h n

हर व्यक्ति को कोई भी धर्म न मानने का हक़

कुशवाहा ने कहा कि 'एक स्वतंत्र देश में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म या विचार को ना मानने की पूर्ण स्वतंत्रता है'. सम्राट अशोक क्लब के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. सच्चिदानंद मौर्य ने क्लब का ध्वज फहराया। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पंचशील का पाठ किया गया। मनोज कुमार, डा. अभय कुमार, पुर्णेंदु मौर्य, अवध बिहारी सिंह आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए

बक्सर (बिहार) : 10 अक्तूबर को सम्राट अशोक क्लब के तत्वाधान में कृष्णाब्रह्म स्थित कठार खुर्द में 8वां धम्म विजय दिवस (सम्राट अशोक द्वारा) समारोहपूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह ने किया। मुख्य अतिथि डा सुमन सौरभ ने पंचशील ध्वज फहराया। आरसीपी सिंह ने राष्ट्र की एकता एवं अखंडता में राष्ट्रीय प्रतीकों के महत्व पर विस्तृत चर्चा की। विशिष्ट अतिथि भगवान कुशवाहा ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिल्ली स्थित फारवर्ड प्रेस के कार्यालय पर पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही और ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम द्वारा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में आयोजित महिषासुर शहादत दिवस समारोह के दौरान विश्वविद्यालय के गेट पर पुलिस की तैनाती पर कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सांप्रदायिक शक्तियों का सीधा हमला है।

कुशवाहा ने कहा कि ‘एक स्वतंत्र देश में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म या विचार को ना मानने की पूर्ण स्वतंत्रता है’. सम्राट अशोक क्लब के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. सच्चिदानंद मौर्य ने क्लब का ध्वज फहराया। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पंचशील का पाठ किया गया। मनोज कुमार, डा. अभय कुमार, पुर्णेंदु मौर्य, अवध बिहारी सिंह आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए।

(फारवर्ड प्रेस के दिसम्बर 2014 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

क्या है ओबीसी साहित्य?
राजेंद्र प्रसाद सिंह बता रहे हैं कि हिंदी के अधिकांश रचनाकारों ने किसान-जीवन का वर्णन खानापूर्ति के रूप में किया है। हिंदी साहित्य में...
बहुजनों के लिए अवसर और वंचना के स्तर
संचार का सामाजिक ढांचा एक बड़े सांस्कृतिक प्रश्न से जुड़ा हुआ है। यह केवल बड़बोलेपन से विकसित नहीं हो सकता है। यह बेहद सूक्ष्मता...
पिछड़ा वर्ग आंदोलन और आरएल चंदापुरी
बिहार में पिछड़ों के आरक्षण के लिए वे 1952 से ही प्रयत्नशील थे। 1977 में उनके उग्र आंदोलन के कारण ही बिहार के तत्कालीन...
कुलीन धर्मनिरपेक्षता से सावधान
ज्ञानसत्ता हासिल किए बिना यदि राजसत्ता आती है तो उसके खतरनाक नतीजे आते हैं। एक दूसरा स्वांग धर्मनिरपेक्षता का है, जिससे दलित-पिछड़ों को सुरक्षित...
दलित और बहुजन साहित्य की मुक्ति चेतना
आधुनिक काल की मुक्ति चेतना नवजागरण से शुरू होती है। इनमें राजाराम मोहन राय, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, पेरियार, आम्बेडकर आदि नाम गिनाए जा सकते...