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ब्रह्मोस के बहुजन वैज्ञानिक

संजय कुमार उस टीम के सदस्य थे, जिसने मिसाइल के लिए ऑटोनोमस लांचर का निर्माण किया

बिहार के औरंगाबाद जिले के दाउदनगर निवासी, अतिपिछड़ी जाति तांती समाज में जन्मे, वैज्ञानिक संजय कुमार ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ), पुणे में कार्यरत संजय की टीम ने ‘मोबाइल ऑटोनोमस लांचर’ का निर्माण किया है, जिसे रुस और दक्षिण अफ्रिका में पेटेंट किया गया है।

संजय, ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना से प्रारंभ से ही जुडे रहे हैं। इसे प्रक्षेपित करने के लिए ‘मोबाइल ऑटोनोमस लांचर’ के निर्माण की परियोजना, रिसर्च एंड डेवलपमेंट स्टै बलिशमेंट, पुणे (आर एंड डीई) के निदेशक डा.एस गुरु प्रसाद के नेतृत्व में बनी थी, जिसका मैकेनिकल हेड संजय को बनाया गया था। अप्रैल, 2013 में यह परिचोजना पूरी हुई। ब्रह्मोस और लांचर दोनों को भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया है। लांचर को खरीदने में चिली और इंडोनेशिया ने रुचि दिखलाई मगर भारत सरकार की नीति है कि रक्षा उपकरण नहीं बेचे जायेंगे। इसके बाद अब संजय को मैकेनिकल डिजायनिंग की जिम्मेदारी दी गई है।

संजय 1998 से डीआरडीओ में कार्यरत हैं। तब कई नौकरियां करने का अवसर मिला मगर चुना वैज्ञानिक बनना ही। जब नौकरी मिली तो समाज के बड़े तबके ने सवाल किया कि ‘कितना देने पर नौकरी मिली?’। इससे वे परेशान रहे। फिर पूछा जाता रहा कि ‘ऊपरी आमदनी’ कितनी है। ये सवाल सरकारी व्यव्स्था और बहुजन की प्रतिभा पर संदेह करने की प्रवृति की अभिव्यक्ति हैं। मगर इससे संजय को कोई फर्क नहीं पड़ा। अपने कार्य में लगे रहे। पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम के सान्निध्य में काम करने का अवसर मिला।

संजय का कहना है कि ‘इस क्षेत्र में देश सेवा करने के बहुत अवसर लेकिन हमें अपना काम गोपनीय रूप से करना होता है। हमें अपने काम के प्रचार की इजाजत नहीं है।’ जाहिर है कि संजय की अब तक की वैज्ञानिक यात्रा के बारे में हम इससे अधिक नहीं जान सकते।

(फारवर्ड प्रेस के नवम्बर 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

उपेंद्र कश्‍यप

पत्रकार उपेंद्र कश्‍यप ने अपनी रिर्पोटों के माध्‍यम से बिहार के शाहाबाद क्षेत्र की अनेक सांस्‍कृतिक-सामाजिक विशिष्‍टताओं को उजागर किया है। जिउतिया के बहुजन कला-पक्ष को सर्वप्रथम सामने लाने का श्रेय भी इन्‍हें प्राप्‍त है

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