h n

महिषा के पक्ष में कन्नड़ बुद्धिजीवी

'महिष एक बौद्ध-बहुजन राजा थे, जो मानवीय मूल्यों और प्रगतिशील विचारधारा के आधार पर महिष मंडल पर शासन करते थे। वे समानता और न्याय के प्रतीक थे'

मैसूर के तर्क वादियों ने 11 अक्टूबर को, नवरात्रि की पूर्वसंध्या पर, चामुण्डी हिल्स में महिषासन हब्बा (महिष उत्सव) का आयोजन किया। कार्यक्रम के आयोजकों में कर्नाटक दलित वेलफेयर ट्रस्ट व अन्य प्रगतिशील संगठन शामिल थे। इस मौके पर महिष मंडल के संस्थापक और इस कल्याणकारी राज्य के शासक महिष की मूर्ति पर पुष्पवर्षा की गई।

मैसूर विश्वविद्यालय के मीडिया अध्येता व तर्कवादी प्रोफेसर बीपी महेशचन्द्र गुरू ने इस अवसर पर कहा, ”कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा महिष को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका कोई प्रमाण नहीं है कि उन्हें चामुण्डेश्वरी ने मारा था, जैसा कि हिन्दू धर्मग्रंथों में बताया गया है। महिष एक बौद्ध-बहुजन राजा थे, जो मानवीय मूल्यों और प्रगतिशील विचारधारा के आधार पर महिष मंडल पर शासन करते थे। वे समानता और न्याय के प्रतीक
Mysore-city-celebrated-Mahishana-Habba_1-e1457181342460थे। उनकी तलवार वीरता का प्रतिनिधित्व करती है और सांप प्रकृति प्रेम का। यह प्रकृति प्रेम बौद्धों ने नाग संस्कृति से विरासत में पाया था। इसके पर्याप्त प्रमाण पाली साहित्य में उपलब्ध हैं। ब्राहमणवादी शक्तियां इतिहास को झुठलाकर यथास्थिति बनाए रखना चाहती हैं और इसलिए उन्होंने चामुण्डेश्वरी द्वारा महिषासुर के वध की काल्पनिक कहानी गढ़ी है। मूल निवासियों का दशहरा पर्व महिष हब्बा के साथ शुरू होता है। अब मूल निवासी दशहरा नहीं, महिष के सम्मान में त्योहार मनाएंगे।’’

लोकगाथाओं के विशेषज्ञ प्रोफेसर कालेगौड़ा नागावर ने भी इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि महिष, महिष मंडल के राजा थे, जो कि मैसूर का पूर्ववर्ती राज्य था। नागावर ने कहा, ”वे एक महान बौद्ध राजा थे जिनके प्रगतिशील शासन में समाज के सभी वर्गों का सशक्तिकरण हुआ। तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया है। लोगों को सच को समझना चाहिए और उन्हें खलनायक की तरह देखना बंद करना चाहिए। हिन्दू धर्मग्रंथों में महिष की नकारात्मक छवि प्रस्तुत की गई है। इस क्षेत्र के लोगों को महिष मंडल के झंडे तले दशहरे को अलग ढंग से मनाना चाहिए।’’

जानेमाने लेखक बन्नूर राजू ने याद दिलाया कि चामुण्डी हिल्स पहले महाबलेश्वर मंदिर के लिए जाना जाता था। ”आज भी पहाड़ी पर महाबलेश्वर का एक मंदिर है, जिसका नाम मैसूर के यदूवम्शा शासकों ने चामुण्डी के नाम पर रख दिया। उन्होंने पुजारी के साथ मिलीभगत कर एक झूठी कथा गढ़ी कि चामुण्डेश्वरी ने महिषासुर का वध किया था। यह आधारहीन और निंदनीय है।’’

प्रगतिशील चिंतक व ‘महिष मंडल’ नामक पुस्तक के लेखक सिद्धस्वामी का तर्क था कि ”महिष सम्प्रदायवादी लेखकों के निशाने पर आ गए और उन्होंने महिष को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया। महिष एक महान बौद्ध शासक थे, जो बुद्ध और अशोक के उच्च आदर्शों में यकीन रखते थे। मैसूर क्षेत्र के मूल निवासियों को महिष हब्बा के झंडे तले संगठित होकर मैसूर के इतिहास का पुनर्लेखन करना चाहिए।’’ कार्यकम में कर्नाटक दलित वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष शांताराजू के नेतृत्व में सैकड़ों प्रगतिशील चिंतकों, संगठकों व कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। शांताराजू ने उपस्थित लोगों से कहा कि कर्नाटक की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक राजधानी के निवासियों का यह कर्तव्य है कि वे इस राज्य के उदय और महिष मंडल के संस्थापक के असली इतिहास को जानें और दूसरों को बताएं। मैसूर के पूर्व मेयर पुरूषोत्तम, मैसूर विश्वविद्यालय की रिसर्च स्कालर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोपाल, दलित स्टूडेंटस फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष डीके श्रीनिवास, दलित स्टूडेंटस फेडरेशन के अध्यक्ष गुरूमूर्ति, प्रगतिशील लेखक हरोहल्ली रविन्द्र, जय भीम संगठन के अध्यक्ष इस्माइल शशि, तागादूर, व शोधार्थी गौथम देवनूर उन लोगों में से थे, जिन्होंने इस आयोजन में भाग लिया। 23 अक्टूबर को क्षेत्र के मूलनिवासी समुदायों ने चामुण्डी हिल्स पर महिष के सम्मान में दशहरा मनाया।

लेखक के बारे में

दिलीप नरसैया एम

दिलीप नरसैया अकादमिशियन, मिडिया रिसर्चर, फ्रीलांस लेखक, और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने मैसूर विश्विद्यालय से पीएचडी की है। उनके शोेध का विषय‘ कम्युनिकेशन स्ट्रेडजी फॉर कार्पोरेट रिपुटेशन मैनेजमेंट’ हैं। इन्होंने तीन किताबें, दलित इन मीडिया (अंग्रेजी), कारूनड्डा माडियामा जानगामा : पी, लंकेश (कन्नड़) और ग्लोबलाईजेशन एण्ड मीडिया : इंडियन इम्पीरिकल इविडेंस (कन्नड़) लिखी हैं

संबंधित आलेख

सामाजिक आंदोलन में भाव, निभाव, एवं भावनाओं का संयोजन थे कांशीराम
जब तक आपको यह एहसास नहीं होगा कि आप संरचना में किस हाशिये से आते हैं, आप उस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा...
दलित कविता में प्रतिक्रांति का स्वर
उत्तर भारत में दलित कविता के क्षेत्र में शून्यता की स्थिति तब भी नहीं थी, जब डॉ. आंबेडकर का आंदोलन चल रहा था। उस...
पुनर्पाठ : सिंधु घाटी बोल उठी
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर का यह काव्य संकलन 1990 में प्रकाशित हुआ। इसकी विचारोत्तेजक भूमिका डॉ. धर्मवीर ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि...
कबीर पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक 
कबीर पूर्वी उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर के जनजीवन में रच-बस गए हैं। अकसर सुबह-सुबह गांव कहीं दूर से आती हुई कबीरा की आवाज़...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...