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बहुजन संगठनों ने जलाए रखी है अलख

जेएनयू में ओबीसी छात्रों के संगठन ऑल इण्डिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम (एआईबीएसएफ) ने अच्छी शुरुआत की थी लेकिन वैचारिकता के अभाव तथा घनघोर राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा के चलते यह संगठन आतंरिक जातिवाद का शिकार होकर खत्‍म हो गया

देश के प्राय: सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों में बहुजन छात्रों का कोई न कोई संगठन  है। हालांकि इनका स्वररूप गैर-राजनैतिक ज्यादा है। जेएनयू में यूनाईटेड दलित स्टूडेंट्स फोरम (यूडीएसएफ) १९९१ से अपनी असरकारी भूमिका में सक्रिय है। कई महत्वपूर्ण मौकों पर इसने एससी-एसटी और ओबीसी छात्रों की आवाज़ को बुलंद किया और कई सफलताएँ हासिल कीं| सन १९९९-२००० में तत्कालीन भाजपाई मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने एमफिल और पीएचडी में आरक्षण ख़त्म कर दिया था| इसे लेकर यूडीएसएफ ने एक लंबा आंदोलन चलाया और सरकार को अपना यह  कदम पीछे खींचना पड़ा।

CSSB_copyपंजाब विश्वविद्यालय में अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए), विश्वविद्यालय की चहारदीवारी से बाहर निकलकर दलित समाज को जागरूक करने के प्रयासों में जुटा हुआ है।  हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों में सक्रिय डॉ. आम्बेडकर स्टूडेंट्स फ्रंट ऑफ़ इण्डिया (डीएएसएफआई) के प्रयास भी सराहनीय हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र में कार्यरत आम्बेडकर स्टूडेंट्स फोरम (एएसएफ) बहुजन छात्र आंदोलन खड़ा करने में जुटा हुआ है| इस संगठन की गतिविधियाँ विश्वविद्यालय से बाहर, आसपास के इलाकों में भी चलती रहती हैं। हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में बहुजन स्टूडेंट्स फ्रंट (बीएसएफ) की गतिविधियाँ काबिलेतारीफ हैं।

मराठवाड़ा क्षेत्र में नेशनल एससी,एसटी,ओबीसी स्टूडेंट्स एंड यूथ फ्रंट के बैनर तले छात्र गोलबंद होकर काम कर रहे हैं| छतीसगढ़ में गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन अपनी जड़ें जमाने के लिए प्रयासरत है। आम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में आम्बेडकर यूनिवर्सिटी दलित स्टूडेंट्स यूनियन (एयूडीएसयू) के लगातार संघर्षों के परिणामस्वरूप वहाँ एससी,एसटी छात्रों के लिए पचास फीसदी आरक्षण लागू किया गया। यह देश का एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जहाँ इन वर्गों के लिए पचास फीसदी आरक्षण लागू है। उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद तेलंगाना राज्य आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र था। इस आन्दोलन में कई दलित छात्र संगठन काफी सक्रिय थे और अंततः केंद्र सरकार को तेलंगाना राज्य का गठन करना पड़ा।

जेएनयू में ओबीसी छात्रों के संगठन ऑल इण्डिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम (एआईबीएसएफ) ने अच्छी शुरुआत की थी लेकिन वैचारिकता के अभाव तथा घनघोर राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा के चलते यह संगठन आतंरिक जातिवाद का शिकार होकर खत्‍म हो गया।  हाल ही में जेएनयू में बहुजन छात्रों ने बिरसा अम्बेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बीएपीएसए) बनाया है और अब ये छात्रसंघ चुनाव में हिस्सा लेंगे। पिछले कुछ समय से फेसबुक पर सक्रिय आदिवासी समाज के कुछ नौजवान, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) नाम से एक ग्रुप चला रहे हैं। इसमें मप्र और छतीसगढ़ के आदिवासी छात्र-युवा शामिल हैं।

इसके अतिरिक्त, तमाम विश्वविद्यालयों में अलग-अलग दलित छात्र संगठन सामाजिक-सांस्कृतिक मोर्चे पर काम कर रहे हैं। लेकिन छात्रसंघ चुनाव में इनकी सीधी भागीदारी कम ही है। इस मामले में हैदराबाद विश्वविद्यालय का अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) बेहद उत्साहित करता है। वह राजनैतिक तौर पर काफी सक्रिय है। वहां के प्रगतिशील छात्र संगठनों के साथ गठबंधन करके यह चुनाव में हिस्सा लेता है और अब तक इसके द्वारा प्रायोजित दो दलित छात्र विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बन चुके हैं।

फारवर्ड प्रेस के अगस्त, 2015 अंक में प्रकाशित

लेखक के बारे में

सुनील कुमार सुमन

डा.सुनील कुमार 'सुमन' आम्बेडकरवादी आदिवासी शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं

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