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मैगते चंग्नेइजैग से मेरी कॉम

एक ऐसी गरीब आदिवासी लड़की के दिल और दिमाग में झाँकने का बेहतरीन मौका, जिसने अनेक मुसीबतों का सामना करते हुए बॉक्सिंग में महारत हासिल की और विश्व चैम्पियन बनी

अगर आप अपने बच्चों को अनवरत धैर्य और अथक परिश्रम को जीवनमूल्य के रूप में सिखाना चाहते हैं तो उन्हें फिल्म ‘मेरी कॉम’ जरूर दिखाएं।

यह मणिपुर राज्य के एक गांव में निवास करने वाली लड़की ‘मेरी कॉम’ की कहानी है, जिसका परिवार तंगहाली में जीवन व्यतीत कर रहा है। वह आठ साल की लड़की बॉक्सिंग ग्लव्स को सीने से लगाये रहती है। चूंकि उसके पिता रेसलर रह चुके हैं इसलिए उसे एक एथलीट बनने के लिए क्लब भेजते हैं। लेकिन वह लडकी गुपचुप बॉक्सिंग सीखती है और राष्ट्रीय चैम्पियन बन जाती है। पिता को जब यह बात पता लगती है तो वे नाराज़ होते हैं। उनका मानना है कि अगर लडकी बॉक्सिंग करेगी तो चेहरे पर चोट लगेगी और शादी में अड़चन आयेगी। एक दिन पिता बेटी से कहते हैं, आज तुम्हें मुझे या बॉक्सिंग में से किसी एक को चुनना होगा।’ मेरी चुनती है – ‘बॉक्सिंग’।

मेरी कॉम (मैगते चंग्नेइजैग)

ऐसे मजबूत जज़्बे को लेकर सामने आती मेरी कॉम, भारतीय लड़कियों को बहुत कुछ सिखाती है। जहां एक आम लड़की अपने लक्ष्य की खातिर भले ही ससुराल में विरोध करने की हिम्मत जुटा लेती हो लेकिन माता-पिता का विरोधकरने की कल्पना भी नहीं कर सकती।

मेरी कॉम जब अपने कोच के पास जाकर मुक्केबाज़ी सिखाने के लिए कहती है तो वह उम्रदराज कोच उनसे प्रश्न पूछता है कि तुम मुक्केबाज़ी क्यों सीखना चाहती हो, इसके पाँच कारण बताओ, तब ही मैं तुम्हें सिखाऊंगा। जवाब में मेरी कॉम कहती है – ‘आई लव बॉक्सिंग, आई लव बॉक्सिंग, आई लव बॉक्सिंग, आई लव बॉक्सिंग; अब क्या और एक बार कहना होगा?’ कोच मेरी को कोचिंग देने के लिए तैयार हो जाता है। मेरी कॉम की जिंदगी इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि वे मणिपुर के एक जनजातीय परिवार से आती हैं – वह मणिपुर जो आधी सदी से भी ‘यादा समय से आतंकवाद और बदनामशुदा सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम से जूझ रहा है।

मेरी कॉम का पति ओन्लर कॉम दो जुड़वाँ बच्चे होने के बावजूद मेरी को फिर से बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए प्रेरित करते है और कदम-कदम पर उसकी मदद करते हैं। उसके कोच नहीं चाहते थे कि मेरी शादी करे क्योंकि उनका मानना था कि शादी के बंधन में बंधने के बाद लड़की घर के दायरे में सिमट कर रह जाती है। लेकिन दो बच्चों की माँ बनने के बाद फिर मेरी उस कोच के पास आती है तो कोच उसकी हिम्मत से बेहद प्रभावित होता है और कहता है कि – ‘एक औरत मां बनके और स्ट्रॉंग हो जाती है और अब तुम्हारी ताकत दो गुना बढ़ गयी।’

मेरी कॉम का असली नाम मैगते चंग्नेइजैग है, जिसका जन्म 1 मार्च 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर में हुआ था। मेरी कॉम को यह नाम उनके कोच ने दिया था। मेरी कॉम पांच बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की चैम्पियन रह चुकी हैं और लंदन ओलंपिक्स में कांस्य पदक विजेता हैं। वह आदिवासी ईसाई पृष्ठभूमि में पली बढी और एक ऐसे गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं जहां संस्कृति के नाम पर लड़कियों को खेल में भाग लेने की मनाही थी। मेरी कॉम की जिंदगी की कहानी बताती है कि वह मैगते चंग्नेइजैग से मेरी कॉम बनने के दौरान कई बार क्षेत्रवाद, जातिवाद तथा लैंगिक व धार्मिक पूर्वग्रह का शिकार हुई। चूँकि यह फिल्म मेरी कॉम की असल जिंदगी का नाट्य रुपांतरण है इसलिए जरूरी नहीं कि सारी घटनाएं और संवाद हूबहू हों, लेकिन यह फिल्म भारतीय खेल की ओछी राजनीति और एक औरत के संघर्ष की कहानी बयां करती है। हर व्यक्ति को यह फिल्म देखनी चाहिए, खासकर उन्हें जो किसी भी खेल में अपना भविष्य देखते हैं।

इससे कोई फर्क नही पडता कि प्रियंका चोपड़ा मेरी जैसी नही दिखती, लेकिन उसके हावभाव, बोली-भाषा मेरी काम का आभास कराते हैं। प्रियंका ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। फिल्म के सेट मणिपुर के गाँव का वास्तविक अहसास कराते हैं। सह-कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है। संवाद सधे हुए हैं। फिल्म, दर्शकों को मेरी काम और खेल की दुनिया के अंदर झांकने, समझने का एक बेहतरीन मौका मुहैय्या कराती है। संगीत उम्दा  है। निर्देशन उ’च कोटि का है जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखता है और देश प्रेम के जज़्बे से ओत प्रोत कर देता है।

फिल्म का नाम : मेरी कॉम, अवधि : 122 मिनट, निर्देशक : ओमंग कुमार, बैनर : वायाकाम 18 मोशन पिक्चर और संजय लीला भंसाली

 

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

संजीव खुदशाह

संजीव खुदशाह दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं। इनकी रचनाओं में "सफाई कामगार समुदाय", "आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग" एवं "दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल" चर्चित हैं

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