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किशोरों के पिता ने सीखा उन्हें स्वतंत्र छोडऩा

हम लोग अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति हमेशा चिंतित रहने वाले अधिकांश अभिभावकों में से एक थे। ऐसे में उन्हें स्वतंत्र छोडऩा एक कठिन निर्णय था। और अधिकांश किशोरों की तरह, वे हमेशा स्वतंत्र होना चाहते थे

एनी और मैं दो बच्चों के अभिवावक हैं – हमारा बेटा अश्विन कुछ समय पूर्व किशोर से युवा हुआ है और हमारी बेटी निथ्या अभी किशोरावस्था में ही है। किशोरों के पालन-पोषण पर लेख लिखना हमें एक कठिन काम लग रहा था। फिर, हमने सोचा कि क्यों न हम अपने बच्चों से ही पूछें कि अभिवावक बतौर हमने क्या ठीक किया और क्या हम बेहतर कर सकते थे। हमें विश्वास है कि इससे हमारा यह लेख अधिक वस्तुनिष्ठ बन सका है।

4अभिवावक बतौर हमारी मुख्य चिंताओं में से एक रहती है वे बोर्ड परीक्षाएं, जो बच्चों को हाईस्कूल व प्री-यूनिवर्सिटी स्तर पर देनी पड़ती हैं। इन परीक्षाओं से ही यह तय होता है कि विद्यार्थी किस व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेगें और भविष्य में क्या करेंगे। अच्छे कालेजों में प्रवेश के लिए जो गलाकाट प्रतिस्पर्धा है, उसके चलते हमारे बच्चों के कई साथियों ने कोचिंग और ट्यूशन क्लासों में दाखिला लिया। स्कूल के बाद वे वहां पढ़ाई करने जाने लगे। जाहिर है कि हम पर भी यह दबाव था कि हम अपने बच्चों को कोचिंग क्लास में भर्ती करवाएं। अश्विन ने तय किया कि वो नोट्स की मदद से खुद ही पढ़ाई करेगा और बचे हुए समय में बास्केटबाल की कोचिंग लेगा। निथ्या ने एक विषय में कोचिंग करने का निर्णय लिया। हमने यह तय किया कि हम पढ़ाई में उनकी मदद करने के लिए उपलब्ध रहेंगे। हमारी शैक्षणिक पृष्ठभूमि व काम के लचीले घंटों के कारण हमें यह भरोसा था कि हम ऐसा कर पायेगें। इससे एक लाभ तो यह हुआ कि हमें नियमित रूप से यह पता चलता रहा कि हमारे बच्चों की पढ़ाई कैसी चल रही है। दूसरी ओर, इससे नुकसान यह हुआ कि हमें यह मालूम रहता था कि किस विषय में वे कमजोर हैं और कभी-कभी हम इस बारे में कुछ ज्यादा ही चिंतित हो जाते थे। हम बार-बार उनसे कहते कि वे उस विषय में और मेहनत करें। जाहिर है कि इससे उनके आत्मसम्मान में वृद्धि नहीं होती थी। कई बार हमें पीछे हट जाना पड़ता था ताकि उन्हें पर्याप्त स्वतंत्रता मिल सके।

अधिकांश किशोरों की तरह, अश्विन और निथ्या भी पढ़ाई में अच्छे से अच्छा प्रदर्शन करना चाहते थे और हमें केवल उनकी मदद करनी थी। अगर बच्चे में मेहनत करने की इच्छा नहीं होगी तो अभिभावकों की महत्वकांक्षाओं का बोझ वह कभी नहीं ढो सकेगा। अश्विन और निथ्या दोनों यह तय कर चुके थे कि वे आगे की पढ़ाई किस विषय में करेंगे। अश्विन वास्तुकला में स्नातक डिग्री हासिल करना चाहता था और निथ्या विज्ञान में। चूंकि हम दोनों कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम करते हैं इसलिए हमारे बच्चे जिन पाठ्यक्रमों में दाखिला लेना चाहते थे, उनकी रोजगार की दृष्टि से उपादेयता के बारे में हमें संदेह था। वे अपने निर्णय को कसौटी पर कस सकें इसलिए हमने उनसे कहा कि वे ऐसे लोगों से मिलें, जो उनके चुने गए क्षेत्र में कार्यरत हैं। हम निथ्या को एक करियर कांउसलर के पास भी ले गए। जल्द ही यह साफ हो गया कि दोनों बच्चों ने जो करियर चुना था, वो उनकी योग्यता व क्षमता के हिसाब से सर्वथा उपयुक्त था। इससे हमारे मन के संदेह दूर हो गए और हमने उन्हें खुलकर प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया। हमारे संबल ने उन्हें मेहनत करने की प्रेरणा दी और वे जो करना चाहते थे, वह करने की स्वतंत्रता भी। चूंकि अश्विन ने अपना करियर बहुत पहले से ही चुन लिया था इसलिए उसे आसानी से देश के सबसे अच्छे वास्तुकला संस्थानों में से एक में प्रवेश मिल गया। निथ्या को अभी हाईस्कूल पास करने में दो साल हैं।

माता-पिता की चिंताएं

जिंदगी में हमें कई चीजें सीखनी पड़ती हैं। वाहन चलाना भी इनमें से एक है। इन चीजों को बच्चों को कैसे सिखाया जाए और उनके सीखने की प्रक्रिया में हमें जो तनाव होता है, उसका हम कैसे मुकाबला करें इस बारे में मैंने उस दौरान बहुत कुछ जाना जब अश्विन गाड़ी चलाना सीख रहा था। उसने एक ड्रायविंग स्कूल से वाहन चलाना तो सीख लिया परंतु उसे गाड़ी से अकेले कालेज जाने दिया जाए या नहीं, यह तय करना हमारे लिए बहुत मुश्किल था। समस्या यह थी कि उसे बैंगलोर की भीड़-भरी सड़कों पर सबसे घने ट्राफिक वाले समय में लंबी दूरी तय करनी थी। मैंने तय किया कि मैं उसे कुछ अतिरिक्त चीजें सिखाउंगा। मैं उसकी बगल में बैठकर उससे उन्हीं परिस्थितियों में गाड़ी चलवाउंगा, जिनका सामना उसे करना पड़ेगा। परंतु अश्विन के लिए सड़क के हालात और अपने पिता के निर्देशों से एक साथ निपटना मुश्किल हो गया। ड्रायविंग में हमें अक्सर अपने कौशल और बुद्धि का इस्तेमाल कर विभिन्न परिस्थितियों और सड़क के हालात से निपटना पड़ता है। इसलिए उसके हित में मैंने उसे अकेला छोड़ दिया। मैंने पाया कि वह जल्दी ही एक अच्छा वाहन चालक बन गया और उसके आत्मविश्वास में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। कई चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें सिर्फ सिखाना काफी नहीं होता। व्यक्ति में आत्मविश्वास तभी आता है जब वह असल जिंदगी में वह काम करता है।

हम लोग अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति हमेशा चिंतित रहने वाले अधिकांश अभिभावकों में से एक थे। ऐसे में उन्हें स्वतंत्र छोडऩा एक कठिन निर्णय था। और अधिकांश किशोरों की तरह, वे हमेशा स्वतंत्र होना चाहते थे। चाहे मित्रों के साथ उनके बाजार जाने की बात हो या फिल्म या कहीं और, हमें अपनी चिंताओं को अपने तक सीमित रखना पड़ता था। हमें अपने बच्चों के चरित्र और उनके मूल्यों पर भरोसा करना होता था। हमने कई सालों तक उन्हें मूल्यों, आस्थाओं और चरित्र संबंधी शिक्षा दी है। हमारे बच्चों ने इन सभी शिक्षाओं को ग्रहण किया है। उन्हें समझाने के अलावा हमने अपने व्यवहार से भी उन्हें कई सीखें दीं। दोनों का कहना है कि उनकी पढ़ाई व अन्य गतिविधियों में हमने जो रूचि ली, वे उससे अभिभूत हैं। एक तरह से यह एक अच्छा निवेश था। हमें उनकी क्षमताओं और उनकी कमजोरियों की जानकारी थी। और इसलिए जब हमने उन्हें स्वतंत्र छोड़ा तो हमें यह विश्वास था कि वे सही राह चुनेंगे या कम से कम चुनने की कोशिश करेंगे। हमें यह भी विश्वास था कि वे ईमानदार रहेंगे, चाहे फिर उससे उनका नुकसान ही क्यों न हो। इस लेख को लिखने की तैयारी के दौरान हमारे एक प्रश्न का उत्तर देते हुए दोनों ने कहा कि जब वे कोई गलती कर बैठते हैं तो उन्हें शर्म, दु:ख और निराशा के भावों से गुजरना पड़ता है। परंतु उन्हें अपनी आपबीती हमें बताने में जरा भी डर नहीं लगता।

यह महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि हम अपने हर बच्चे से अलग संवाद स्थापित करें और उसे बनाए रखें। इसके लिए रोजमर्रा की जिंदगी में मौके मिल सकते हैं जैसे उन्हें स्कूल छोडऩे जाते वक्त महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है। हमने उनसे जिन विषयों पर बात की है उनमें शामिल हैं अभिभावक बतौर हमारे निर्णय, उनके व्यवहार के वे पक्ष, जो हमें ठीक नहीं लगते, उनकी महत्वाकांक्षाएं, हमारा अतीत और हमारी सफलताओं और असफलताओं से हमने जो सीखा। और ये चर्चा अक्सर किसी ताजी घटना के संदर्भ में होती थी। हमारी कोशिश यही रहती थी कि वे भी चर्चा में भाग लें। कई बार ऐसा भी होता था कि वे हमारी बातों पर ध्यान नहीं देते थे या कबजब हमसे कहते थे कि हम उन्हें प्रवचन न दें।

किशोर बच्चों के अभिभावक बतौर हमारे अनुभव को क्या मैं कुछ शब्दों समेट सकता हूं? इस अनुभव को संक्षेप में व्यक्त करना मुश्किल है और मैं ऐसा प्रयास भी नहीं करूंगा। हमारे लिए जो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं वे हैं विश्वास, संवाद, खुलापन, बदलाव की इच्छा और स्वतंत्र छोड़ देने की क्षमता। जो वक्त हमारे पास है, उसका आनंद हमें उठाना चाहिए।

यह लेख ”फैमिली मंत्र”  से अनुमति प्राप्त कर प्रकाशित किया जा रहा है। यह पत्रिका शहरी परिवारों की समस्याओं पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य परिवारों को मजबूती देना और उन्हें पुन: एक करना है।

फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित

 

लेखक के बारे में

अब्राहम थॉमस

अब्राहम थॉमस और उनकी पत्नी ऐनी फ्रीलांस साफ्टवेयर कंसलटेंट हैं। वे बैंगलोर में रहते हैं

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