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महिषासुर हमारी जाति के थे : रामदास अठावले

केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले न सिर्फ महिषासुर को अपनी जाति का और उसकी ह्त्या को गलत बता रहे हैं, बल्कि यह भी दावा कर रहे हैं कि वे बीजेपी के साथ होकर भी उससे वैचारिक रूप से अलग हैं और जैसे कांग्रेस को छोड़ा वैसे जरूरत पड़ी तो भाजपा को भी छोड़ देंगे

athawale3दलित उत्पीड़न की बढती घटनाओं और उन घटनाओं के खिलाफ व्यापक विरोध के बीच मोदी सरकार ने पिछले महीने दलित और पिछड़ी जाति के नेताओं को अपने मंत्रीमंडल में जगह दी। इसे उत्तर प्रदेश और पंजाब के आसन्न चुनावों, और मुंबई महानगर पालिका के आगामी चुनाव के मद्देनजर सत्ताधारी पार्टी की रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है। ऐसा माना जाना निराधार भी नहीं है, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाये गये महाराष्ट्र के कद्दावर दलित नेता रामदास अठावले इसके संकेत भी दे रहे हैं, वे एक ओर तो बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती पर लगातार हमले बोल रहे हैं, दूसरी ओर दलितों के खिलाफ हमले, गोरक्षकों के उत्पात या संविधान से छेड़छाड़ की संभावनाओं पर मुखरता से बोलकर गठबंधन के भीतर और बाहर विरोध के स्पेस को आत्मसात कर ले रहे हैं तथा सबसे बड़े दलित नेता के रूप में स्वीकार्यता की कोशिश भी कर रहे हैं। फॉरवर्ड प्रेस के लिए संजीव चंदन ने उनसे बेबाक बातचीत की।

आपके मंत्री बनने पर बहुत-बहुत बधाई अठावले साहब! लेकिन कहा यह जा रहा है कि आपको मंत्री बनाये जाने के पीछे आपका सुरक्षा कवचके रूप में इस्तेमाल की भाजपा की योजना काम कर रही है- मुंबई में डा. आंबेडकर का घर तोड दिया गया, गोरक्षा के नाम पर दलितों को पीटा जा रहा है, विश्वविद्यालयों में दलित छात्र-छात्राएं प्रताड़ित हैं, इसलिए दलितों के गुस्से को कम करने के लिए आपको मैदान में उतारा गया है

बाबा साहेब डा. आंबेडकर के बाद पहली बार रिपब्लिकन पार्टी का कोई नेता मंत्री बना है, जो काम 67 सालों में कांग्रेस ने नहीं किया वह नरेंद मोदी जी ने कर दिखाया है। मैं कोई कुर्सी से चिपक कर काम करने वाला आदमी नहीं हूँ, जनता के बीच रहता हूँ- मुझे जनता की समस्याएं पता है, मैं जानता हूँ कि किसानों, दलितों, खेतीहर मजदूरों, महिलाओं को क्या समस्याएं हैं?  इसलिए अगर मैं मंत्री बना हूँ,  तो इसका मतलब यह नहीं कि बड़ा बन गया हूँ। लोग बकवास करते हैं कि अठावले मंत्रीपद के पीछे है, अगर हमारे वोटों से बीजेपी की सरकार बनी है, तो क्यों नहीं हमें सत्ता में हिस्सेदारी मिले? यह सच है कि बीजेपी बड़ी पार्टी है और हमारे वोटों से सत्ता में है तो उसे ज्यादा फ़ायदा मिलेगा, लेकिन हमारी पार्टी के लोगों, कार्यकर्ताओं को कम ही सही, फायदा जरूर होना चाहिए। अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव है, वहां मायावती ने हमारी, आरपीआई की जमीन छीनी है। 1967 चौधरी चरण सिंह की सरकार में हमारी पार्टी सरकार में शामिल थी, हमारे 19 विधायक थे। मायावती ने हमारी पार्टी का चुनाव चिह्न हाथी भी छीन लिया है। हम उत्तर प्रदेश जायेंगे और लोगों को बतायेंगे कि हम भारतीय जनता पार्टी को सपोर्ट जरूर कर रहे हैं लेकिन मैंने नीला झंडा नहीं छोड़ा है।

महाराष्‍ट्र में म्‍हसोबा का मंदिर
महाराष्‍ट्र में म्‍हसोबा का मंदिर

लेकिन सता तो आज भी ब्राहमणों के हाथ में है, सारे के सारे कैबिनेट मंत्री ब्राहमण हैं। राज्यमंत्री के तौर पर दलितपिछड़े मंत्री बनाये गये हैं। आपके विभाग में ही आप तीसरा राज्य मंत्री हैं!

सत्ता कहाँ ब्राह्मणों के हाथ में है। खुद नरेंद्र मोदी जी ओबीसी हैं। और वैसे भी ब्राह्मण समाज पूरा का पूरा जातिवादी है, यह कहना भी ठीक नहीं है। ब्राह्मण समाज से बहुत से लोग रहे हैं, बाबा साहेब के आंदोलनों में ब्राह्मण रहे हैं। उन्होंने कहा था कि वे ब्राह्मण का नहीं ब्राह्मणवाद का विरोध करते हैं।

आपको नहीं लगता कि कोई दलित-पिछड़ा भी कैबिनेट पद डिजर्व करता है। रामविलास पासवान जैसे सीनियर नेता को छोड़कर कोई भी…

अभी जो जिम्मेवारी मिली है, उसे पूरी करूंगा। मेरा विभाग दलितों दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों का विभाग है, देश के 85% लोगों का विभाग, वहाँ मैं विकास की कोशिश करूंगा, आरक्षण को अमल में लाने की कोशिश करूंगा। पहले से मौजूद आरक्षण को बिना छेड़े गरीब ऊंची जाति के लोगों तथा मराठा, जाट आदि जातियों को 20-25% आरक्षण दे दिया जाये तो समस्या का समाधान हो जायेगा। बाकि बचे 20-25% पदों पर सामान्य श्रेणी की प्रतियोगिता हो। रही बात सुप्रीम कोर्ट की, तो सुप्रीम कोर्ट ही सर्वेसर्वा नहीं है। अगर मेरा मंत्रालय या कोई और विभाग ऐसा प्रयास करता है कि इस तरह का क़ानून बने तो ठीक है।

ये बाबा साहेब डा. आंबेडकर का घर तोड़ने का जो विवाद है ?

वह घर, वह जमीन बाबा साहेब के द्वारा 1946 में बनाये गये पीपल्स इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट का है। बीएमसी (बॉम्बे महानगर पालिका) ने ट्रस्ट को नोटिस देकर बताया था कि उसका निर्माण कमजोर है, उसे और बेहतर बनना है। हाँ, उस घर को अचानक से रात में नहीं तोड़ना चाहिए था।

खबर तो यह है कि बाबा साहेब की प्रिंटिंग प्रेस की मशीन तोड़ दी गई,  एक ओर महात्मा गांधी की हर चीज को धरोहर माना जाता है और दूसरी ओर..

तोड़ दिया मतलब,  बुलडोजर अन्दर जा रहा था, तो गिर गया- तोड़ा नहीं। वहाँ 7 मंजिल का भवन बनना है, 60 करोड़ रुपये दिए गए हैं इसके लिए। इसे सिर्फ भावनात्मक रूप दिया जा रहा है।

लेकिन दलितों पर हमले भी तो बढ़ रहे हैं !

हमले पहले से होते रहे हैं, देश में जातिवाद है, जिसके कारण देश भर में जगह-जगह अत्याचार हो रहे हैं। कांग्रेस के समय में भी अत्याचार होते थे। जबतक जातिवाद है, दलितों पर अत्याचार होता रहेगा। हमें मिलकर जातिवाद के खिलाफ काम करना होगा।

आप अपनी जनता को कैसे समझायेंगे, आप हैदराबाद गये तो आपका रोहित वेमुला के मसले पर विरोध हुआ?

मैंने रोहित वेमुला के मुद्दे पर मजबूत स्टैंड लिया था, मैंने सीबीआई जांच की मांग की थी और कहा था कि कुलपति अप्पाराव हो या मंत्री बंगारू दत्तात्रेय, सारे दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। रोहित के पहले भी दलित छात्रों ने आत्महत्या की है, वहां-तब यह सरकार नहीं थी केंद्र में। तत्कालीन मानव संसाधन स्मृति ईरानी भी उस मामले को ढंग से सुलझा नहीं पाईं। मुझे कुछ छात्रों ने कहा कि आप गठबंधन तोड़ दो,  मैंने जवाब दिया कि हमारा कोई वैचारिक गठबंधन नहीं है। वक्त आया तो हम बीजेपी को भी छोड़ सकते हैं, कांग्रेस के साथ भी नहीं रहे हम। मेरी भूमिका सरकार के अंध समर्थक की नहीं है।

लेकिन सवाल तो बनता है,  आप जैसे पैंथर आंदोलन से जुड़े लोग, उसके नामदेव ढसाल जैसे संस्थापक, जो बड़े विद्रोही कवि और चिंतक थे, शिवसेना के साथ चले गये।

हम सब बदलाव के स्वप्न के साथ आये थे,  लेकिन एडजस्टमेंट भी करनी होती है। शरद पवार ने भी तो जनसंघ के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। बाबा साहेब ने आरपीआई का गठन करते वक्त यह स्पष्ट किया था कि यह पार्टी कांग्रेस के विरोध में हो,  लेकिन 1952 का चुनाव वे हार गये थे। इसके बाद बाबा साहेब ने सबको साथ लेकर चलने का मत दिया था। मुझसे बाला साहेब ठाकरे ने कहा था कि कांग्रेस ने आपके साथ हमेशा अन्याय किया है, इसलिए हमारे साथ आइये। ये राजनीतिक गठबंधन है, एडजस्टमेंट है, हम किसी चक्रव्यूह में नहीं फंसने वाले हैं।

लेकिन आप हिंदुवादियों के साथ चले जाने को कैसे जस्टिफाय करेंगे?

आरएसएस का जो विचार है, हिन्दू राष्ट्र बनाने का, क्या कभी संभव है? क्या इसे देश के मुसलमान, जैन, सिख, बौद्ध हिंदू हो जायेंगे? हम जब कांग्रेस के साथ थे, तब भी उनसे हमारे वैचारिक मतभेद थे,आज बीजेपी के साथ हैं तो वैचारिक मतभेद इनसे भी है- आरएसएस से भी। लेकिन हमारे होने के कारण शिवसेना वाले ‘जय भीम’ बोलने लगे थे।

तो क्या उत्तरप्रदेश में दलितों की सत्ता रोकेंगे?

नहीं, उत्तरप्रदेश में बीजेपी गठबंधन की सरकार बनेगी- आरपीआई भी उसमें होगी।

आपके होने से मायावती का नुकसान होगा?

मायावती ने हमारा नुकसान किया है।

हमारी संस्कृति है, बहुजन संस्कृति। आपने महिषासुर मुद्देको लेकर बीजेपी का रुख देखाक्या यह पार्टी हिन्दू संस्कृति के नाम पर ब्राह्मण संस्कृति को नहीं थोप रही है

ऐसा नहीं है, देश के लोग बहुत जागरूक हैं। ऐसा नहीं हो सकता। जहां तक महिषासुर की बात है-देवी दुर्गा ने उनकी ह्त्या की थी। महिषासुर की ह्त्या करना ही एक अन्याय है। वे हमारी जाति के थे। हमारे यहाँ ‘म्‍हसोबा’ की पूजा होती रही है। उनकी ह्त्या नहीं होनी चाहिए थी, ठीक वैसे ही जैसे रावण की हत्‍या नहीं होनी चाहिए थी।

महसोबा : जो महाराष्‍ट्र के अराध्‍य हैं
महसोबा : जो महाराष्‍ट्र के अराध्‍य हैं

और ह्त्या का जश्न कतई उचित नहीं हैं..

हाँ, लेकिन क्या करें, दुर्गा को मानने वाले लोग भी तो हैं। लेकिन यहाँ पूरा हिन्दू शासन नहीं हो सकता। यहाँ बाबा साहेब को मानने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। मैं बीजेपी के साथ रहते हुए भी आंबेडकरवादी हूँ। जरूर देश के प्रधानमंत्री होंगे नरेंद्र मोदी, लेकिन मैं उनके पास नीला झंडा लेकर गया हूँ।

ढाई साल पहले आपने 15 प्रतिशत सत्ता में हिस्सेदारी की बात की थी, क्या वह मिल गई?

उन्होंने 10 प्रतिशत का वायदा किया था वे उसे जरूर पूरा करेंगे, शुरुआत हो चुकी है।

( महिषासुर आंदोलन से संबंधित विस्‍तृत जानकारी के लिए पढ़ें ‘फॉरवर्ड प्रेस बुक्स’ की किताब ‘महिषासुर: एक जननायक’ (हिन्दी)। घर बैठे मंगवाएं : http://www.amazon.in/dp/819325841X किताब का अंग्रेजी संस्करण भी शीघ्र उपलब्ध होगा )

लेखक के बारे में

संजीव चन्दन

संजीव चंदन (25 नवंबर 1977) : प्रकाशन संस्था व समाजकर्मी समूह ‘द मार्जनालाइज्ड’ के प्रमुख संजीव चंदन चर्चित पत्रिका ‘स्त्रीकाल’(अनियतकालीन व वेबपोर्टल) के संपादक भी हैं। श्री चंदन अपने स्त्रीवादी-आंबेडकरवादी लेखन के लिए जाने जाते हैं। स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘चौखट पर स्त्री (2014) प्रकाशित है तथा उनका कहानी संग्रह ‘546वीं सीट की स्त्री’ प्रकाश्य है। संपर्क : themarginalised@gmail.com

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