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बलीवंश बहुजनों की परंपरा : डा आ.ह.सालुंख

वामन के तीन पग हैं - वेद, यज्ञ और वाणी। बहुजनों को इन्हीं तीन का इस्तेमाल कर कुचल दिया गया। कपट से हमारे राजा को मारा गया। तो हमें इन तीनों को दूर हटाना होगा

महाराष्ट्र में एक व्यापक परिवर्तन लाने का श्रेय बहुजन परम्परा के विद्वान और सामाजिक चेतना के अगुआ डा आ.ह.सालुंखे को दिया जाता है, जिन्होंने बहुजनों को ब्राह्मणवादी परम्परा का एक मजबूत विकल्प दिया। मराठी में ‘बलीवंश’ उनकी बहुचर्चित पुस्तक है। प्रस्तुत है डॉ.
सालुंखे से गोवा के वरिष्ठ पत्रकार तथा मराठी समाचारपत्र ‘पुढारी’ के स्थानीय संपादक प्रभाकर ढगे की बातचीत।

दंतकथाओं का इस्तेमाल करके बहुजनों को बेवकूफ़ बनाने का काम यहाँ की व्यवस्था करती रही है। लेकिन आपने ‘बलीवंश’ के माध्यम से बहुजन देवताओं के ब्राह्मणीकरण व विकृतीकरण के प्रयास का पर्दाफाश किया है। इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य क्या था?

विरोधियों के भी बली राजा प्रशंसक थे। यह उनका समाथ्र्य था। पंडितों ने अनुसार, वे वेदों के शत्रु थे इसलिए उनको मारना आवश्यक था। जबकि रामायण में ही बली का गौरवगान किया गया है। वे प्रजा में धन का समान वितरण करते थे। श्रम के मुताबिक पारिश्रमिक देते थे। छल और कपट से बलीराजा को वामन ने मारा। बहुजनों की संस्कृति पर आक्रमण हुआ। ब्राह्मणों ने उनकी संस्कृति को पल्लवित नहीं होने दिया। इसका उदाहरण है केरल में ओणम जैसा त्योहार। महाराष्ट्र में भी वामन को बहुजनों पर लादा गया। ऐसा बताया गया कि वामन ने बलीराजा को पाताललोक भेज दिया। लेकिन अंतरमन से बहुजन, बलीराजा के साथ आज भी हैं ।

महाराष्ट्र में दिवाली के त्योहार में बहन अपने भाई की आरती उतारती है, तो कहती है ‘इडा पिडा टळो आणि बळीचं राज्य येवो।’ इसका मतलब आपको संकट से मुक्ति मिले और बली का राज आए। अर्थात बली और बहुजन परंपरा से इनका रिश्ता बेहद दृढ है।

वेद प्रामाण्य, चातुर्यवर्ण, यज्ञयाग, इन तीन वौदिक परंपराओं को बलीराजा ने स्वीकार नहीं किया था। यदि हमारी बहन बली का राज आए, ऐसा कहती है तो निश्चित रूप से हमारे पूर्वजों में बली एक महान पूर्वज रहा है। यहाँ दो बातें महत्त्वपूर्ण है – पहली, बली अवैदिकों का पूर्वज है। दूसरी बात कि पूर्वज यदि गुणी है, तो उसका केवल अभिमान करते रहना उचित नहीं है।

हमारे पूर्वज, जो सदगुणी, न्याय और समता प्रस्थापित करने वाले हैं, उनकी ह्त्या करने वाले की जय-जयकार करना अनुचित है। उन्हें तो वामन ने कपट से मारा है। तो हम कपट से मारने वाले वामन को स्वीकार क्यों करें? वामन के पास नैतिकता नहीं थी। हमारा दायित्व बनता है कि बली का सही इतिहास लोगों के सामने लायें। वामन ने बलीराजा से तीन पग जमीन मांगी थी। तो वह तीन पग जमीन क्या है? वामन के तीन पग हैं : वेद, यज्ञ और वाणी। बहुजनों को इन्हीं तीन का इस्तेमाल कर कुचल दिया गया। कपट से हमारे राजा को मारा गया। तो हमें इन तीनों को दूर हटाना होगा।

‘बलीवंश’ के माध्यम से आपने पुरानी कथाओं को किस दृष्टिकोण से देखा?

यज्ञ में आहुति देने के लिए पशु भी तैयार नहीं होते, लेकिन हमारे मानव कर्मकांड के लिए बलि होने के लिए तैयार हो जाते हैं। अपना सहीसही
इतिहास उन्हें समझाना आज की जरूरत है। इतिहास हमें हमारे वर्तमान और भविष्य का रास्ता दिखता है। यही इस किताब के लेखन का उद्देश्य है। हजारों बरस से हमें जानवरों जैसी मेहनत करके भी सुख नहीं मिला, जिन सुविधाओं की अहम जरूरत थी वह नहीं मिल पायीं,
यहाँ की व्यवस्था के कारण। यह आने वाली पीढी को समझाना जरूरी है। यदि उन्हें यह समझ में आया तो उनका आत्मविश्वास बढेगा। जीवन में बदलाव आयेगा। बरसों से गिरवी रखे उनके मस्तिष्क में से कूड़ा निकलेगा, बहुजनों का उद्धार होगा। इसके लिए बली के माध्यम से बहुजन का सांस्कृतिक इतिहास ‘बलीवंश’ के रूप में सामने आया।

महाराष्ट्र में पहले से ही बली महोत्सव मनाया जा रहा था। लेकिन आपकी किताब ‘बलीवंश आने के पश्चात महोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाना शुरू हुआ।

मैं श्रेय लेने का प्रयास नहीं करता। लेकिन संशोधक, अभ्यासकों को यह जरूर बताना चाहूंगा कि यदि आप दिल से काम करते हैं तो लोग बिल्कुल साथ देंगे। उसमें कुछ कठिनाइयाँ आ सकती हैं लेकिन प्रामाणिक रूप से यदि आप काम करते है तो निश्चित रूप से परिवर्तन होगा। यह मेरा विश्वास है। बलीवंश के माध्यम से जो परिणाम आये हैं, यह इसका ही उदाहरण है। युवाओं को असफलता को टक्कर देनी होगी। असफलता के कारण पीछे हटने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

(मूल मराठी से हिंदी अनुवाद : श्याम टरके, वर्धा)

 

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2014 अंक में प्रकाशित)


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