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कांशीराम की नजर में मीडिया

भाषणों के संकलन के अध्ययन के दौरान यह महसूस किया जा सकता है कि कांशी-राम अपने शुरू के दिनों में आंदोलन के तरीके विकसित करने, संसाधन जुटाने, लोगों को प्रेरित करने और बहुजन मीडिया की जरूरत को एक साथ, बार-बार क्यों उठाते हैं।

डा. भीमराव आम्बेडकर के बाद, कांशीराम के नेतृत्व में जब बहुजन आंदोलन उत्तर भारत में फैला तब उनके भी मुख्यधारा के मीडिया के बारे में वहीं अनुभव रहे जो डा. आम्बेडकर के थे। कांशीराम जब बहुजनों को संगठित करने के लिए देशभर में घूम रहे थे तब अपनी सभाओं में वे कहते थे कि देश का पूरा मीडिया ब्राहम्णों–बनियों के हाथों में है और इसलिए उसमें उनके जैसे लोगों व उनके आंदोलनों के लिए कोई जगह नहीं है ।

बामसेफ को बनाने और उसे फैलाने के दौरान उनके भाषणों का एक मुख्य विषय मीडिया ही होता था। बकौल कांशीराम, ‘वे हमेशा ब्लैकआउट और ब्लैकमेल की नीति अपनाते हैं। वे हमारा कोई भी समाचार नहीं छाप सकते। हमारा दूसरा राष्ट्रीय अधिवेशन पांच दिनों तक दिल्ली में चला और किसी भी समाचारपत्र में एक पंक्ति भी नहीं छपी।’ उनकी गतिविधियों की इक्की-दुक्की खबरें ‘मुख्यधारा के मीडिया’ में आना उन्हें हैरान करने वाली घटना लगती थी। ऐसी एक-दो घटनाओं की उन्होंने अपने भाषणों में चर्चा भी की ।

सन 2006 में 9 अक्टूबर को कांशीराम की मृत्यु के बाद उन्हें सच्चे दिल से चाहने वाले, डा. आम्बेडकर के संपूर्ण साहित्य की तरह, उनके बोले और लिखे को संकलित करने की कोशिश में लगे हैं। इसी कड़ी में ए.आर. अकेला ने कांशीराम के साक्षात्कार और ‘द आप्रेस्ड इण्डियन’ में प्रकाशित उनके संपादकीयों के संकलन के बाद, कांशीराम के ऐतिहासिक भाषणों का संकलन तैयार किया है, जिसे कई खण्डों में प्रकाशित करने की योजना है। कांशीराम के ये भाषण इस नाते महत्वपूर्ण हैं कि वे बहुजनों का एक विशाल संघटन बनाने की प्रक्रिया में दिए गए हैं। मीडिया के बारे में उनके अनुभव और योजना, दोनों ही उनके भाषणों में बार-बार आते हैं। हिन्दी साप्ताहिक ‘बहुजन संगठक’, बहुजन आंदोलन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तिथि -14 अप्रैल 1980- से निकलना शुरू हुआ और इसके संपादक खुद कांशीराम थे । उनके भाषणों के अंश ‘बहुजन संगठक’ में छपते रहते थे।

भाषणों का यह संकलन ‘बहुजन संगठक’ की जरूरत पर उनके वक्तव्य से शुरू होता है। 24 नवबंर 1980 को कांशी-राम, बहुजन समुदाय को दैनिक समाचारपत्रों के महत्व के बारे में इस प्रकार जानकारी देते है – ‘दैनिक समाचार-पत्र रोज छपते हैं और उनमें छपे अनेक समाचार हम पढ़ते हैं और उससे रोज ब रोज हमारे दृष्टिकोण में अंतर आता है। इस सत्य को भारत के शासक वर्ग अथवा जातियों ने ब्रिटिशकाल के प्रारम्भ में ही जान लिया था और बाद में चलकर उन्होंने दैनिक समाचार सेवा पर धीरे धीरे ऐसा नियंत्रण कर लिया कि वे इस क्षेत्र के सर्वेसर्वा बन गए। उनकी इसी नीति ने यहां की दलित जातियों के सामने बहुत सी कठिनाईयां खड़ी की।’ इस वक्तब्य में कांशी-राम आह्वान करते हैं – ‘जो लोग इस बात से दुखी है कि विशेषाधिकार सम्पन्न वर्ग दलितों तथा शोषितों के मनोमस्तिष्क को प्रभावित कर रहा है, उसे सही करने के लिए उन्हें कुछ कदम उठाने होंगे। दैनिक समाचार सेवा पर उनके नियंत्रण को खत्म करना होगा।’ इस प्रकाशन को शुरू करने से पहले वे इस तथ्य से वाकिफ थे कि बहुजन समाज के प्रकाशन एक-दो अंकों के बाद नहीं निकल पाते हैं। वे अपने भाषणों में भी कहते थे कि उनके समाज के लोगों ने एक हजार प्रकाशन शुरू किए लेकिन पहले अंक के बाद उनका जिंदा रहना संभव नहीं हो सका। लिहाजा, प्रकाशन के महत्व और उसे बरकरार रखने की चुनौती दोनों को वे लोगों के बीच अक्सर पेश करते थे।

भाषणों के संकलन के अध्ययन के दौरान यह महसूस किया जा सकता है कि कांशी-राम अपने शुरू के दिनों में आंदोलन के तरीके विकसित करने, संसाधन जुटाने, लोगों को प्रेरित करने और बहुजन मीडिया की जरूरत को एक साथ, बार-बार क्यों उठाते हैं। वे देश के विभिन्न हिस्सों में चलते-फिरते आम्बेडकर मेले के जरिये आम्बेडकर से अनजान वगज़् को उनसे परिचित कराते थे। इस तरह के मेले ही उनके लिए जनसंचार का माध्यम थे।

कांशीराम यह साफतौर पर समझते थे कि उनके समाज के लिए सबसे ज्यादा प्रभावशाली और प्रेरक किस प्रकार जनसंचार माध्यम हो सकते हैं। जिस समय वे बामसेफ के जरिये आंदोलन की जमीन तैयार कर रहे थे तब, बकौल कांशीराम, दलित समाज के तीस प्रतिशत लोग आम्बेडकर को जानते तक नहीं थे। बाबा साहेब से लोगों को परिचित करवाने का लक्ष्य समाज के उस हिस्से को राजनीतिक चेतना व सामाजिक परिवर्तन की सबसे सक्रिय ताकत के रूप में तब्दील करना था। वे बहुजन समाज के मनोबल को इस तरह के दावों से ताकतवर बनाते थे, जिनके बारे में वे शायद स्वयं भी जानते थे कि वे खोखले हैं। मसलन, 1991 में बाबा साहेब के सौवें जन्म दिन से देश के विभिन्न स्थानों से विभिन्न भाषाओं के पचपन दैनिक समाचारपत्र निकाले जाएंगे और सौ से अधिक पत्रिकाएं निकलने लगेंगी। गरीब ही इस देश का मालिक है, उसे अपनी दीवारों पर लिख लेना चाहिेए कि मैं ही इस देश का मालिक हूं।

बहुजन समाज पाटीज़् के गठन का एक लंबा दौर चला है। सरकारी दप्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों को उन्होंने पहले अपने मुख्य आधार के रूप में विकसित किया। बामसेफ का गठन तो वे कर्मचारियों व अधिकारियों के बीच कर रहे थे लेकिन उसके संदेशों से बहुजन समाज को ताकतवर बना रहे थे। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अपने भाषणों में दलित विरोधी अत्याचार पर बोलते बिल्कुल नहीं दिखते हैं। अत्याचार और उत्पीडऩ की घटनाओं को वे नहीं गिनाते हैं।

समाज के बीच संदेश भेजना एक बड़ी राजनीतिक कला होती है। किस तरह के संदेशों से समाज को प्रेरित और विपरीत विचारों के लोगों को पराजित किया जा सकता है, यह समझने के लिए असाधारण मेधा की आवश्यकता होती है। वे मुख्यधारा के मीडिया के का सहारा लिए बिना अपने श्रोताओं को खुद को ताकतवर समझने के लिए प्रेरित करते थे। वे अपने सधे सधाए वाक्यों में बताते थे कि अंग्रेजो के जाने के वक्त देश में प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों की संख्या महज एक दर्जन थी जो आज दो लाख से ज्यादा हो गई है। इस तरह वे यह बताते थे कि आंदोलन के लिए संसाधनों की कमी महसूस करना केवल अपने दिमाग की कमजोरी है। कुल बीस लाख शिक्षित कर्मचारी हो गए हैं। स्नातकों की संख्या पांच लाख हो गई हैं, वे कहते थे।

भाषण का यह संकलन इसीलिए तैयार हो सका क्योंकि कांशीराम के साथ आंदोलन में सक्रिय एके मौर्या व कुंदन लाल जैसे समर्पित कार्यकर्ताओं ने ‘बहुजन संगठक’ के अंकों को संभाल कर रखा। उसका लाभ ए.आर. अकेला को मिला जिन्हें कांशीराम के आंदोलन के शुरूआती दिनों का महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध हो गया। कांशीराम के इस संदेश ने बहुजन समाज के एक हिस्से को अपने साहित्य को संभाल कर रखने के लिए संभवत सबसे ज्यादा प्रेरित किया कि हमें दूसरों के प्रकाशनों पर आधारित नहीं रहना हैं। संकलन की भूमिका में दद्दू प्रसाद लिखते है कि ‘5 अप्रैल 1982 तक के बहुजन संगठक के अंको में कांशीराम के प्रकाशित भाषणों का बिना किसी व्याख्या के ज्यों का त्यों प्रकाशन, बहुजन आंदोलन के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस तरह के महत्वपूर्ण कार्य के लिए कोई धनवान सामने नहीं आया बल्कि कांशीराम को विचारधारा समझने वाले समर्पित कार्यकर्ता अनेक कठिनाईयों के बावजूद इस जिम्मेदारी को पूरा कर रहे हैं।’

पुस्तक: मा. कांशीराम साहब के ऐतिहासिक भाषण
संकलन /संपादन : ए आर अकेला, आनंद साहित्य सदन, सिद्धाथज़् मागज़्, छावनी, अलीगढ़-202001
मोबाईल : 9319294963

(फारवर्ड प्रेस के नवम्बर 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

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