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वसुंधरा राजे का मंद पड़ता आभामंडल

इनकी आर्थिक-सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति बेहद गंभीर हैं, बल्कि अनुसूचित जाति और जनजाति से भी बदतर है। विधायिका में इनकी उपस्थिति लगभग शून्य है। आज समय की मांग है कि लोकसभा और विधानसभा में इन वंचित जातियों के समुचित प्रतिनिधित्व के लिए वैधानिक उपबंध किए जाएं

राजस्थान की वसुंधरा सरकार दिसंबर, 2014 में एक साल पूरा कर रही हैै। यह सरकार, मोदी लहर के कारण भारी बहुमत से चुन कर आई थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा के ‘मिशन 25’ (अर्थात सभी 25 सीटें पर विजय) की सफलता ने वसुंधरा राजे की शान में और इजाफा किया।

पिछले दिनों ‘सरकार आपके द्वार’ अभियान के तहत वसुंधरा राजे ने राज्य दौरा किया। गांवों में जाकर लोगो की समस्याएं सुनीं और उनका समाधान किया या समाधान का वायदा किया। जनवरी, 2015 में राज्य में होने वाले पंचायत चुनाव, राजे के लिए ताजपोशी के बाद परीक्षा की तरह हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब राज्य में चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में तीन सीटें कांग्रेस के पास चली गयीं।

विडंबना यह है कि मुख्यमंत्री के पास करीब 47 विभाग हैं। सत्ता का यह अभूतपूर्व केन्द्रीकरण सुशासन के लिए उचित नहीं है। जनता में सन्देश यह जा रहा है कि जाट बहू और राजपूत बेटी का पूरा ध्यान इन्ही दो जातियों की तरफ है। संघ की विचारधारा सरकार पर हावी है। स्कूलों में सरस्वती मंदिर खोलने की योजना है। शोधार्थियों को धार्मिक आस्थाओं की ओर प्रेरित किया जा रहा है। दलित और पिछड़ी जातियाँ हाशिये पर हैं। जनता को धर्म के अफीम से मदहोश करने का प्रयास जरूर किया जा रहा है। सरकार की चापलूस-पसंद छवि भी बन गयी है। नंदलाल मीणा जैसे वरिष्ठ नेता मुख्यमंत्री के पैर छू रहे है।

इन अनेक कारणों से सरकार की साख दाँव पर है। रोज नये-नये घोटाले सामने आ रहे हैं। सरकार आये दिन अपने ही निर्णयों को पलट रही है। उदाहरण के तौर पर, चुनाव घोषणापत्र में पद्रह लाख नौकरियां देने का वायदा किया गया था। अब कहा जा रहा है कि 2006 में राजे ने ही विद्यार्थी मित्र योजना शुरू की थी, जिसमें 26 हजार युवाओं को रोजगार मिला था और कांग्रेस की सरकार ने इन्हें यथावत रखा। इस बीच, कोर्ट ने इन नियुक्तियों को अवैध बताया तो सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया। लाभार्थियों से कहा जा रहा है कि उनकी नियुक्ति का कोई आधार नहीं है।

विधानसभा ने भूमि अधिग्रहण क़ानून पास किया, लेकिन इस सम्बन्ध में किसानों की राय नहीं जानी गयी। नया क़ानून कई मायनों में किसान विरोधी है। मेधा पाटकर के नेतृत्व में किसानों ने हाल में इसके खिलाफ विधानसभा के सामने प्रदर्शन भी किये।

सरकार बनने के शुरूआती महीनों में तमाम वादों और इरादों का जो आभामण्डल पैदा किया गया था, वह अब मंद पड़ रहा है। वसुंधरा राजे के लिए अब सिर्फ मोदी लहर पर तैरते रहना संभव नहीं होगा। पंचायत चुनावों में उन्हें अपना दमखम दिखाना होगा, जिसके आसार बहुत कम नजर आ रहे हैं।

(फारवर्ड प्रेस के  दिसम्बर 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

कालूलाल कुलमी

कालूलाल कुलमी फारवर्ड प्रेस के उदयपुर संवाददाता हैं।

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