अगर उपर्युक्त सवाल सही है तो यह तथाकथित हिंदू धर्म और उसके मानने वाले लोगों को भ्रष्ट करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश है कि इसे विदेशी खेल ‘क्रिकेट’ बना कर हर गली- मुहल्ले व घर-परिवार में घुंसा दिया गया है। देश के सभी हिंदू क्रिकेट खिलाड़ियों से और जिस किसी हिंदू ने जीवन में कभी भी क्रिकेट बॉल छुआ है, उन सभी से सख्त अपील है कि गंगा स्नान कर अपना-अपना शुद्धिकरण हरिद्वार या संगम तट पर करायें। जो क्रिकेट खेलते हुये मर गये उनकी अशुद्ध आत्मा को ‘गया (बिहार)’ में अर्पण-तर्पण कराकर मुक्ति दिलायें, नहीं तो फिर वे भूत बनकर भटकते रहेंगे। यह सब रहस्योदघाटन होने के बाद सभी हिंदू मान्यता वालों को क्रिकेट का खुलकर बहिष्कार करना चाहिये। यही नहीं हिन्दू धर्म मानने वालों को शपथ लेनी चाहिये कि क्रिकेट बॉल छुना तो दूर, जीवन में कभी क्रिकेट नहीं खेलेंगे।
कितनी बुरी व तकलीफ की बात है कि वो गाय जिसे सभी हिंदू अपनी माता मानते हैं, उसके मरने के बाद मृत शरीर का चमड़ा छीलकर-निकालकर क्रिकेट का बॉल बनता है। एक बॉलर उसे जोर से पटककर बॉलिंग करता है और बैट्समैन कितनी बेदर्दी से शॉट मारता है। इसी चौके-छक्के वाले शॉट पर सभी ताली बजाते हैं, इनमें हिंदू भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इस गाय समर्थक एवं क्रिकेट विरोधी विचार पर गैर हिंदुओं को आपत्ति हो सकती है तो अन्यथा न लें, संविधान में दिये गये धार्मिक मान्यता की स्वतंत्रता के लिहाज से क्रिकेट खेल सकते हैं।
अभी हाल ही में भारत की पर्यावरण नीति से संबंधित एक ड्राफ्ट के बारे में पता चला कि वह अमेरिकी पर्यावरण नीति का ही हूबहू नकल किया गया है, वह भी बिना रेफरेंस नोट या आभार व्यक्त किये। यह खबर पूरी सोशल मीडिया पर छाई हुई है। जिन महानुभाव प्रकाश जावडेकर के मंत्रालय के अंतर्गत यह कॉपी-पेस्ट पॉलिसी ड्राफ्ट हुई वे अब मानव संसाधन मंत्री बन चुके हैं। वैसे भी भारत की शिक्षा नीति, आर्थिक नीति, विदेश नीति तो अमेरिका के ही रास्ते पर, उसके ही आदेश-निर्देश का पालन करते हुये चलती है तो क्यों नहीं भारत की खेल नीति भी अमेरिका के हिसाब से कॉपी-पेस्ट कर बनाई जाती है, जिसमें क्रिकेट जैसे घटिया खेल के लिये कोई जगह नहीं है। वैसे भी क्रिकेट ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्रतीक खेल माना जाता है, जिसमें गाहे-बगाहे आतंकियों के भी पैसे लगे होने की बात कई बार खबरों की सुर्खियाँ भी बनती रही हैं।
क्रिकेट के बॉल का दाम पिछले एक साल में दुगना हो गया है यानि 400 रूपये से बढ़कर 800 रूपये हो गया है। क्रिकेट बॉल बनाने के लिये आमतौर पर गाय के चमड़े का इस्तेमाल होता आया है लेकिन केन्द्र में बीजेपी सरकार आने के बाद राजनीतिक कारणों से उत्तर प्रदेश में
सरकार और सरकार की आड़ में हिन्दूवाद-राष्ट्रवाद की ठेकेदारी करने वाले लोगों ने गौहत्या, गौमांस की बिक्री व गाय के चमड़े- अवशेषों आदि के परिवहन को लेकर सख्ती का माहौल बना रखा है। देश में कई घटनायें घट चुकी हैं, जिनमें कट्टर हिन्दूवादी संगठन के लोगों ने गायों की तस्करी, गौमांस पकाने आदि शक के आधार पर कई लोगों को नृशंस हत्या भी कर दी है। इन सब कारणों से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की केन्द्र सरकार से मामले की गंभीरता-संवेदनशीलता को देखते हुये अपील है कि देशभर में गाय के चमड़े से बनने वाले क्रिकेट बॉल को खोजवाकर जब्त करे, साथ ही इस हिंदू विरोधी खेल के भारत में खेले जाने पर रोक लगाकर धर्मनिरपेक्ष होने का सबूत दे।
good.nikhil bhai aap ka articl padha achha laga.umid hai aap aage bhi isi tarah se likhte rahenge..