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कबाड़ का जादूगर

चंडीगढ़ के रॉक गार्डन के निर्माता नेकचंद सैनी अपने समय के सबसे मौलिक कलाकार थे

5 copyवह 1958 का साल था। एक नया शहर आकार ले रहा था। लोक निर्माण विभाग के एक रोड इंस्पेक्टर को केपीटोल कॉम्पलेक्स के पास स्थित स्टोर और कबाडख़ाने की देखभाल की जिम्मेदारी दी गई थी। केपीटोल काम्पलेक्स में सचिवालय, विधानसभा भवन और उच्च न्यायालय शामिल थे। जैसे-जैसे नया शहर बनता जा रहा था, पुराने शहर के अवशेष इस कबाडखाने में लाकर पटके जा रहे थे। अधिकांश समय यह रोड इंस्पेक्टर कबाड़ से भरे उस विशाल प्रांगण के एक कोने में बने कच्चे झोपड़े में घुसा रहता था, जहां वह पत्थरों, टाईलों, कांच और चीनी मिट्टी के बर्तनों, वॉश बेसिनों और कमोडों के टूटे-फूटे टुकड़ों को खंगालता रहता था। फिर, 1965 के आसपास, वह रातों में गुम रहने लगा। दस साल बाद, एक सरकारी अधिकारी को पता चला कि वह रातों में क्या किया करता था। वृक्षों से आच्छादित एक क्षेत्र, जिसे शहर का ग्रीन बेल्ट बनाया जाना था, में वह अपना खुद का एक शहर बसा रहा था। उसमें एकदम जिंदा लगने वाली मूर्तियां थीं-मनुष्यों की, जानवरों की, पक्षियों की और काल्पनिक जानवरों की-और ये मूर्तियां एक-दो नहीं बल्कि सैंकड़ों की संख्या में थीं। उसने इतने सालों में जो कुछ जमा किया था, उस सब का इस्तेमाल कर लिया था। इसके अलावा, वह पास बहने वाली एक छोटी सी नदी से चट्टाने भी लाया था लेकिन केवल उतनी बड़ी जितनी कि वह अपनी साईकिल पर ढो सकता था।

हम जिस शहर की बात कर रहे हैं वह है चंडीगढ़-भारत का पहला ऐसा शहर जिसका नक्शा पहले बना और वह जमीन पर बाद में उतरा।

प्रसिद्ध स्विस-फ्रांसीसी वास्तुकार ली कोर्बुजिए ने शहर का जो मास्टर प्लान बनाया था, उसमें नेकचंद सैनी का रॉक गार्डन शामिल नहीं था। वह गैर-कानूनी था। परंतु स्थानीय लोग, जो सपनों की इस दुनिया को देखने जुटने लगे थे, ने अंधे कानून को खलनायक की भूमिका अदा नहीं करने दी। जनता की मांग के आगे झुकते हुए, चंडीगढ़ लेण्डस्केप एडवाइजरी कमेटी ने 1976 में रॉक गार्डन को शहर के दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल कर लिया।

नेकचंद सैनी का जन्म 15 दिसंबर 1924 को शंकरगढ़ नामक कस्बे में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। वे एक पिछड़ी जाति में जन्मे थे और उनका परिवार सब्जियां उगाकर अपना जीवनयापन करता था। देश के विभाजन के बाद वे भारतीय पंजाब के एक छोटे शहर में रहने लगे। सन् 1991 में उन्हें राज्य सरकार में रोड इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गई और जल्दी ही उनका तबादला चंडीगढ़ हो गया।

सरकार ने चंडीगढ़ के नक्शे में इस गार्डन को जगह देने के बाद, नेकचंद को उनके अन्य सभी कर्तव्यों से मुक्ति दे दी और उनसे कहा गया कि वे केवल रॉक गार्डन को बड़ा और बेहतर बनाने पर ध्यान दें। इस गार्डन का निर्माण तीन चरणों में हुआ। पहले चरण में वह काम पूरा हुआ, जो सैनी ने दुनिया की नजरों से बचकर किया था। दूसरे चरण का काम 1983 में समाप्त हुआ, जिसमें इस गार्डन में एक झरना, एक चैक, एक छोटा सा थियेटर, बगीचा, पथ व प्रांगण बनाये गए। इसके अलावा, वहां लगभग 5,000 छोटी-बड़ी कलाकृतियां रखी गईं जो कंक्रीट पर मिट्टी का लेप चढ़ाकर बनाई गईं थीं। तीसरे चरण में वहां कई बड़े निर्माण हुए, जिनमें मेहराबों की एक श्रृंखला शामिल थी। इन मेहराबों से झूले लटकाए गए। इसके अलावा, मूर्तियों के प्रदर्शन के लिए एक मंडप, एक मछलीघर और खुले आसमान के नीचे एक थियेटर भी बनाया गया। सैनी ने 1993 और 1995 के बीच केरल के पलक्कड़ जिले में डेढ़ एकड़ का एक छोटा रॉक गार्डन भी बनाया।
रॉक गार्डन, ‘आउटसाइडर आर्ट’ (बाहरी कला) का एक नमूना है। ‘रॉ विजन’ नामक आउटसाइडर आर्ट पर केंद्रित एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के अनुसार, आउटसाइडर आर्ट के कलाकार ”अप्रशिक्षित, अशिक्षित और कला की दुनिया के बारे में कुछ न समझने वाले होते हैं…वे अपनी नई आकृतियों और नई तकनीकों का अविष्कार करते हैं और अपनी निजी दुनिया बनाते हैं’। सैनी भी रॉक गार्डन को अपना ‘साम्राज्य’ कहा करते थे। सैनी की मृत्यु के बाद, रॉ विजन ने अपनी संक्षिप्त श्रद्धांजलि में लिखा ”वे दुनिया के सबसे अग्रणी स्व-शिक्षित कलाकार थे और 2000 मूर्तियों, झरनों और रंगमंचों वाले 25 एकड़ में फैले नायाब रॉक गार्डन का निर्माण, उनकी असाधारण उपलब्धि थी। उनके जैसा व्यक्ति हम शायद फिर कभी नहीं देखेंगे…”।

सन् 1983 में डाक विभाग ने रॉक गार्डन की कलाकृतियों पर एक डाक टिकट जारी किया। इसके एक साल बाद नेकचंद को पद्मश्री से नवाजा गया। उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनियां यूरोप और अमरीका में हुईं और उन्हें फ्रांस सरकार ने भी सम्मानित। परंतु जहां एक ओर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और सम्मान मिला, वहीं उनके द्वारा रचित रॉक गार्डन, जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलवाई थी, का भविष्य अनिश्चित बना हुआ था। स्थानीय बॉर एसोसिएशन ने रॉक गार्डन के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया जो 1989 तक चलता रहा। सन् 1996 में, जब सैनी विदेश में थे, तब उन्हें पता चला कि कुछ अज्ञात लोगों ने रॉक गार्डन में तोडफ़ोड़ की, जिसमें उनकी सैंकड़ों कलाकृतियों को नुकसान पहुंचा।

12 जून को आधी रात के कुछ वक्त बाद जब उनकी मृत्यु हुई तब नेकचंद को यह संतोष रहा होगा कि उनकी कृति, रॉक गार्डन सोसायटी के सुरक्षित हाथों में है और लगभग 5,000 लोग हर दिन रॉक गार्डन को देखने आते हैं। उनकी मृत्यु की सूचना मिलने के अगले दिन चंडीगढ़ के सरकारी कार्यालय उनके सम्मान में बंद रहे, कई गणमान्य व्यक्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनका अंतिम संस्कार, पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया गया। इंग्लैंड के चिचैस्टर की पैलेंट हाउस गैलेरी में उनकी 50 कलाकृतियों की पूर्वनिर्धारित प्रदर्शनी, उनकी मृत्यु के एक दिन बाद शुरू हुई और 25 अक्टूबर तक चलेगी।

फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित

लेखक के बारे में

अनिल अल्पाह

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