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तमिलनाडू में दो लेखकों का सामाजिक बहिष्कार

उपन्यासकार पेरूमल नुरूगन, तमिलनाडु के समाज के गुस्से का सामना कर ही रहे थे कि मा. मू. कन्नन के दूसरे उपन्यास 'कन्ना इनाविन कन्ननी' के प्रकाशन के बाद, राज्य के पुदुकोटै जिले के कोठामंगलम में एक हिंसक भीड़ ने भारी हंगामा किया

5नई दिल्ली। उपन्यासकार पेरूमल नुरूगन, तमिलनाडु के समाज के गुस्से का सामना कर ही रहे थे कि मा. मू. कन्नन के दूसरे उपन्यास ‘कन्ना इनाविन कन्ननी’ के प्रकाशन के बाद, राज्य के पुदुकोटै जिले के कोठामंगलम में एक हिंसक भीड़ ने भारी हंगामा किया। लेखक के घर में आग लगा दी गई और उनके स्टूडियो को नुकसान पहुंचाया गया। लेखक के अपने जीवन के अनुभवों पर आधारित यह पुस्तक, समाज के पतन व सैक्स संबंधी विकृतियों की चर्चा करती है। ”मैंने तो जो देखा और अनुभव किया है, उसका सिर्फ पांच प्रतिशत लिखा है। शायद गांव वालों को यह डर था कि मैं भविष्य में अन्य चीजों के बारे में भी लिखूंगा”, कन्नन ने कहा। उन्हें उनका मकान फिर से बनाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। इसी जिले में एक और लेखक के साथ भी ऐसा ही व्यवहार हुआ। लेखक दुरई गुना के परिवार को कोलांथिरनपट्टू गांव को छोड़कर भागना पड़ा क्योंकि गांव के उच्च जातियों के हिंदुओं को उनकी 40 पृष्ठ की उपन्यासिका ”ओरार वरेयन्था ओवियम” पसंद नहीं आई। यह उपन्यासिका उन मुसीबतों का वर्णन करती है, जिनसे एक दलित दंपत्ति को गुजरना पड़ा, क्योंकि उनके लड़के और उसके दोस्तों ने उच्च जाति के हिंदुओं के मंदिर के पुजारी की पिटाई कर दी थी।

(फारवर्ड प्रेस के मार्च, 2015 अंक में प्रकाशित )


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एफपी डेस्‍क

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