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स्वच्छ दिल, स्वच्छ दिमाग, स्वच्छ भारत

'स्वच्छ भारत' के निर्माण के लिए हमें न केवल जागरूकता और प्रयास की जरूरत है वरन् हमें 'स्वच्छ दिल' और 'स्वच्छ दिमाग' की आवश्यकता भी है-ऐसे दिल और दिमाग की जो नीची जातियों और महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभाव न करे और जो सभी को एक निगाह से देखे

प्रिय दादू,

आकांक्षा को लिखे आपके पत्रों से ऐसा लगता है कि आपकी यह मान्यता है कि बाहरी दुनिया को बदलने से पहले हमें स्वयं को बदलना होगा। इस संदर्भ में हमारे प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत’ अभियान के संबंध में आपकी क्या राय है

सप्रेम,
सरल

प्रिय सरल,

तुम्हारा यह प्रश्न दिलचस्प है। मैं यह पत्र 5 जनवरी को लिख रहा हूं। कुछ ही दिन पहले, अनेक लोगों ने नए साल के आगमन पर कई संकल्प लिये होंगे। परंतु, जैसा कि तुम्हें अपने स्वयं के अनुभव से पता होगा, इस तरह के अधिकांश संकल्प कुछ ही दिनों में टूट जाते हैं। इसका कारण यह है कि हम मनुष्य स्वभाव से ही चंचल होते हैं। हमारे विचार परिवर्तनीय और भावनाएं, अस्थिर होती हैं। इसके अलावा, हमारे आसपास की दुनिया में हो रहे परिवर्तनों से भी हम प्रभावित होतेे हैं। इसलिए, कोई भी संकल्प लेना तो आसान होता है परंतु हम उसे पूरा तभी कर सकते हैं जब हम उसे पूरा करने के लिए उचित तकनीक अपनाएं।

एक तकनीक तो यह हो सकती है कि हम अपने संकल्प को कई छोटे-छोटे भागों में बांट लें, जिससे हम उसे टुकड़ों में पूरा कर सकें और हमें उसे पूरा करने के लिए पर्याप्त समय भी मिले।

उदाहरणार्थ, यदि तुम यह संकल्प लेते हो कि नए साल में तुम पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करोगे तो यह एक बहुत बड़ा लक्ष्य होगा और कुछ-कुछ अस्पष्ट भी। इस बड़े लक्ष्य को हम छोटे लक्ष्यों में विभाजित कर सकते हैं, जिससे अस्पष्टता कम होगी और हम अधिक प्रभावकारी ढंग से उन छोटे-छोटे लक्ष्यों को पूरा कर अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंच सकेगें। हमें अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक समयसीमा का निर्धारण भी करना चाहिए। जैसे, तुम चाहो तो यह तय कर सकते हो कि तुम इस महीने अपने पढऩे के स्थान को व्यवस्थित करोगे। और अगर तुम्हारे पढऩे की जगह बहुत ही अव्यवस्थित है तो तुम यह तय कर सकते हो कि तुम हर दिन, 20 मिनट इस काम को दोगे, जब तक कि तुम्हारे पढऩे का स्थान पूर्णत: सुव्यवस्थित नहीं हो जाता।

इस तरह की तकनीक के उपयोग का एक लाभ तो यह होता है कि तुम्हें हर दिन और हर सप्ताह यह पता होता है कि तुम अपने लक्ष्य के कितने नजदीक पहुंचे। तुम चाहो तो किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसका तुम सम्मान करते हो, यह जिम्मेदारी सौंप सकते हो कि वह तुम्हारी प्रगति पर नजर रखे। वह व्यक्ति ऐसा तभी कर सकता है जब वह हर दिन या हर सप्ताह तुम्हारे काम की गति को परखने की स्थिति में हो। इस अर्थ में, वह व्यक्ति एक तरह का नियंत्रक या पर्यवेक्षक होगा। एक दूसरा तरीका यह है कि वह व्यक्ति अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में तुम्हारी मदद करे। और वह अंतिम लक्ष्य क्या है? पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन। अगर कोई व्यक्ति तुम्हारी इस तरह से मदद करता है तो वह तुम्हारा कोच या गुरू होगा।

कोच या गुरू न केवल तुम्हारी प्रगति पर नजर रखता है वरन् वह तुम्हें यह समझने में भी मदद करता है कि तुम्हारी कौन सी सचेतन या अवचेतन भावनाएं या विश्वास, तुम्हारे लक्ष्य को प्राप्त करने में तुम्हारी मददगार सिद्ध हो रही हैं या उसमें बाधक बन रही हैं।

आओ, अब हम इस कसौटी पर हमारे प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत’ अभियान को कसें। प्रधानमंत्री यह कोशिश कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके इस अभियान से अवगत हों। और इसके लिए वे फिल्मी सितारों व अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों की मदद ले रहे हैं। यह एक अच्छा कदम है। वे एक निगरानी तंत्र स्थापित करने की कोशिश भी कर रहे हैं। उदाहरणार्थ, सरकारी अधिकारी समय-समय पर यह जांच करें कि सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल हो रहा है या नहीं। यह भी एक अच्छा कदम है। परंतु उन्होंने अभी तक अपने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान को, एक राष्ट्र के रूप में, हमारे सचेतन व अवचेतन विश्वासों और भावनाओं से नहीं जोड़ा है।

स्वच्छ दुनिया के लिए जरूरी है पवित्र मन

हम इस सिलसिले में दो मुद्दों पर बात करेंगे। पहला यह कि हम भारतीय अपने घरों को तो साफ-सुथरा रखना चाहते हैं और रखते भी हैं परंतु हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी का साम्राज्य है। इसलिए, ”भारत हमारा घर है, आईए हम सब मिलकर इसे स्वच्छ रखें” जैसे नारों से इस अभियान को गति मिल सकती है। परंतु ये नारे सिर्फ हमारे देश तक सीमित नहीं रहने चाहिए। हमें पूरे विश्व की बात करनी होगी क्योंकि हम यह नहीं चाहते कि हम अपना कचरा दूसरे देशों में फेंक दें। ठीक उसी तरह, जिस तरह हम यह नहीं चाहेंगे कि दूसरे देश अपना कचरा हमारे देश में पटकें। इसलिए हमें इस तरह के नारे देने होंगे, ”यह देश, यह धरती, हमारी है, आईए हम सब मिलकर इन्हें स्वच्छ रखें”।

इससे जुड़ा हुआ एक दूसरा मुद्दा यह है कि हम अपने घर को भी ‘स्वच्छ’ रखने के लिए मुख्यत: महिलाओं और नीची जातियों के लोगों पर निर्भर रहते हैं। हम अपने घर में कोई भी चीज इधर-उधर फेंक देते हैं और हमारी अपेक्षा यह रहती है कि हमारी मां, बहनें या घर पर काम करने वाले लोग या नगरपालिका अथवा सरकार उसे साफ करे।

जब तक ये मान्यताएं और दृष्टिकोण परिवर्तित नहीं होंगे, तब तक हम ‘स्वच्छ भारत’ का निर्माण नहीं कर सकते। दूसरे शब्दों में, हमारे देश की ‘अस्वच्छता’ की जड़ें नीची जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव की हमारी संस्कृति में हैं।

‘स्वच्छ भारत’ के निर्माण के लिए हमें न केवल जागरूकता और प्रयास की जरूरत है वरन् हमें ‘स्वच्छ दिल’ और ‘स्वच्छ दिमाग’ की आवश्यकता भी है-ऐसे दिल और दिमाग की जो नीची जातियों और महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभाव न करे और जो सभी को एक निगाह से देखे।

इसकी जगह, हमारे प्रधानमंत्री जातिगत चेतना को बढ़ावा दे रहे हैं जबकि वह हमारे देश की अस्वच्छता का मूल कारण है! वे बाह्य स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए आंतरिक स्वच्छता को कम कर रहे हैं!

हमें मनुवाद से प्रेरित जातिगत चेतना और महिलाओं के साथ भेदभाव की ‘अंदरूनी अस्वच्छता’ को खारिज करना होगा। हमें अपने दिमाग और दिल को स्वच्छ करना होगा, तभी हम स्वच्छ भारत बना सकेंगे।

जिन लोगों ने हमारे देश के संविधान का निर्माण किया था वे इस समस्या से वाकिफ थे। इसलिए हमारे संविधान में जातिगत व लैंगिक भेदभाव का निषेध किया गया है। इस अर्थ में हमारा संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जो हमारी मनुवादी संस्कृति को पूरी तरह से बदलने के प्रति हमें प्रतिबद्ध करता है।

दुर्भाग्यवश, जो पार्टी हमारे देश पर वर्तमान में शासन कर रही है वह इस संविधान, इस नींव को उखाड़ फेंकना चाहती है।

बहरहाल, वे हमारे देश के लिए जो करेंगे या नहीं करेंगे, उसके लिए वे जिम्मेदार होंगे। हम-आपको को तो यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हमारे संविधान के निर्माताओं की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए और कड़ी मेहनत करेंगे व जातिगत और लैंगिक भेदभाव के विरूद्ध संघर्ष जारी रखेंगे। यही संघर्ष हमें स्वच्छ दिल, स्वच्छ दिमाग और स्वच्छ कर्मों के रास्ते स्वच्छ भारत के निर्माण में मदद करेगा।
सप्रेम
दादू

(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2015 अंक में प्रकाशित )


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लेखक के बारे में

दादू

''दादू'' एक भारतीय चाचा हैं, जिन्‍होंने भारत और विदेश में शैक्षणिक, व्‍यावसायिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में निवास और कार्य किया है। वे विस्‍तृत सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक मुद्दों पर आपके प्रश्‍नों का स्‍वागत करते हैं

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