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एक कावड़िये की चे ग्वेरा से बातचीत

उत्तर भारत में सावन के महीने में हरिद्वार से लाखो नवजवानों द्वारा कावड़ लाई जाती है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा गांव हो, जहां हरिद्वार से कावड़ न लाई जाती हो। बिहार में वैद्यनाथ धाम में कावड़ की धूम होती है। प्रत्येक साल यह संख्या बढ़ रही है। हरियाणा के एक कावड़िये से विश्व के महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा की बातचीत

kanwariya marchसावन का महीना है, लाखो कावड़िये हरिद्वार से कावड़ उठा कर अपने गंतव्य की तरफ झुंडों में जा रहे हैं और जोर-जोर से ‘बोल बम, बोल बम’ का जयकारा लगा रहे हैं। कहीं कावड़ियों का झुण्ड डीजे की कान फोड़ू आवाज में नाचते हुए जा रहा है, तो कहीं गांजा की सिगरेट से लंबे-लंबे कश लेकर हवा में धुंए के छले छोड़ते हुए, कोई-कोई कावडिया पास से गुजरती लड़कियों की तरफ सिटी मारते हुए जा रहां है।  उन्ही कावड़ियों में से एक कावड़िये को एक अलग सी आवाज सुनाई देती है। इंक़लाब जिंदाबाद, दुनिया के मेहनतकश एक हों।
वह भौचक रह जाता है कि ये अजीब आवाज कहाँ से आ रही है!  वह कोशिश करता है कि ये सुनने की कि ये शरारत कौन और क्यों कर रहा है? वह अपने झुंड के प्रत्येक कावड़िये पर नजर डालता है। लेकिन उधर तो सब ठीक है सब अपनी मस्ती में चूर बोल बम का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। वह झुंड से थोड़ा पीछे रह जाता है ताकि जान सके कि ये अजीब आवाज कहा से आ रही है। पीछे रहने पर जब  उसने ध्यान लगा कर उस आवाज को सुना तो उसने पाया कि ये आवाज तो उसकी टी शर्ट से आ रही है। वह डर गया और जोर-जोर से पूछा कि ‘कौन है, कौन है!’
अब दूसरी तरफ से आवाज आई , ‘नवजवान डरो मत, मैं लैटिन अमेरिकी क्रांतिकारी कामरेड चे ग्वेरा हूँ। आपसे कुछ बातचीत करना चाहता हूँ।‘
कावड़िया (डरता-डरता) : ‘हाँ कहो।‘
चे – नवजवान, तुम्हारा नाम क्या है, कहाँ से हो और काम क्या करते हो, पढ़ाई कितनी की है।
कावड़िया – मेरा नाम रविंदर, हरियाणा में हिसार से हूँ,  बी ए किया है, बेरोजगार हूँ।
चे- यह जो कावड़ आप ला रहे हो, इसका फायदा नुकसान क्या है?
कावड़िया – फायदा ही है, नुकसान कुछ नहीं। कावड़ एक तपस्या है सर्वशक्तिमान, तीनो लोकों के रचयिता, को खुश करने के लिए। वे खुश हो जाएंगे तो जो नौकरी मांगता है, उसको नौकरी और जो छोकरी मांगता है, उसको छोकरी मिल जायेगी। जो भी सच्चे मन से मांगोगे वो सब मिल जायेगा। चे- इस तपस्या पर खर्च कितना आएगा?
कावड़िया – प्रत्येक कावड़िया कम से कम 5 हजार खर्च कर देता है। लाखो लोग अबकी बार कावड़ लेने आये है। सैकड़ो लोगों ने कावड़ियों की सेवा में शिविर लगाये हैं।
unnamedचे – मेरे नवजवान साथी, जो बात मैं आपको बताना चाहता हूँ उसे गौर से सुनो। ये जो कावड़ है ये कई हजार करोड़ रूपये का बाजार है। सरकार भी चाहती है कि देश का नवजवान अपनी समस्याओं का समाधान ऐसी अलौकिक शक्तियों में खोजता रहे। जबकि ऐसी कोई अलौकिक शक्ति है ही नहीं।  इन सब का निर्माण जनता को गुमराह करने के लिए सत्ता ने ही किया है।  शिक्षा, रोजगार, इलाज यह सब तो सरकार के हाथ में है। शिक्षा की फीस कितनी होगी, इलाज सस्ता या मंहगा होगा, रोजगार के लिए कितनी वैकेंसी निकलेगी इन सब पर सरकार फैसला लेती है या शिवजी? अगर ये ही लाखो नवजवान देश के अलग-अलग हिस्सो से इकठ्ठा होकर भारत की संसद की तरफ शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य की मांग को लेकर कूच करें तो क्या सरकार ये सब देने के लिए मजबूर नही हो जायेगी।
आप पूरे विश्व का या भारत का इतिहास उठा कर देख लीजिए, जहाँ जनता ने जाति, धर्म, इलाका से ऊपर उठकर एकता बनाई। अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। क्रूर सत्ताओ को उन्हीं की भाषाओं में जनता ने जवाब दिया, वहाँ-वहाँ जनता को अधिकार मिले, आजादी मिली। आपके भारत में भी लाखों नवजवानो ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ और उसके बाद काले अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष किया तो आपको  अंग्रजों से छुटकारा मिला और काले अंग्रेजों से कुछ अधिकार मिले। अगर इन अधिकारों को बचाये रखना चाहते हो या पूर्ण आजादी चाहते हो तो आप सब नवजवानों को भी इस धर्म की काली पट्टी को खोल कर फेकना होगा। एक लम्बी लड़ाई लड़नी होगी। आप सब नवजवानो को शामिल होना होगा कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से मणिपुर, नागालेंड की पहाड़ियों तक चल रही उस लड़ाई में, जो जल-जंगल और जमीन को बचाने के लिये सत्ता से लड़ रहे है आपको शामिल होना चाहिए उन मेहनतकश मजदूर -किसान की लड़ाइयों में। आपको शामिल होना चाहिए उन दलितों की लड़ाई में, जो सबसे मेहनती होने के बावजूद लड़ रहे है बराबरी के लिए, जिनको आपके इन मंदिरों में बैठे ब्राह्मणों ने कभी इंसान ही नही माना, आपको उनकी लड़ाई का हिस्सा बनना चाहिए। आपको हिस्सा बनना चाहिए उन महिलाओं की लड़ाई का, जिसको पाँव की जूती से ज्यादा कभी मान-सम्मान इस पुरुषवादी समाज ने दिया ही नही, आपको उस सत्ता की “आयरन हील” को तोड़ने के लिए लड़ना चाहिए जो कुचल रही है आदिवासियों को।
हमने भी हमारे देश क्यूबा में साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी तो जनता को  साम्रज्यवाद की बेड़ियों से मुक्त करवा पाए। और जो ये आपकी सेवा में शिविर लगाये हुए हैं, ये सब भी सत्ता के हिस्सेदार हैं।कावड़ के दौरान जो नशे का इतना बड़ा व्यापक कारोबार है। ये भी सत्ता की बहुत बड़ी चाल है। ताकि एक बड़ा तबका नशे का आदि हो जाये। मुक्ति का रास्ता ये कावड़ नही,  मुक्ति का रास्ता सिर्फ संघर्ष है, सिर्फ संघर्ष है।
मेरे दोस्त अगली दफा शायद हमारी मुलाकात किसी संघर्ष के मैदान में होगी इसी विश्वास के साथ अलविदा! “
कावड़िये का अगला सवाल होता, इससे पहले उसकी नींद खुल गयी।

लेखक के बारे में

उदय चे

उदय चे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। आजकल मजदूर आंदोलन से जुड़े हैं और भगत सिंह कला मंच में भी सक्रिय है।

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