने अभिनय किया है। उनकी पत्नी अर्चना आर्या ‘सरसों के फूल’, ‘फ़ांस’ आदि में काम कर चुकी हैं। रंगमंच में उनके योगदान के लिए श्याम को युवा रंगकर्मी सम्मान, समन्वय सेवा सम्मान, दलित रंगकर्मी एवं सामाजिक उत्थान सेवा सम्मान, युवा आम्बेडकरी नाट्य निर्देशक सम्मान, राष्ट्रीय युवा नाट्य सम्मान जैसे पुरस्कार-सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

 

(फारवर्ड प्रेस के सितम्बर, 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

रजनीश कुमार आम्बेडकर

रजनीश कुमार आम्बेडकर महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में शोधार्थी हैं

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