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ठुमक-ठुमक चलने के साल

अभिभावकत्व एक अनूठी यात्रा है। यद्यपि आपके पहले भी करोड़ों लोग माता-पिता बने हैं और आपके बाद भी बनेंगे, परंतु आप जिस राह पर चलेंगे उस राह पर न कभी कोई चला है और न कभी चलेगा

family_toddlerअभिभावक बतौर मेरी यात्रा लगभग छह वर्ष पहले शुरू हुई। अब मेरी छह साल की बिटिया और तीन साल का बेटा है। यह यात्रा बहुत कठिन रही है परंतु इसने मुझे बहुत कुछ सिखाया भी है। अभिभावक बनने के बाद आपको इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए कि चीज़ें कभी वैसी नहीं होंगी, जैसा आपने सोचा था। जन्म के बाद से ही मेरी लड़की ने आधी रात से लेकर सुबह तक ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। उसे पेट दर्द होता था और इस दर्द को कम करने का कोई तरीका हमें नहीं मिल पा रहा था। मैं स्वयं को बहुत असहाय महसूस करती थी और नींद न होने व निराशा भाव के चलते अक्सर मैं भी उसके साथ रोने लगती थी। जब डाक्टरों ने मुझे बताया कि उसे कम से कम छ: महीने तक यह दर्द सहना होगा तो मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या करूं। मुझे लगा कि मेरी दैनिक प्रार्थनाओं से कुछ न कुछ अच्छा होगा और वही हुआ भी। मेरी लड़की का पेट दर्द कम होता गया और तीन महीने की आयु तक वह पूरी तरह गायब हो गया। आज मुझे अपने बच्चों को बढ़ते देख, उपलब्धियां हासिल करते देख और नई चीज़ें सीखते देख बहुत खुशी होती है। परंतु मेरी चुनौतियां, मेरी छोटी सी बच्ची के पेट दर्द की समस्या सुलझने से ही खत्म नहीं हो गईं – जैसा कि आपको नीचे प्रकाशित सूची से पता चलेगा और जो अधिकांश मांएं बिना किसी के बताए जानती हैं।

खाना खाने में नखरे

यह माताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। मेरी लड़की को खाने की अधिकांश चीज़ें पसंद नहीं थीं और इसलिए, मुझे उसे खाना खिलाने के लिए कई तरीके अपनाने पड़े। चूंकि उसे दूध पसंद नहीं था इसलिए मैं उसे खीर, श्रीखंड, चीज़ व पनीर आदि खिलाती थी। यह समस्या तब और बढ़ जाती है, जब बच्चे बीमार होते हैं। मेरी कोशिश यह रहती थी कि वो थोड़े-थोड़े अंतराल से कुछ न कुछ खाते रहें। परंतु उन्हें खाने के लिए राज़ी करना बड़ा मुश्किल काम था। कभी मैं उन्हें सब्ज़ी के पराठे खिलाती तो कभी कटलेट बनाकर उनके पेट में सब्जियां पहुंचाने की कोशिश करती। उन दोनों को दाल बहुत पसंद थी इसलिए पालक-दाल का हमेशा स्वागत होता था। एक बार मैंने अपनी लड़की को ‘पोपेय द सेलरमेन’ की कहानी सुनाई कि कैसे वो पालक खाकर ताकतवर बन गया और यह कि पालक खाने से वो भी ताकतवर बन सकती है। तब से वह पालक बहुत पसंद करने लगी। घर पर बने फ्रूट शेक, बच्चों को दूध और फल खिलाने का मेरा माध्यम रहे हैं। मैं कार्नफ्लेक्स में शक्कर की जगह कुटे हुए खजूर डालती थी और यह उन्हें बहुत पसंद आता था।

जब वे एक साल के हुए तब से ही मेरे बच्चों को अपने हाथ से खाना पसंद आने लगा। परंतु इसमें परेशानी यह थी कि उन्हें खाने में बहुत वक्त लगता था और उसके बाद भी मुझे उन्हें खिलाना ही पड़ता था क्योंकि जितना वे स्वयं खाते थे, वह कभी पर्याप्त नहीं होता था। एक बार बच्चों का पालनपोषण करने की कला के एक जानकार ने मुझे बताया कि मैं बच्चों को खुद खाने दूं क्योंकि इससे उन्हें चीज़ों के स्वाद और उनकी बनावट की जानकारी मिलती है। मैंने ऐसा ही किया और कुछ ही महीनों में वे बिना ज्यादा गंदगी फैलाए खाना सीख गए।

सुसंगत अनुशासन

यह एक दूसरा क्षेत्र है, जिसमें हमें बहुत संघर्ष करना होता है। प्रेमपूर्ण परंतु दृढ़ निर्देशों से कुछ हद तक अनुशासन सुनिश्चित किया जा सकता है। मुझे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि बच्चों को अनुशासित रखने के लिए ज़रूरी है कि हम यह तय कर लें कि हम उनसे किस तरह के अनुशासन की अपेक्षा करते हैं और फिर उसमें कभी ढील न दें। कई मौकों पर मैंने बदतमीज़ी करने पर अपनी लड़की को जमकर फटकारा है और बात न मानने पर अपने लड़के को दी गई कुछ विशेष सुविधाएं वापस ले ली हैं। मैं ऐसा उन्हें बार-बार चेतावनी देने के बाद ही करती हूं। वे जानते हैं कि मां वही करेगी जो वह कह रही है। यही बात पुरस्कारों के बारे में भी सही है। मैं यह सुनिश्चित करती हूं कि अगर उन्हें कुछ देने का वायदा किया जाए तो उसका पालन हो। इससे बच्चों में हमारे प्रति विश्वास जागता है। इस मामले में दोनों अभिभावकों को बिलकुल एक-सी नीति अपनानी चाहिए वरना बच्चे, अभिभावकों के आपसी मतभेद का फायदा उठाने लगते हैं। एक बार मैंने अपनी लड़की से कहा कि वह खेलने बाहर नहीं जाएगी क्योंकि उसने गलत व्यवहार किया था। दोपहर में, जब मैं झपकी ले रही थी, वह अपने पिता से पूछकर बाहर खेलने चली गई। उसके पिता को यह जानकारी नहीं थी कि मैंने उसे बाहर जाने के लिए मना किया है। अगली बार जब मैंने उससे कहा कि वह बाहर नहीं जाएगी तो उसने तुरंत कहा कि वो डैडी से पूछकर चली जाएगी। एक ही घटना ने उसे सिखा दिया था कि स्थितियों का फायदा कैसे उठाया जा सकता है और इसी घटना ने मुझे भी यह सिखा दिया था कि मुझे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वो परिस्थितियों का अनुचित लाभ न ले सके।

अपने लिए समय

जब मेरे बच्चे छोटे थे तब वे हमेशा मेरे पास रहते थे। मेरे दिन का अधिकांश समय उनकी देखभाल में जाता था-उन्हें नहलाने-धुलाने में, खिलाने-पिलाने में और उनके साथ खेलने में। इससे मैं और मेरे बच्चे प्रेम और विश्वास के बंधन में बंध गए। परंतु बच्चों की देखभाल एक थकाने वाला काम होता है। मांएं बच्चों की सभी मांगे और ज़रूरतें पूरी कर सकें, इसके लिए यह ज़रूरी है कि उन्हें भी थोड़ा आराम मिले। और मांओं के लिए आराम करने का सबसे अच्छा समय वह है, जब बच्चे आराम कर रहे हों। मुझे यह सब अकेले ही करना पड़ा क्योंकि हमारे आसपास हमारे कोई परिवारजन या मित्र नहीं रहते थे। इसलिए यह ज़रूरी है कि जहां तक हो सके, पति घरेलू कामकाज में हाथ बंटाएं। जब तक मां थोड़ा आराम कर रही है तब तक वे बच्चों की देखभाल कर सकते हैं। मेरे बच्चों को अपने पिता के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि उनके साथ खेलने में उन्हें बहुत मज़ा आता है। यह ज़रूरी है कि मां की व्यक्तिगत ज़रूरतें पूरी हों क्योंकि अन्यथा वो बहुत परेशान हो जाएगी और इसका असर बच्चों पर भी पड़ेगा।

अपने विवाह को मत भूलिए

आपके और आपके बच्चों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपने वैवाहिक संबंधों की ऊष्मा बनाए रखें। दोनों अभिभावकों के सिर पर इतना काम लदा रहता है कि उनके पास एक-दूसरे के साथ बिताने के लिए समय ही नहीं बचता। मुझे और मेरे पति को ऐसा लगा कि हमें एकसाथ समय बिताने के लिए पहले से योजना बनानी होगी और उस पर कड़ाई से अमल करना होगा। एक-दूसरे के साथ समय बिताना हमेशा अच्छा होता है। बड़े होने पर बच्चे जब यह देखते हैं कि उनके माता-पिता एक-दूसरे के साथ कुछ समय बिताते हैं तो उन्हें भी यह समझ में आता है कि अच्छा वैवाहिक जीवन कैसा होता है। मैं जानती हूं कि साथ बिताया गया समय कितना कीमती होता है। मुझे हमारे विवाह के बारे में कुछ चिंताएं थीं। मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि हम दोनों के बीच चर्चा के कई दौरों में मेरे पति ने मेरी सारी चिंताओं को दूर कर दिया।

अपने बच्चे के अनूठेपन का आदर कीजिए

हर बच्चा अनूठा होता है। यह मैं अपने बच्चों में देख सकती हूं। मेरी लड़की घर के बाहर समय बिताना पसंद करती है। वह अंतर्मुखी और संवेदनशील है। उसकी चित्रकला और नृत्य में रूचि है। दूसरी ओर, मेरे लड़के को सामाजिक मेलजोल बहुत पसंद है और खाना पकाना भी। जब मैं कोई कहानी सुनाती हूं तो मेरी लड़की उसे सुनते हुए सो जाती है परंतु मेरा लड़का और उत्तेजित हो जाता है और खेलना बंद ही नहीं करता। फिर, हम सब चुप हो जाते हैं ताकि वो सो जाए। जब मेरे पुत्र का जन्म हुआ तब वह मेरे लिए कई नई चीज़ें सीखने का मौका लेकर आया। मुझे यह समझ में आ गया कि आपको आदर्श अभिभावक बनाने के लिए कोई बीस बिंदू वाला मैन्युअल तैयार नहीं किया जा सकता। हम सब अपनी गलतियों से सीखते हैं।

तो अंत में, बहुत छोटे बच्चों को पालने के कुछ सिद्धांत, जिन्होंने मेरी बहुत मदद की है।

  • रचनात्मक बनिए: चाहे मुद्दा बच्चों के खाने-पीने में नखरे का हो या अनुशासन के अभाव का, रचनात्मक बनना सीखिए और प्रयोग कीजिए। कोई काम किसी एक तरीके से केवल इसलिए मत कीजिए क्योंकि वह हमशासे उस तरह से किया जाता रहा है या फिर अन्य लोगों की आपसे वैसा करने की अपेक्षा है।
  • स्पष्टट, सुसंगत सीमाएं खींचे: चाहे मामला खेलने के बाद खिलौनों को ठीक से जमाकर रखने का हो या प्लेट का खाना खत्म करने का – बच्चों को यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि वे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। और इसके कारण भी उन्हें बताए जाने चाहिए। इन सीमाओं के मामले में दृढ़ रहें ताकि बच्चे उनका सम्मान करना सीखें और उन्हें पार करने की हिम्मत न करें।
  • अपने लिए समय निकालें: हमेशा अपने बच्चों के साथ ही समय बिताने और खुद के लिए बिल्कुल समय न निकालने से आप बहुत परेशान हो जाएंगीं और यह बच्चों के साथ आपके व्यवहार को भी प्रभावित करेगा। कुछ समय अपने लिए निकालें और ऐसा करने पर अपराधबोध न पालें। इस समय का क्या उपयोग हो यह आपकी परिस्थिति पर निर्भर है। आप इस दौरान कोई काम कर सकती हैं, पढ़ सकती हैं, कसरत कर सकती हैं या मित्रों से मिल सकती हैं। कोई ऐसा काम चुनिए, जो आपको आनंद दे, न कि ऐसा जो आपके तनाव को बढ़ाए। परिवारजनों और मित्रों से जितनी संभव हो उतनी मदद और सहयोग लीजिए।
  • अपने विवाह में निवेश कीजिए: अगर माता-पिता अपने लिए बिल्कुल समय नहीं निकालेंगे और लगातार एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहेंगे तो इसका असर बच्चों पर भी पड़ेगा। अपने वैवाहिक संबंधों का भी ध्यान रखें और अपने दिन भर के कामकाज में उसके लिए भी समय निकालें।
  • ईश्वर में विश्वास रखें: बच्चों के साथ या उनके लिए प्रार्थना करने से हम पर से चिंताओं का बोझ हट जाता है और हम उसे ईश्वर के कंधों पर रख देते हैं। जीवन के हर कठिन दौर में आध्यात्मिकता ने मेरी मदद की है। आध्यात्मिकता की पतवार मेरे जीवन की नाव को सही दिशा देने में हमेशा सफल रही है।

अभिभावक बतौर हर यात्रा अनूठी होती है। कभी भी दूसरों के साथ अपनी तुलना कर या दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करने के प्रयास में हतोत्साहित न हों। अभिभावक बतौर सबसे अच्छा करने की कोशिश कीजिए।

यह लेख ”फैमिली मंत्र (www.familymantra.org) से अनुमति प्राप्त कर प्रकाशित किया जा रहा है। यह पत्रिका शहरी परिवारों की समस्याओं पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य परिवारों को मजबूती देना और उन्हें पुन: एक करना है।

फारवर्ड प्रेस के सितंबर, 2015 अंक में प्रकाशित

लेखक के बारे में

श्रीजा सुनील

श्रीजा सुनील गृहणी हैं और बंगलौर में रहती हैं।  

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