भारतीय इतिहास के आधुनिक चिंतकों यथा रोमिला थापर और डी डी कौशंबी आदि को छोड़ दें तो इतिहास लेखन का एक ही सच रहा है: इतिहास से बहुजनों को दूर रखना और साजिश के तहत सामंती व ब्राह्म्णवादी ताकतों को महामंडित करना। बिहार में हाल में जो हुआ, वह इसी सच को फिर से दुहराने की कोशिश थी।
गत एक जून, 2015 को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल सभागार में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के लिए बड़े–बड़े बैनर और होर्डिंग राजधानी पटना के सभी चौक–चौराहों पर लगाये गये थे। इन बैनरों और होर्डिंगों पर लिखा था – “अमर शहीद ब्रह्मेश्वर मुखिया का तृतीय शहादत दिवस“। जिस शख्स को अमर शहीद बताया गया, वह कोई और नहीं वही ब्रह्मेश्वर मुखिया था जिसने 1995 से लेकर 2002 के बीच 300 नरसंहारों में भूमिका निभायी। इन नरंसहारों में 300 से अधिक दलितों और पिछड़ों की निर्मम हत्या, सामंती ताकतों द्वारा की गयी थी।
कार्यक्रम में कांग्रेस और भाजपा के कई नेता भी शामिल हुए। खास बात यह रही कि अन्य कार्यक्रमों में जहां एक नेता लोगों को भाषण सुनाते हैं, वहीं इस कार्यक्रम में लोगों ने नेताओं को खूब सुनाया। कार्यक्रम में भाग लेने वालों में डा. सीपी ठाकुर भी शामिल थे, जिन्हें राज्य में भूमिहार समाज के एक नेता के रुप में मान्यता मिल चुकी है। इनके अलावा, कांग्रेस के नेता व पूर्व सांसद अखिलेश सिंह और पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक उषा विद्यार्थी भी मौजूद थीं। कार्यक्रम के दौरान कई वक्ताओं ने मुखिया को महान राष्ट्रवादी, देशभक्त व किसानों का मसीहा तक की संज्ञा दी और कईयों ने तो उसकी प्रतिमा राजधानी पटना में लगाने की मांग भी कर दी। इसके अलावा वक्ताओं ने अपने ही समाज के नेताओं को इस बात के लिये उनके सामने कोसा कि उनके रहते, उनके आराध्य की हत्या करने वालों को अब तक सजा नहीं दी गयी है। इस संबंध में डा. सीपी ठाकुर का कहना था कि वे मुखिया जी की शहादत का मामला संसद में उठायेंगे।
ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या 1 जून 2012 को आरा के कातिरा मोहल्ले में कुछ अज्ञात अपराधियों ने गोली मारकर कर दी थी। राज्य सरकार ने सवर्णों के आगे घुटने टेकते हुए इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी जबकि राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी ने इस हत्या की कलई लगभग खोल दी थी। तब यह बात सामने आयी थी कि महज पचास हजार की रंगदारी के एक मामले में हस्तक्षेप करने पर मुखिया की हत्या की गयी थी, जिसे बिहार के कुछ अखबार एक अमर शहीद की शहादत कह रहे हैं।
कार्यक्रम का इस्तेमाल भूमिहार समाज की एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए भी किया गया। सर्वसम्मति से घोषणा की गयी कि यदि भाजपा डा. सीपी ठाकुर को बिहार के मुख्यमंत्री के पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित करेगी तभी भूमिहार उसे वोट देंगें। वक्ताओं ने नीतीश सरकार पर किसानों की उपेक्षा करने एवं धान खरीदी का भुगतान नहीं किये जाने के कारण किसानों के द्वारा आत्महत्या किये जाने का आरोप भी लगाया।
फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित