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सर्जिकल स्ट्राइक ट्रायल है : 2019 तक युद्ध में धकेला जायेगा देश!

भारत-पाकिस्तान की सीमा पर युद्ध के मंडराते बादल के बीच 29 सितंबर को भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक किया, तेजपाल सिंह तेज बता रहे हैं कि दिल्ली के हुक्मरान 2019 तक पूर्ण युद्ध संभव कर दिखायेंगे ताकि लोकसभा चुनाव को स्थगित किया जा सके

war-room_india-todayकालीकट में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में भाषण देते हुए  पाकिस्तान पर हमला बोला और पाकिस्तान को गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी हटाने की सलाह दे डाली। क्या ऐसा नहीं लगता कि उन्‍होंने भारत की जनता का ध्यान भारत में व्याप्त  भ्रष्टाचार, अनाचार और दलितों व अल्पसंख्यकों पर निरंतर होते अत्याचार जैसे मुद्दों से भटकाने का प्रयास किया है। कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी लोगों का ध्यान अपनी विफलताओं से हटाने के लिए यह राजनीतिक प्रयास कर रहे हैं।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में यह भी कहा कि केंद्र सरकार अपने शासनकाल में सभी मुद्दों पर विफल साबित हुई है। उन्होंने उरी में आतंकवादी घटना के 18 शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इनके बलिदान से जनता में आक्रोश व्याप्त है। अपने देश की समस्याओं को पाकिस्तान की समस्याओं से जोड़कर लोगों का ध्यान हटाने का प्रधानमंत्री मोदी का प्रयास सफल नहीं होगा। यह उन्हें महंगा पड़ेगा। मायावती ने कहा कि मोदी ने आम चुनावों में कई तरह के वायदे किए थे लेकिन वह अपने वायदों पर पूरा खरे नहीं उतरे।

उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी में पिछले कुछ समय से जारी तनाव का पाकिस्तान ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहता है। एक तरफ वह संयुक्त राष्ट्र के मंच से कश्मीर मसले को उठा रहा है और खुलेआम कह रहा है कि कश्मीर मसले का हल हुए बगैर भारत-पाकिस्तान के बीच शांति और सामान्य रिश्तों की बहाली नहीं हो सकती, वहीं दूसरी ओर कश्मीर घाटी में आतंकवादियों की घुसपैठ कराकर तथा नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन की उकसाने वाली कार्रवाई कर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि भारत में आगामी वर्षों में कई बड़े राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। भाजपा की केन्द्रीय सरकार भी कश्मीर के मुद्दे को जिन्दा रखना चाहती है ताकि पिछले दिनों में राज्य सरकारों के हुए चुनावों में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। उसे अभी से चिंता सता रही है कि आगे होने वाले राज्य विधान सभाओं के चुनावों में भी यदि वह पटखनी खा गई तो 2019 में होने वाले चुनावों में उसकी क्या गति होगी?

locमाना कि पाकिस्तान की हरकतों और इरादों से भारतीय जन-मन दुखी और आक्रोशित है, लेकिन भारतीय सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे प्रमुख लोगों, सत्तारूढ़ दल के नेताओं, सरकार द्वारा पोषित समर्थकों, निहित स्वार्थों से प्रेरित कुछ रिटायर सैन्य अफसरों और पूर्व नौकरशाहों तथा मीडिया के एक बड़े हिस्से की ओर से इस जनाक्रोश को युद्धोन्माद में बदलने की कोशिशें की जा रही हैं। सत्ता के लोग पाकिस्तान और भारत के बीच के मनमुटाव को आगामी चुनावों के मद्देनजर सुलझाने की बजाय बनाए रखने का मन बनाए हुए हैं। इतना ही नहीं इस मसले को 2019 तक खींचे जाने का विचार भी है। पाकिस्तान के साथ अभी पूर्ण सैनिक कार्यवाही अथवा युद्ध की अभी तक तो कोई सम्भावना नहीं लगती। हाँ! 2019 में होने चुनावों से ठीक पहले पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की संभावना पर कोई शक गुंजाइश नहीं है ताकि युद्ध को केन्द्र में रखकर लोकसभा चुनावों को और आगे खिसकाया जा सके। यदि ऐसा होता है तो लोकतंत्र की हत्या तो होगी ही साथ ही साथ भारत के आर्थिक-सामाजिक ताने-बाने के लिए भी कम नुकसानदायक नहीं होगा।

दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के मूल में केवल और केवल कश्मीर का मसला है जिसके बारे में देश-दुनिया की आम समझ है कि यह एक राजनीतिक मसला है और इसका समाधान राजनीतिक पहल से ही निकलेगा। हमारी जो सेना अभी तक कश्मीर को भारत से जोड़े रखने में अपनी भूमिका निभाती आ रही है, उसके आला अफसर भी अब यह स्पष्ट तौर पर मानने और कहने लगे हैं कि यह एक राजनीतिक मसला है। कानून-व्यवस्था का नहीं। इसका समाधान राजनीतिक तरीके से ही होना है। किंतु हमारा सत्तारूढ़ राजनीतिक नेतृत्व न तो इसे प्रमुखता से ले रहा है और न पाकिस्तान ही। यह एक शोचनीय विषय है। मीडिया इस मसले के कुंड में घी डालने का काम हमेशा से करता आ रहा है। इसमें कोई शंका नहीं कि उरी के आतंकवादी हमले में हमारे जो जवान मारे गए हैं, वे कमोबेश गरीब या निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की उम्मीदों का सहारा रहे होंगे। सारा देश इस घटना से दुखी और आक्रोशित है। लेकिन कॉर्पोरेट घरानों से नियंत्रित हमारे टीआरपी पिपासु टीवी चैनल उनके क्षोभ और शोक का निर्लज्जता के साथ व्यापार कर रहे हैं। जिस दिन उड़ी में हमला हुआ उस दिन से लेकर आज तक दिल्ली और मुंबई स्थित टीवी के खबरिया चैनलों पर शाम की अनरगल गलाफाड़ बहसों में शामिल रक्षा तथा राजनीतिक दलों के प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय, सेना एवं खुफिया सेवाओं के पूर्व अफसर देश में युद्धोन्माद पैदा कर रहे हैं। खेद की बात तो ये है कि सरकार के रक्षा विशेषज्ञ किसी भी आतंकवादी हमले के बाद दूरदर्शन के चैनलों के वातानुकूलित स्टूडियों में बैठकर पाकिस्तान को युद्ध के जरिए सबक सिखाने का सुझाव देते हैं और साथ ही यह रुदन भी कर डालते हैं कि भारतीय सेना के पास संसाधनों का अभाव है।

wagahगौरतलब है कि जब भारत अपने देश के अन्दर होने वाले जातीय, नस्लीय, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक आतंकवाद से नहीं निपट पा रहा है तो किस दम पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे आतंकवाद का मुकाबला करने का दम भर रहा है। क्या दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका अंतररार्ष्ट्रीय स्तर पर हो रहे आतंकवाद का मुकाबला कर पाई। अमेरिका खुद आतंकवाद का शिकार है। भारत को सबसे बड़ा मुगालता यह है कि अमेरिका और रूस जैसे देश उसके दोस्त हैं। ज्ञात हो कि अमेरिकी ने उरी पर हुए आतंकवादी हमले की निंदा तो की, लेकिन इस हमले के संदर्भ में उसने अपने बयान में किसी भी रूप में पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया। इसकी वजह यह है कि हथियार खरीदी के मामले में पाकिस्तान भी अमेरिका का कोई छोटा ग्राहक नहीं है।

भारत को यह याद रखना होगा कि उद्दंड और गैरजिम्मेदार पाकिस्तान के पास अपनी बेगुनाह जनता के अलावा खोने को भी कुछ खास नहीं है। उसकी आर्थिक स्थिति तो खस्ता हाल है ही। ऐसे में यदि भारत और पाकिस्तान का युद्ध मानो हो जाता है तो जो कुछ भी बिग़ड़ना है, वह भारत का ही बिगड़ना है। भारत का ही बिगड़ने का मतलब भारत की आम जनता की ही फजीहत होनी है।

जहां तक हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात है, वे प्रधानमंत्री बनने से पहले भले ही अपने 56 इंची सीने की दुहाई देते हुए पाकिस्तान को उसी की भाषा में सबक सिखाने की बात करते रहे हों, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी की खिल्ली उड़ाते रहे हों लेकिन आज प्रधानमंत्री होने के नाते वे भी नहीं चाहते कि जल्दी में कोई युद्ध हो।

असल में मोदी जी को चिंता हो रही है कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में उनकी काठ की हाँडी का क्या होगा। दोबारा चढ़ेगी कि नहीं? सत्ता के मद में शायद मोदी जी भूल गए कि काठ की हाँडी चूल्हें पर एक बार ही चढ़ पाती है। इसीलिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्ददा उनके लिए संजीवनी है। और इसे भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों तक जिन्दा रखना चाहेगी।

आज वक्त है कि देश का प्रत्येक राजनेता अपने-अपने राजनीतिक हितों को छोड़कर राष्ट्र-हित में एकजुट होकर युद्द को टालकर राजनीतिक कूटनीति के जरिए कश्मीर की समस्या का हल तलाशने की प्रयास करे। सोचना होगा कि युद्ध सबके लिए हानिकारक है। इसका विकल्प है कि हम पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए दुनिया के तमाम देशों से सौहार्दयपूर्ण संबंध बनाएं किंतु इस दिशा में भारत को पहल तो खुद ही करनी होगी।

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लेखक के बारे में

तेजपाल सिंह तेज

लेखक तेजपाल सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है आदि ( गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि ( कविता संग्रह), रुन-झुन, चल मेरे घोड़े आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र) और अन्य। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता के साहित्य संपादक और चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इन दिनों अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक का संपादन कर रहे हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित।

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