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जेल से बाहर आये गुरू : सांस्कृतिक संघर्ष की कहानी

मैसूर विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बी.पी महेशचंद्र गुरू शुक्रवार को जमानत मिलने के बाद देर शाम जेल से बाहर आये। दलित-बहुजन पक्ष में उनकी लगातार सक्रियता की पूरी कहानी। यही वजहें थी उनके खिलाफ हिन्दू संगठनों के अभियान की

BP Mahesh chandra guruमैसूर विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बीपी महेशचंद्र गुरू को आखिरकार शुक्रवार को जमानत मिल गई और वे देर शाम जेल से रिहा हुए। जेल से छूटने के बाद अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ गौरवान्वित महसूस करते हुए उन्होंने फॉरवर्ड प्रेस से बात की और बताया कि वे देश में रामराज नहीं ‘भीमराज’ के हिमायती हैं। (फॉरवर्ड प्रेस में पढ़ें : कौन हैं गुरू) पिछले 17 जून को प्रोफ़ेसर महेश चंद्र गुरू को मैसूर की अदालत ने डेढ़ साल पुराने एक मुक़दमे में जेल भेज दिया था। प्रोफ़ेसर गुरू के खिलाफ 3 जनवरी 2015 को एक हिंदूवादी संगठन ने यह कहते हुए मुकदमा दर्ज कराया था कि उन्होंने ‘भगवान राम का अपमान’ किया है। 20 जून को उनकी जमानत याचिका उनके खिलाफ एक और पुराने मामले का संज्ञान लेते हुए अदालत ने खारिज कर दी। इसके साथ ही उनके द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री के खिलाफ अपशब्द कहने के आरोप और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के कर्नाटक राज्य- उपाध्यक्ष चीना रामू के द्वारा की गई शिकायत सूर्खीयों में आ गई। इन तीनों ही प्रकरणों की पूरी जानकारी फॉरवर्ड प्रेस ने प्राप्त की।

क्या हैं तीनों मामले

राज्य के कई अकादमिक संस्थानों और आयोगों में काम कर चुके देश के पहले दलित मीडिया-प्रोफ़ेसर गुरु तर्कवादी विचारकों और सामजिक कार्यकर्ताओं में से एक हैं। वे धार्मिक पाखण्ड और ब्राह्मणवादी मिथकीय ज्ञान के खिलाफ कई मोर्चों पर सक्रिय रहते हैं। इसी सक्रियता से जुड़े इन तीन प्रकरणों के खिलाफ इन दिनों अति उत्साह में आये हिंदूवादी संगठन उनके खिलाफ सक्रिय हुए।

मानवाधिकार विरोधी राम (पहला प्रकरण)

Gate_ University of mysore
मैसूर विश्वविद्यालय

खुद को ‘भीमराज’ का हिमायती बताने वाले गुरू ने 3 जनवरी 2015 को यूजीसी के एक प्रोग्राम के तहत मैसूर विश्वविद्यालय में शिक्षकों के लिए आयोजित एक विशेष व्याख्यान में ‘मीडिया और मानवाधिकार’ विषय पर बोलते हुए राम (भारतीय मिथकीय चरित्र) की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि ‘राम ने रामायण में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। राम ने गर्भवती सीता पर शक किया और उनका उत्पीडन किया। मैं इसे मानवाधिकार के उल्लंघन का प्रसंग मानता हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि आज मीडिया राम के तथाकथित आदर्शों का प्रचार कर रही है, जो जनता के लिए ठीक नहीं है।’ करुनाडू सर्वोदय सेना ने इसके बाद उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया।

गीता का विरोध (दूसरा प्रकरण)

फरवरी 2015 में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के आह्वान पर ‘भगवद् गीता ’ को जलाने के आयोजन में प्रोफ़ेसर गुरू ने भी शिरकत की। इस अवसर पर उन्होंने गीता को वर्ण व्यवस्था का हिमायती और शोषण का ग्रन्थ बताया। यद्यपि उन्होंने इस ग्रन्थ को जलाये जाने से ज्यादा इसके अस्तित्व और महत्व के नकार को महत्वपूर्ण बताया लेकिन प्रोफ़ेसर गुरू और अन्य तीन प्रोफेसरों पर विश्व हिन्दू परिषद् के मनोज कुमार ने ‘हिन्दू भावना आहत’  करने के लिए मुकदमा दर्ज कराया। प्रोफ़ेसर भगवान, प्रोफ़ेसर अरविंदमलगट्टी. प्रोफ़ेसर बंजगेरे महेश और प्रोफ़ेसर गुरु के खिलाफ भारतीय जनता युवा मोर्चा ने तब प्रदर्शन भी किया था। अदालत ने इसी मामले के हवाले से 20 जून को प्रोफ़ेसर गुरू को जमानत देने से इनकार कर दिया था। (पढ़ें संकट में ‘रामद्रोही’ गुरू)

मोदी और स्मृति इरानी के खिलाफ वक्तव्य (तीसरा प्रकरण)

जनवरी 2016 में हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के खिलाफ एक कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर गुरू ने स्मृति ईरानी और नरेंद्र मोदी को दलित विरोधी बताते हुए दलित विद्यार्थियों को न्याय के लिए संघर्ष का आह्वान किया। इस अवसर पर उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भी आलोचना की थी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के एक दलित नेता और तब राज्य में अनुसूचित जाति मोर्चा के महासचिव और अब उपाध्यक्ष चीना रामू ने उनके खिलाफ बैंगलोर पुलिस को अपनी शिकायत भेजी। चीना रामू ने फॉरवर्ड प्रेस को बताया कि उन्होंने प्रोफ़ेसर गुरू के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराया था, बल्कि पुलिस कमिश्नर और राज्य के गवर्नर को उनके खिलाफ शिकायत भेजी थी। यह पूछे जाने पर कि वे खुद दलित नेता होकर भी प्रोफ़ेसर गुरू के ब्राह्मणवाद विरोधी मुहीमों और दलित विद्यार्थी को न्याय दिलाने की उनकी कोशिश के खिलाफ क्यों हैं, चीना रामू ने कहा कि “दलित बुद्धिजीवियों को समाज में वैमनस्य फैलाने वाले बयान नहीं देने चाहिए।

मनाया महिषासुर शहादत दिवस 

Mahishasura Diwasप्रोफ़ेसर गुरू ने 2015 में मैसूर में महिषासुर शहादत दिवस भी मनाया था। महिषासुर को बौद्ध शासक बताने वाले गुरू ने इस अवसर पर मैसूर को महिषा मंडल बताते हुए महिषासुर को अपना पूर्वज बताया। (फॉरवर्ड प्रेस में ऑनलाइन पढ़ें इस विषय पर प्रोफ़ेसर गुरू का लेख) इस आयोजन के बाद भी हिन्दूवादी  संगठनों को उन्होंने नाराज किया था। उनके अनुसार “मैसूर को अलग-अलग स्थानों में महिष मंडल, महिषुरानाडू, महिषानाडू व महिषापुरा भी कहा गया है। महिष मंडल मुख्यतः कृषि-आधारित राज्य था, जहाँ बड़ी संख्या में भैंसे थीं, जिनका इस्तेमाल खेती, दुग्ध उत्पादन व अन्य उद्देश्यों के लिया किया जाता था। इसलिए मैसूर को एरुमैयुरम अर्थात भैंसों की भूमि भी कहा जाता है। बौद्ध और होयसला साहित्य में महिष मंडल के बारे में बहुत जानकारियां हैं। इस राज्य में कई छोटे-बड़े राज्य थे।’’

संभवतः दलित–बहुजन परंपरा के पक्ष में प्रोफ़ेसर गुरू की लगातार सक्रियता ने उनके खिलाफ हिन्दू संगठन और हिन्दू उत्साह को उकसाया। लेकिन जेल से छूटने के बाद मैसूर के दलित –बहुजन चिंतकों और समाजिक कार्यकर्ताओं ने उनका भव्य स्वागत भी किया। खबर है कि जेल जाने के कारण विश्वविद्यालय से निलंबित किये गये प्रोफ़ेसर गुरू के निलंबन वापसी पर मैसूर विश्वविद्यालय विचार कर रहा है। निलंबन का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि सिंडिकेट के निर्णय के बाद विश्वविद्यालय ने निलंबन का अंतिम आदेश निकालने में कोई जल्दबाजी नहीं की थी।

लेखक के बारे में

संजीव चन्दन

संजीव चंदन (25 नवंबर 1977) : प्रकाशन संस्था व समाजकर्मी समूह ‘द मार्जनालाइज्ड’ के प्रमुख संजीव चंदन चर्चित पत्रिका ‘स्त्रीकाल’(अनियतकालीन व वेबपोर्टल) के संपादक भी हैं। श्री चंदन अपने स्त्रीवादी-आंबेडकरवादी लेखन के लिए जाने जाते हैं। स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘चौखट पर स्त्री (2014) प्रकाशित है तथा उनका कहानी संग्रह ‘546वीं सीट की स्त्री’ प्रकाश्य है। संपर्क : themarginalised@gmail.com

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