मैसूर में पहली बार कोरेगांव विजय दिवस मनाया गया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि मीडिया अध्येता व तर्कवादी प्रोफेसर बीपी महेशचन्द्र गुरू ने अपने उद्बोधन में कहा कि, ”निहित स्वार्थो ने भारत के असली इतिहास को दफन कर दिया है ताकि बिना एक बूंद खून या पसीना बहाए, वे इतिहास के नायक बने रहें।” यह समारोह अशोकपुरम में नए साल के पहले दिन आयोजित किया गया। 1 जनवरी को कोरेगांव विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। ”रामायण, महाभारत, वचन साहित्य, विद्रोही साहित्य व भारत का संविधान, जो उच्चतम ज्ञान व मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, का निर्माण देशज लोगों ने किया था। उन्होंनेे ही बड़े बलिदान देकर राष्ट्रीय संपत्ति का सृजन और राजनीतिक शक्ति का निर्माण किया परंतु स्वाधीनता के बाद, ब्राहम्णवादी व पूंजीवादी शक्तियों ने उन्हें हाशिए पर ढकेल दिया।”
गुरू ने श्रोताओं को 500 महारों की छोटी-सी सेना के अद्भुत साहस का स्मरण कराया, जिसने 1 जनवरी, 1818 को मराठा साम्राज्य के पेशवाओं-जो सामाजिक बराबरी व न्याय के विरोधी थे-की 28,000 सैनिकों की विशाल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। एक जनवरी 1927 को कोरेगांव भीम विजय स्तंभ पर इन वीर सैनिकों को पुष्पाजंलि अर्पित कर डॉ. बी. आर. आम्बेडकर ने विजय दिवस मनाने की परंपरा की नींव रखी थी। वे देशज लोगों के नेतृत्व में लड़े गए स्वतंत्रता के इस ऐतिहासिक युद्ध को हर वर्ष एक जनवरी को इसी प्रकार याद करते थे।
प्रोफेसर गुरू ने इस विजय की तुलना नरेन्द्र मोदी के राज में देश में व्याप्त असहायता और पराजय भाव से करते हुए कहा कि किसानों की आत्महत्याओं का दौर चल रहा है, श्रमिकों की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी गई है और महिलाओं व कमजोर वर्गो पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे अपने आपसी मतभेदों को भुला दें और एक होकर कट्टरवादी व पूंजीवादी दमनकर्ताओं के खिलाफ संघर्ष करें।
कोरेगांव विजय दिवस का आयोजन जय भीम स्पोर्टस क्लब व अन्य प्रगतिशील संगठनों ने किया था। मैसूर के पूर्व मेयर पुरूषोत्तम, अधिवक्ता उमेश, युवक कांग्रेस नेता अविनाश, शोध अध्येता रमेश, मैसूर विश्वविद्यालय के दलित छात्र संगठन के अध्यक्ष व सचिव क्रमश: गुरूमूर्ति व महेश सहित बड़ी संख्या में प्रगतिशील चिंतकों और कार्यकतार्ओं ने आयोजन में भागीदारी की। सैंकड़ों युवकों ने अशोकपुरम से टाउनहॉल तक मोटर साईकिल रैली निकाली। टाउनहाल में उन्होंने बीआर आम्बेडकर की प्रतिमा पर पुष्पगुच्छ अर्पित किए
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2016 अंक में प्रकाशित )
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